रियो ओलंपिक में महिला मुक्केबाजों ने कहा कि उन्हें अभी भी लिंगभेद और उपहास का सामना करना पड़ता है हालांकि बदलाव आ रहे हैं लेकिन उनकी गति मंद है। लंदन ओलंपिक 2012 में महिला मुक्केबाजी को पहली बार ओलंपिक में शामिल किया गया था। लंदन में अमेरिका के लिए इस खेल में एकमात्र स्वर्ण जीतने वाली मिडिलवेट मुक्केबाज क्लारेस्सा शील्ड्स ने कहा कि उसे लगा था कि वह अगली पीढ़ी के लिए प्रेरणा बनेगी लेकिन ना तो शोहरत मिली और ना ही प्रायोजक।
उन्होंने कहा कि लंदन ओलंपिक के बाद पहले तीन साल मुझे कोई प्रायोजक नहीं मिला। मुक्केबाजी में महिलाओं और पुरुषों के साथ समान बर्ताव नहीं होता। रियो ओलंपिक में सबसे अनुभवी मुक्केबाजों में से एक स्वीडन की अन्ना लारेल ने कहा कि मैं 1997 से खेल रही हूं और शुरुआत में लड़के, बूढे मुझसे कहते थे कि इसे छोड़ दो, लड़कियां मुक्केबाजी नहीं करती। लेकिन अब बहुत कुछ बदल गया है।