मनोज कुमार भारतीय मुक्केबाजी में चल रही प्रशासनिक उठापटक से काफी खिन्न हैं और उन्हें लगता है कि इसी के कारण उन्होंने रियो ओलंपिक में पदक गंवा दिया। उन्होंने कहा कि भारतीय मुक्केबाजी इस समय बहुत बुरी स्थिति में है और इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप की जरूरत है। मनोज ने कहा, ‘मुझे पूरा भरोसा है कि भारत अगर अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ (एआईबीए) से निलंबित नहीं होता तो मैंने पदक जीत लिया होता। अगर प्री क्वार्टरफाइनल बाउट में पहला राउंड मेरे पक्ष में गया होता तो नतीजा कुछ अलग हो सकता था।’ यह लाइट वेल्टरवेट मुक्केबाज स्वर्ण पदक जीतने वाले उज्बेकिस्तान के फजलीद्दीन गैबनाजारोव से हार गया। मनोज ने कहा कि चार साल से चली आ रही प्रशासनिक उठापटक ने भारत के रियो ओलंपिक में पदक के मौके को खत्म कर दिया।
देश के मुक्केबाजों ने पिछले दो ओलंपिक में पदक जीते थे लेकिन आठ साल में पहली बार ऐसा नहीं हुआ। हरियाणा के 29 वर्षीय मुक्केबाज को जून में ही टारगेट ओलंपिक पोडियम में शामिल किया गया था, जब इस राष्ट्रमंडल खेलों के पूर्व स्वर्ण पदकधारी ने खेलों के लिए क्वालीफाई किया था। मनोज ने कहा कि इसमें काफी देरी हो गई। उन्होंने कहा, ‘मुझे वह सहयोग नहीं मिला जो कुछ को मिल गया था। मुझे क्वालीफाई करने के लिए ही इतनी कोशिश करनी पड़ी। किसी ने भी मेरा समर्थन नहीं किया और इससे मेरा मतलब है कि किसी ने भी। मुझे कभी भी दावेदार नहीं माना गया, तैयारी के लिए वित्तीय सहायता नहीं दी गयी। मैंने सब कुछ अपने और अपने बड़े भाई राजेश के बूते किया।’