किसी भी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता से पहले टीम को खिताबी सफलता मिलना सुखद अहसास है। सफलता खिलाड़ियों को प्रेरित करती है, मानसिक रूप से मजबूत बनाती है और आत्मविश्वास जगाती है। इसी माह 28 तारीख से भुवनेश्वर में होने वाले हॉकी विश्व कप से पहले भारतीय टीम की एशियन चैंपियंस ट्रॉफी में सफलता को अहम माना जा सकता है। मस्कट में संपन्न हुई इस चैंपियनशिप में भारत को चिरप्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के साथ सम्मान बांटना पड़ा। बारिश के कारण खिताबी मुकाबला नहीं हो पाया। पाकिस्तान के लिए संयुक्त विजेता बनना बोनस है। दूसरी ओर भारतीय टीम के लिए सम्मान का साझा होना घाटे का सौदा है। जिस पाक टीम के साथ उन्हें संयुक्त विजेता घोषित किया गया, उसी टीम को उसने छह देशों के लीग मुकाबले में 3-1 से हराया था। वैसे भी पिछले दस-बारह मुकाबलों में भारतीय टीम पाक पर भारी ही पड़ी है। अगर फाइनल खेला जाता तो लाभ की स्थिति में भारत ही रहता।
खैर, जकार्ता एशियाई खेलों में फाइनल में नहीं पहुंच पाने की टीस जरूर दूर हुई। तब भारतीय टीम सेमी फाइनल में मलेशिया से पेनल्टी शूटआउट में हार गई थी। मलेशिया ने जो चोट दी, उसका जख्म अभी भरा नहीं है। मस्कट में भी मलेशिया ने भारत को गोलरहित बराबरी पर रोक दिया। हमारी टीम का चाहे दबदबा रहा हो पर जब टीम जीत के लिए गोल नहीं निकाल पाए तो क्या फायदा। भारतीय फारवर्डों ने गोल के कई मौके बेकार किए। एशियाई खेलों की रजत पदक विजेता मलेशियाई टीम भारत के लिए परेशानी का सबब रही है। मलेशिया के खिलाफ हमें जीत का मंत्र ढूंढना पड़ेगा। समीकरण बदल गए हैं। पाक और दक्षिण कोरिया के खिलाफ अब जीत के लिए भारत को उतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ती जितनी मलेशिया और एशियाई खेलों की चैंपियन जापान के खिलाफ करनी पड़ रही है। जापानी टीम एशिया की ताकत बनने का सपना संजो रही है। उसके लक्ष्य बड़े हैं। वह केवल एशियाई खेलों का खिताब मिल जाने से ही संतुष्ट नहीं है। उसने टीम का आधार मजबूत करना शुरू कर दिया है। इसीलिए उसने इस बार टीम में छह नए खिलाड़ियों को उतारा।
इस नई टीम को भारत ने लीग मैच में तो 9-0 से आसानी से धुन दिया। लेकिन जब दोनों टीमें सेमी फाइनल में फिर आमने-सामने हुर्इं तो जापानियों ने जीत के लिए भारतीय टीम को रुला दिया। कड़े संघर्ष में ही भारत को 3-2 से जीत नसीब हुई।
हालांकि भारत ने पांच मैचों में सर्वाधिक 27 गोल बनाए। लेकिन गोल करने के ढेरों मौके भी गंवाए। जब हम एशियाई टीमों की रणनीति काटने का मंत्र नहीं ढूंढ पा रहे तो विश्व कप में तो प्रतिद्वंद्वी और भी मुश्किल होंगे। इस कमजोरी पर हमारे खिलाड़ियों को काम करना होगा। गोल पर निशाना लेने के मामले में विविधता जरूर आई पर सर्किल में संयम और अचूकता की जरूरत है। रक्षात्मक हॉकी खेलने वाली टीमें गोल पर निशाना लेने की आजादी नहीं देती। इसलिए पेनल्टी अर्जित करने की कला में भी निपुणता लानी होगी। पेनल्टी को गोल में तब्दील करने की कला में भारतीय टीम ने सुधार किया है। लेकिन जब टक्कर मुश्किल टीम से हो तो पेनल्टी कॉर्नर कम मिलते हैं। ऐसे में गोल बनाने की दक्षता बढ़ानी होगी। जापान के खिलाफ सेमी फाइनल में सर्किल में 27 बार प्रवेश के बावजूद भारत गोल तीन बना सका और पेनल्टी कॉर्नर चार अर्जित किए। एक पर सफलता मिली। मतलब यह हुआ कि सफलता का फीसद 25 रहा।
हरमनप्रीत स्तरीय ड्रैग फ्लिकर हैं और दक्षिण कोरिया के खिलाफ 4-1 से जीत में उन्होंने अपनी उपयोगिता साबित की। आकाशदीप को टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी आंका गया। विश्व कप में भारत पूल ‘सी’ में है। इसमें बेल्जियम, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका की टीमें हैं। देखने में यह आसान पूल लगता है लेकिन ये तीनों टीमें कड़ी टक्कर देने के लिए मशहूर हैं। इनसे जूझने के लिए हमें खास तैयारी करनी होगी। लीग से आगे बढ़े तो मुकाबले और टफ होंगे। हाल ही के वर्षों में आस्ट्रेलिया, जर्मनी, नीदरलैंड, स्पेन, इंग्लैंड जैसी टीमों के खिलाफ भारतीय प्रदर्शन में सुधार दिखा है। हम किसी भी टीम को हराने में सक्षम हैं। विश्व कप जीत के लिए खिलाड़ियों की मानसिक मजबूती अहम होगी।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य जिसे ध्यान में रखे भारतीय टीम
’पाक और दक्षिण कोरिया के खिलाफ अब जीत के लिए भारत को उतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ती जितनी मलेशिया और एशियाई खेलों की चैंपियन जापान के खिलाफ करनी पड़ रही है।
’जापानी टीम एशिया की ताकत बनने का सपना संजो रही है। उसके लक्ष्य बड़े हैं। वह केवल एशियाई खेलों का खिताब मिल जाने से ही संतुष्ट नहीं है। उसने इस बार छह नए खिलाड़ियों को उतारा।