कई भारतीय घरों में बच्चों को शैक्षणिक स्तर पर शानदार प्रदर्शन करते देखना आम आकांक्षा है। आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले के तनुकु शहर की रहने वाली 23 साल की ज्योतिका श्री दांडी के लिए भी कभी पढ़ाई ही सफलता की गारंटी थी। उन्होंने 10वीं कक्षा में 97% अंक हासिल किए थे। हालांकि, उनकी यात्रा में एक अलग मोड़ तब आया जब उन्हें अहसास हुआ कि उनके पिता की सबसे बड़ी खुशी उनकी खेल उपलब्धियों में है। पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने वाली भारतीय 4×400 मीटर रिले टीम की सदस्य ज्योतिका श्री डांडी बचपन में डॉक्टर बनना चाहती थी।
हाल ही में कटाया पेरिस ओलंपिक का टिकट
इस बीच, युवावस्था में बॉडी बिल्डर रहे उनके पिता श्रीनिवास राव ने उन्हें खेलों में रुचि लेने के लिए प्रेरित किया। श्रीनिवास का सपना अपनी बेटी को ओलंपिक में देखने का था जो तीन महीने से भी कम समय में हकीकत में बदलने जा रहा है। ज्योतिका हाल ही में बहामास में हुई विश्व रिले में 4×400 मीटर रिले में ओलंपिक टिकट पक्का करने वाली भारतीय टीम की चौकड़ी का हिस्सा थीं।
ज्योतिका ने 10वीं कक्षा में हासिल किए थे 97% अंक
फेडरेशन कप में हिस्सा लेने के लिए भुवनेश्वर पहुंची ज्योतिका ने कहा, ‘मैंने दसवीं कक्षा में 97 प्रतिशत अंक हासिल किए थे। जब मैं स्कूल में थी तब मैं डॉक्टर बनना चाहती थी। मैंने खेल में दिलचस्पी लेने के बाद डॉक्टर बनने के बारे में सोचना छोड़ दिया।’ यह सब तब शुरू हुआ जब ज्योतिका ने स्कूल मीट में रेस जीती और तभी उनके पिता को अपनी बेटी की प्रतिभा का अहसास हुआ।
पिता चाहते थे ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतूं: ज्योतिका
उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता को लगा कि मुझमें एथलेटिक्स में अच्छा प्रदर्शन करने और ओलंपिक में देश का नाम रोशन करने की प्रतिभा है। उनके त्याग और मुझे एक सफल एथलीट बनाने के जुनून को देखकर मैंने उनके सपनों को पूरा करने का फैसला किया।’
ज्योतिका ने कहा, ‘मैं वार्षिक स्कूल खेल प्रतियोगिताओं यहां तक कि क्लबों की ओर से आयोजित 200 और 400 मीटर की रेस में शीर्ष स्थान पर रहती थी। जब मैं 7वीं कक्षा (लगभग 12 वर्ष की उम्र) में थी तब पिता मुझे स्कूल के ‘पीईटी’ शिक्षक के पास ले गए। मैं घर के पास एक कॉलेज के मिट्टी वाले मैदान पर दौड़ती थी। जब मैं नौवीं कक्षा (2014) में थी तब मैंने जिला और राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था।’
परिवार का साथ नहीं मिलने से पिता नहीं बन पाए बॉडीबिल्डर
ज्योतिका ने बताया, ‘मेरे पिता युवावस्था में बॉडीबिल्डर थे, लेकिन परिवार से समर्थन नहीं मिलने के कारण उन्होंने बॉडी बिल्डर बनना छोड़ दिया। अब वह एक व्यवसायी हैं। उन्हें खेलों में बहुत रुचि है और उन्होंने मुझे बहुत प्रेरित किया और वह चाहते हैं कि मैं ओलंपिक में हिस्सा लूं।’
मैं डॉक्टर बनना चाहती थी: ज्योतिका
ज्योतिका ने कहा, ‘मैंने पिता को यह नहीं बताया कि मैं डॉक्टर बनना चाहती हूं, क्योंकि मैं उन्हें खुश देखना चाहती थी। मुझे 2017 तक खेलों में रुचि नहीं थी, लेकिन 2020 के आसपास मैंने रुचि लेना शुरू कर दिया।’ ज्योतिका की मां गृहिणी हैं। उनकी एक बड़ी बहन है, जिनकी हाल ही में शादी हुई है।
ज्योतिका ने कहा, ‘उनकी (पिता) वजह से मुझे ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा। वह हर चीज का ख्याल रखते हैं इसलिए अब मैं ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन करते देखने का उनका सपना पूरा करना चाहती हूं।’ ज्योतिका का 400 मीटर में व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 52.73 सेकेंड है। ज्योतिका ने 2014 और 2021 के बीच विजयवाड़ा में भारतीय खेल प्राधिकरण के कोच विनायक प्रसाद के देखरेख में अभ्यास किया।
कोच रमेश नागपुरी ने निखारी ज्योतिका की प्रतिभा
ज्योतिका ने इसके बाद हैदराबाद में राष्ट्रीय जूनियर टीम के वर्तमान मुख्य कोच रमेश नागपुरी की देखरेख में एक साल तक अभ्यास किया। इस दौरान उन्होंने 53.05 सेकंड का अपना व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। इसके बाद उन्हें राष्ट्रीय शिविर के लिए बुलाया गया। ज्योतिका ने बताया, ‘राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने के बाद मुझे विश्व स्कूल खेलों और एशियाई युवा चैंपियनशिप में हिस्सा लेने का मौका मिला। इसके बाद खेलों में मेरी दिलचस्पी बढ़ती गई।’
ज्योतिका के मुताबिक, भारतीय महिला रिले टीम 2028 ओलंपिक में पदक की उम्मीद कर सकती है। उन्होंने कहा, ‘वास्तव में मुझे लगता है कि इस बार पदक जीतना कठिन होगा, लेकिन अगर हम कड़ी मेहनत करें तो चार साल (2028 ओलंपिक) के बाद हम पोडियम पर खड़े हो सकते हैं।’