प्रीतिश राज। बीते साल पैरालंपिक्स में शीतल देवी की हिम्मत और प्रतिभा की बहुत तारीफ हुई थी। बिना हाथों के तीरंदाजी करने वाली शीतल को देखकर दुनिया हैरान थी और उसे सलाम कर रही थी। शीतल इन तमाम लोगों के साथ पायल नाग की भी प्रेरणा बनी। पायल के हाथ और पैर दोनों नहीं है और जब वह पैरा खेलो इंडिया में तीरंदाजी करने पहुंची तो लोगों को यकीन नहीं हो रहा था। वह लड़की जिसे मां-बाप ने अपने जीते जी अनाथालय में छोड़ दिया वह आज लोगों के लिए मिसाल बन गई।
पैरा आर्चर पायल नाग जब बहुत छोटी थी तब करंट लगने के कारण उनके हाथ-पैर काटने पड़े। पायल का परिवार बहुत गरीब था। ऐसे में उन्होंने पायल को अनाथालय छोड़ दिया ताकी उन्हें सही तरह का समर्थन मिल सके। पायल बालंगिर में रहने लगी। पायल ने बताया कि पहले वह मुंह से तस्वीर बनाया करती थी और एक दिन उनकी एक तस्वीर को किसी ने ट्विटर पर पोस्ट किया और वह वायरल हो गया। कोच कुलदीप की नजर इसपर पड़ी और तब उन्होंने पायल से पहली बार संपर्क किया। पायल कहती हैं,”मैं तो पहले मुंह से ड्राइंग करती थी। मैं किसी को भी देखकर उसका फैस बना सकती थी। मेरी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। उस तस्वीर को मेरे गुरुजी ने भी देखा और फिर मेरे पास आए मेरे अनाथआश्रम में आए और मुझे जम्मू ले आए।”
पायल ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “मेरे माता-पिता रोते थे क्योंकि हमारे आस-पास के लोग बहुत सी बातें कहते थे। उनके लिए अपनी बेटी को ऐसे देखना बहुत मुश्किल था। अब, मेरे माता-पिता बहुत खुश हैं कि मैं पैरा-तीरंदाजी कर रही हूँ। वे मुझे यह कहते हुए प्रेरित करते रहते हैं कि हम जानते हैं कि तुम कुछ बड़ा कर सकती हो।” ओडिशा के एक गरीब परिवार से आने वाली पायल के घर में माता-पिता, भाई-बहन सब हैं। पिता किसान हैं। बड़ी बहन वर्षा नाग अकादमी के हास्टल में पायल के साथ रहती है और उसे नहलाने-धुलाने से लेकर खाना खिलाने तक सारा काम करती है। पायल के साथ-साथ वर्षा भी पढ़ाई करती है।
कोच वेदवान जानते हैं कि पायल के लिए यह सिर्फ़ शुरुआत है। उन्होंने कहा, “दुनिया ने सिर्फ़ बिना हाथ वाले तीरंदाज़ों को ही देखा है, लेकिन अब समय आ गया है कि हर कोई बिना हाथ-पैर वाले तीरंदाज़ों को भी देखे। हम आगे बढ़ना चाहते हैं और अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लेना चाहते हैं, क्योंकि मुझे लगता है कि पायल उस स्तर की प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार है।’
पायल ने साई मीडिया से बातचीत में कहा, “मेरा सपना देश के लिए स्वर्ण पदक जीतना है। अगर ओडिशा के बालंगीर के एक अनाथालय से आकर मैं शीतल (दीदी) को हरा सकती हूं को मेरा लक्ष्य देश को गोल्ड दिलाने से कम कुछ हो ही नहीं सकता।”
