हॉकी प्‍लेयर मोहम्‍मद शाहिद नहीं रहे। किडनी और लिवर की बीमारियों से जूझ रहे 56 साल के शाहिद की गुड़गांव के एक अस्‍पताल में बुधवार को मौत हो गई। शाहिद अपने पीछे पत्‍नी परवीन और दो जुड़वां बच्‍चे मोहम्मद सैफ और हीना शाहिद को छोड़ गए हैं।

शाहिद को भारतीय हॉकी के महानतम प्‍लेयर्स में शुमार किया जाता है। शाहिद उस भारतीय टीम के हिस्‍सा थे, जिसने 1980 के मॉस्‍को ओलिंपिक्‍स में गोल्‍ड मेडल जीता था। उन्‍हें गेम में ड्रिबलिंग के कौशल के लिए जाना जाता था। वे उस टीम के भी हिस्‍सा रहे, जिसने 1982 में दिल्‍ली में हुए एशियन गेम्‍स में सिल्‍वर मेडल जबकि 1986 के सियोल एशियाड में ब्रॉन्‍ज मेडल जीता।

14 अप्रैल 1960 में वाराणसी में जन्‍मे शाहिद ने 17 साल की उम्र में अंतरराष्‍ट्रीय हॉकी की दुनिया में कदम रखा। वे पहली बार 1979 में हुए जूनियर वर्ल्‍ड कप में फ्रांस के खिलाफ खेले। हालांकि, उनके कप्‍तान वासुदेव भास्‍करन की नजर उनके खेल पर तब गई, जब वे मलेशिया में चार देशों के टूर्नामेंट में खेल रहे थे। भास्‍करन ही 1980 के ओलिंपिक में भारतीय टीम के कप्‍तान थे। मलेशिया में हुए टूर्नामेंट में शाहिद ने अपने खेल से पाकिस्‍तानी प्‍लेयर्स को चौंका दिया। उन्‍हें इस टूर्नामेंट में बेस्‍ट प्‍लेयर का अवॉर्ड मिला।

शाहिद का खेलने का स्‍टाइल रफ्तार और गेंद को विलक्षण अंदाज में ड्रिबल करने की काबिलियत पर आधारित था। अपने खेल के विशिष्‍ट अंदाज के वजह से ही उन्‍होंने 1980 के दशक में पूरे देश में अपने फैंस बनाए। उन्‍होंने हॉकी में लोगों की दिलचस्‍पी को उस वक्‍त भी बनाए रखा, जब 1983 के वर्ल्‍ड कप में भारत को मिली जीत के बाद पूरा देश क्रिकेट के बुखार में जकड़ा हुआ था।

शाहिद ने 1985 से 1986 के बीच देश की नेशनल टीम की अगुआई भी की। उन्‍हें 1981 में अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा गया। 1986 में उन्‍हें पद्मश्री मिला। हॉकी से रिटायरमेंट लेने के बाद शाहिद ने इंडियन रेलवेज के लिए काम किया। वे अपने गृहनगर वाराणसी में ही रहे।