दुनियाभर में अपनी परंपरागत कुश्ती के लिए जाने जाने वाले जापान ने लगभग दो दशक के बाद किसेनोसटो के रुप में अपना पहला स्वदेशी सूमो ग्रैंड चैंपियन नियुक्त किया है। ऐसा जापान में परंपरागत कुश्ती को बढ़ावा देने के लिए किया गया है। तीस वर्षीय किसेनोसटो ने इस वर्ष का पहले टूर्नामेंट जीता था जिसके बाद उन्हें योकोजूना के पद पर पदोन्नत किया गया। 1998 के बाद किसेनोसटो ऐसे पहले पहलवान हैं जो जापान में जन्में हो। उनसे पहले इस पद पर वारानोहन थे(1998)।
178 किलो के हैं किसेनोसटो- किसेनोसटो जापान की राजधानी टोक्यों के इबारकी के रहने वाले हैं। उनका वजन 178 किलो है। कई मौकों पर रनर-अप होने के बाद आखिरकार उन्होंने 2017 में टूर्नामेंट जीत लिया। जापान सूमो एसोसिएशन के आधारिक बयान के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए किसेनोसटो ने कहा कि मैं इश पद को विनम्रता के साथ स्वीकार करता हूं। उन्होंने कहा कि मैं अपने आपको इस भूमिका के लिए समर्पित करता हू और आपको यकीन दिलाता हूं कि योकोजूना का अपमान नहीं होने दूंगा।
1500 पुरानी है सूमो फाइट की परंपरा- जापान में सुमो फाइट की परंपरा 1500 पुरानी है। जब भी जापान में वसंत आते तो यासुकुनी नामक मठ में चेरी तोड़ी जाती है। जिसके बाद सूमो फाइट की पारंपरिक की शुरुआत होती है। सूमो पहलवान रीति रिवाज को काफी महत्व देते हैं। फाइट से ठीक पहले सूमो पहलवान हवा में नमक उछालते हैं। ऐसा कहा जाता है कि कि ऐसा करने से इनका अखाड़ा शुद्ध हो जाता है।
चीन को पसंद नहीं है ये परंपरा- जापान में भले ही इस परंपरा के मनाया जाता है लेकिन चीन और कोरिया इसे पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि वहां द्वितीय विश्वयुद्ध के जापानी बर्बरता का चेहरा बने योद्धाओं के स्मारक भी हैं।

