21 साल बार भारोत्तोलक में पदक जीत भारत का सपना पूरा करने वाली सिल्वर मेडलिस्ट मीराबाई चानू पिछले 5 साल से अपने परिवार से दूर थीं। 2016 रियो ओलंपिक में बेहद ख़राब प्रदर्शन से लेकर टोक्यो ओलंपिक में मेडल तक चानू का सफ़र ज़बरदस्त रहा है।

ओलंपिक की तैयारी के लिये पिछले पांच बरस में ज्यादातर वह उनसे दूर रही लेकिन टोक्यो में अपना सपना पूरा होने के बाद गले में रजत पदक लेकर भारोत्तोलक मीराबाई चानू जब मणिपुर लौटी तो अपनी मां को देखकर आंसुओं पर काबू नहीं रख सकी। मणिपुर ने अपनी बिटिया के स्वागत में मानो पलक पावडे बिछा दिये और हवाई अड्डे पर मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने उन्हें सम्मानित किया।

सोमवार को इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर हुए स्वागत समारोह की तरह ही यहां बीर टिकेंद्रजीत अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर मीराबाई की झलक पाने के लिए बड़ी संख्या में लोगों के साथ मीडियाकर्मी भी मौजूद थे। उनके हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही अफरातफरी मच गयी। रियो (2016) ओलंपिक में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद मीराबाई को पिछले पांच वर्षों में बहुत बार घर आने का मौका नहीं मिला था।

इसकी वजह इस पदक को जीतने का जज्बा और इसके पीछे की तैयारी थी। 2016 ओलंपिक में मीरबाई ने नाम के आगे डिड नॉट फ़िनिश’ लिखा गया था। यह तब लिखा जाता है जब आप खेल को पूरा नहीं कर पाते। खेल पूरा नहीं कर पाना यह किसी भी खिलाड़ी के मनोबल को तोड़ सकता है।

2016 के बाद वो डिप्रेशन में चली गईं और उन्हें हर हफ्ते मनोवैज्ञानिक के सेशन लेने पड़े। इस असफलता के बाद एक बार तो मीरा ने खेल को अलविदा कहने का मन बना लिया था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ज़बरदस्त वापसी की।

मीराबाई चानू ने 2018 में ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलोवर्ग के भारोत्तोलन में गोल्ड मेडल जीता था और अब ओलंपिक मेडल। शनिवार को रजत पदक जीतने वाली मीराबाई यहां पहुंचने पर अपनी मां सेखोम ओंगबी तोम्गी लीमा और पिता सेखोम कृति मेइतेई से गले मिली जिसके बाद उनकी आंखें नम हो गयी। इस बीच सुरक्षाकर्मियों ने उनके आसपास एक घेरा बनाया था।

चानू ने खेलों के दौरान ओलंपिक प्रतीक चिह्न जैसी सोने की बालियां (कान का आभूषण) पहनी थी जो काफी लोकप्रिय हुआ। यह बालियां उनकी मां ने पांच साल पहले रियो खेलों से पहले अपने आभूषण बेच कर बनवायी थी। उनका मानना था कि यह मीराबाई के लिए भाग्यशाली साबित होगा।

सम्मान समारोह के बाद उन्होंने ट्वीट किया ,‘‘ यह रजत पदक और भी खास हो गया है । पूरे भारत और मणिपुर के लोगों का इतना प्यार मिल रहा है । मुझे बधाई देने आने वाले हर व्यक्ति की मैं शुक्रगुजार हूं।’’ यह 26 साल की खिलाड़ी यहां से लगभग 25 किलोमीटर दूर नोगपोक काकचिंग गांव में रहती है।

मीराबाई हवाई अड्डे से मणिपुर राज्य सरकार के सम्मान समारोह में शामिल होने पहुंची, जिसकी मेजबानी मुख्यमंत्री ने की थी। मणिपुर की इस खिलाड़ी ने 49 किग्रा वर्ग में कुल 202 किग्रा (87 किग्रा + 115 किग्रा) भार उठाकर शनिवार को रजत पदक हासिल किया था। इससे पहले भारोत्तोलन में 2000 सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने कांस्य पदक जीता था।