जीत के लिए गोल चाहिए और गोल बनाने के लिए जरूरी है कलाकारी। खेल कौशल खिलाड़ी की पहचान जताता है और अद्भुत गोल उसकी प्रसिद्धि को बढ़ाता है। इतिहास में फुटबॉलरों ने बहुतेरे ऐसे गोल किए हैं जो चर्चित हुए। फुटबॉल जैसे खेल में गोल ही तो सब कुछ है। इसी से तय होती है हार-जीत। फुटबॉल जादूगर पेले से लेकर लियोनेल मैसी तक खेल ने ढेरों ऐसे खिलाड़ी दिए हैं जिनकी कलाकारी के दर्शक कायल हुए। आजकल चर्चा में हैं क्रिस्टियानो रोनाल्डो। चैंपियंस लीग में उनका ह्यउल्टी किकह्ण से बना गोल खूब सुर्खियों में रहा। फुटबॉलप्रेमियों के लिए वह नजारा तो दर्शनीय रहा। गेंद हवा में हो, खिलाड़ी गोल की तरफ पीठ किए खड़ा हो और ऐसे में सटीक समय के संग गेंद को गोल में पहुंचाना अकल्पनीय सा लगता है। पर मैदान पर दर्शक कुछ ऐसा ही घटता देखना चाहते हैं। रोनाल्डो ‘उल्टी किक’ से गोल बनाने वाले पहले खिलाड़ी नहीं हैं। भारतीय फुटबॉल में तो इस अंदाज में दशकों पहले गोल भी हुए हैं। 1995 की राष्ट्रीय फुटबॉल चैंपियनशिप के फाइनल में बाईचुंग भूटिया ने इसी तरह से गोल बनाया था। अतिरिक्त समय में बने उनके इस गोल्डन गोल से बंगाल ने पंजाब को हराकर चेन्नई के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में संतोष ट्राफी जीती थी। ऐसी कलाकारी से गोल बनाने में पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी श्याम थापा तो उस्ताद थे। सन् 70 के दशक में दिल्ली के आंबेडकर स्टेडियम में उन्होंने डीसीएम और डूरंड कप जैसे प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में अपनी कलाकारी का नमूना पेश किया था। आरएसी बीकानेर के मगन सिंह भी कभी कभार ऐसी कोशिश कर लेते थे।

गोल सिर्फ खिलाड़ी की कलाकारी से ही नहीं बनते। इसके लिए खिलाड़ियों के बीच तालमेल और समझबूझ होना भी जरूरी है। पोजीशनिंग भी अहम होती है। आपको सही समय पर गोल के समक्ष मौजूद रहना होता है। सेकंड में फैसला करना होता है कि गोलभेदी निशाना कैसे लगाया जाए। गोल मुहाने यानी पेनल्टी क्षेत्र में आपके पास गोल बनाने के कई तरीके हैं-किसी भी पांव से, सिर से, उल्टी किक से, पेनल्टी और फ्री किक से। लंबी दूरी से निशाना लेकर भी गोल भेदा जा सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर अमलराज, परमिंदर सिंह, अकबर, ब्रुनो कुटिन्हो, रणजीत थापा और प्रशांत बनर्जी जैसे खिलाड़ियों ने बीते समय में ऐसे कौशल से छाप छोड़ी। सिर से गोल भेदने की कलाकारी में शाबिर अली, शिशिर घोष और कुलजीत सिंह प्रमुख थे। पांव की कलाकारी से गोल बनाने में चुन्नी गोस्वामी, बाईचुंग भूटिया, आइएम विजयन, सुरजीत सेनगुप्ता, इंदर सिंह और सुनील छेत्री जैसे खिलाड़ियों का नाम चमका।
फुटबॉल की चर्चा हो और पेले का नाम न हो, ऐसा हो नहीं सकता। हजार से ज्यादा गोल करने वाले इस फुटबॉल जादूगर ने ब्राजील को विश्व कप जितवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। बढ़िया गेंद नियंत्रण, अचूक निशानेबाजी, ड्रिब्लिंग कौशल, साथी खिलाडियों के साथ बढ़िया तालमेल, ये सभी पेले के खेल की खूबियां थीं। पेनल्टी बॉक्स में गोल बनाने की कला में उनका कोई सानी नहीं था। तभी तो 1154 मैचों में उन्होंने 1217 गोल बनाए। वे दुनिया में जहां भी खेले, सम्मान पाया और ‘किक आफ फुटबॉल’ कहलाए।

उनकी फुटबॉल जादूगरी की तुलना अर्जेंटीना के डाइगो माराडोना से हुई। 1979 में तोक्यो में हुए जूनियर विश्व कप के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रहे माराडोना ने अपने बूते 1986 में अर्जेंटीना को विश्व चैंपियन बनाया। मैक्सिको में हुआ यह विश्व कप माराडोना के लाजवाब प्रदर्शन के लिए याद किया जाएगा। फ्री किक पर गोल भेदने की कुशलता इंग्लैंड के डेविड बैकहैम ने दिखाई। ‘बनाना किक’ यानी फ्री किक पर घुमाव देकर गेंद को गोल में पहुंचाने में वे मास्टर रहे। अर्जेंटीना के लियोनेल मैसी भी अपने पांव की कलाकारी से सुखिर्यों में रहते हैं। उन्होंने जितने गोल बनाए उससे कहीं ज्यादा अपने देश या क्लब के खिलाड़ियों से बनवाए। पर इसके बावजूद उनका विश्व कप जीतने का सपना अधूरा है। इस साल जून में रूस में होने वाले फीफा विश्व कप में सपना साकार करने का संभवत: उनके लिए आखिरी मौका होगा।

पिछले कुछ वर्षों से पुर्तगाल के क्रिस्टियानो भी चर्चा में हैं। देश या क्लब की टीम सफलता के लिए उन पर काफी निर्भर रहती है। ऐसा इसलिए भी है कि उनमें गोल बनाने की अद्भुत कला है। स्पेनिश क्लब रियाल मैड्रिड के लिए उन्होंने लाजवाब प्रदर्शन किया है। रक्षा पंक्ति में आपने रोनाल्डो को थोड़ी सी गुंजाइश दी तो समझो गोल हो गया। फ्रांस के जिनेदिन जिदान भी डेढ़ दशक पहले ह्यसैट पीसह्ण से गोल बनाने में माहिर रहे। 2002 चैंपियंस लीग मुकाबले में उन्होंने बेहतरीन गोल से फुटबॉलप्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। फ्रांस के ही माइकल प्लातीनी, इंग्लैंड के वेन रूनी भी अपनी गोल कलाकारी के लिए मशहूर रहे। जितना इतिहास पर नजर दौड़ाएंगे, उतनी ही सूची लंबी होती जाएगी।