हरियाणा में ताइक्वांडो की ट्रेनिंग ले रही एक नाबालिग लड़की ने अपने कोच पर यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है। पुलिस ने बुधवार को यह जानकारी दी है। पुलिस के मुताबिक, पीड़िता के बयान के आधार पर आरोपी के खिलाफ जीरो एफआईआर दर्ज की गई है। मामले को संबंधित जिले रेफर कर दिया गया है। पुलिस का कहना है कि जांच के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।

समाचार एजेंसी एएनआई ने पुलिस के हवाले से बताया कि नाबालिग खिलाड़ी दूसरे जिले की रहने वाली है, लेकिन ताइक्वांडो की ट्रेनिंग के लिए दूसरे शहर में रह रही थी। पिछले दिनों जब वह अपने घर गई, तो उसने परिजनों को कोच के द्वारा यौन शोषण किए जाने की बात बताई। इसके बाद पीड़िता के परिवार वालों ने पुलिस को सूचना दी। पुलिस अधिकारी ने बताया कि जांच की जा रही है। बता दें कि जीरो एफआईआर किसी भी पुलिस थाने में दर्ज कराई जा सकती है।

क्या होती है जीरो एफआईआर?
एफआईआर यानी प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट) एक दस्तावेज होता है, जिसके आधार पर जिस व्यक्ति पर आरोप लगाया गया है, उसे सजा दिलाने के लिए पुलिस कार्यवाही शुरू करती है। यह जानना जरूरी है कि किस तरह के मामले में मुकदमा दर्ज होता है। अपराध दो तरह यानी असंज्ञेय और संज्ञेय के होते हैं।

असंज्ञेय अपराध : ये मामूली अपराध होते हैं। उदाहरण के तौर पर मामूली मारपीट आदि के मामले असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं। ऐसे मामले में सीधे तौर पर एफआईआर नहीं दर्ज होती। पीड़ित/पीड़िता की शिकायत को मजिस्ट्रेट के पास भेजा जाता है। ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट ही आरोपी को समन जारी कर सकता है। उसके बाद मुकदमा शुरू होता है।

संज्ञेय अपराध : इस श्रेणी में गंभीर किस्म के अपराध आते हैं। ऐसे मामले में गोली चलाना, मर्डर, दुष्कर्म, यौन शोषण आदि होते हैं। इनमें सीधे एफआईआर दर्ज की जाती है। सीआरपीसी की धारा-154 के तहत पुलिस को संज्ञेय मामले में सीधे तौर पर एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य होता है।

ऐसे दर्ज कराएं जीरो एफआईआर : किसी भी जिले या स्थान पर घटना हुई हो, यदि वह संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आती है तो किसी भी पुलिस थाने में जीरो एफआईआर दर्ज कराएं। चूंकि यह एफआईआर वारदात वाली जगह वाले थाने के अधिकार क्षेत्र में दर्ज नहीं होती है इसलिए इसमें अपराध संख्या नहीं लिखी जाती है। बाद में पुलिस संबंधित थाने को जीरो एफआईआर स्थानांतरित कर देती है और उसमें अपराध संख्या जोड़ी जाती है। जीरो एफआईआर का फायदा यह होता है कि इससे तत्काल प्रभाव से पुलिसिया कार्रवाई शुरू होने और मौका-ए-वारदात से सुबूत वगैरह इकट्ठा करने में सफलता मिलती है। कई बार एफआईआर में देरी के कारण अपराधी सबूत मिटाने में कामयाब देखे गए हैं। जीरो एफआईआर हो या एफआईआर, शिकायतकर्ता को यह अधिकार होता है कि वह उसे पढ़कर या सुन लेने के बाद हस्ताक्षर ही करे।