अगर किसी इंसान के अंदर जुनून और जज्बा घर कर जाए तो फिर मुश्किलें उसका सामना नहीं कर सकतीं। ऐसा ही एक उदाहरण है भारतीय मुक्कबाज मंजू रानी का जिन्होंने आज यानी कि 13 अक्टूबर को महिला विश्व चैम्पियनशिप में सिल्वर मेडल जीतकर देश का मान बढ़ाया है। पहली बार इस टूर्नामेंट में भाग लेने वाली 19 वर्षीय मंजू को फाइनल मैच में रूस की एकातेरिना पाल्सेवा से 4 . 1 से हार का सामना करना पड़ा। उनके लिए इस मुकाम को हासिल करने का सफर आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने अपने जज्बे से इसे आसान कर दिया।

मंजू हरियाणा के रोहतक के रिठाल फोगाट गांव की रहने वाली हैं। उन्होंने पीटीआई को दिए अपने साक्षात्कार के दौरान बताया कि उनके लिए चीजें इतनी आसान नहीं थी। सीमा सुरक्षा बल में अधिकारी के पद पर तैनात उनके पिता का कैंसर के कारण 2010 में निधन हो गया था। इसके बाद उनकी मां इशवंती देवी ने उनके चार भाई-बहनों का लालन पालन किया। मंजू ने बताया कि मैंने करियर की शुरुआत कबड्डी खिलाड़ी के तौर पर की थी लेकिन वह टीम खेल है। मुक्केबाजी ने मुझे आर्किषत किया क्योंकि यह व्यक्तिगत खेल है। यहां जीत का श्रेय सिर्फ आपको मिलता है।

उन्होंने कहा, मां ने कैरियर चयन के मामले में मेरा पूरा समर्थन किया। उन्होंने हर समय मेरा साथ दिया। मंजू को ओलंपिक पदक विजेता विजेंदर एम सी मेरीकॉम को अपनी प्रेरणा मानती हैं। उन्होंने कहा की उनकी उपलब्धियों को देखकर आपको और मेहनत करने की प्रेरणा मिलती है। मैं उनके खेल को देखती थी और फिर इससे जुड़ने के बारे में सोचा।

चाचा ने निभाया खास रोलः मंजू ने इस मौके पर आपने चाचा साहेब सिंह के योगदान को याद करते हुए कहा वह उनके कारण ही आक्रामक मुक्केबाज बनी। उन्होंने कहा कि मजेदार बात यह है कि वह मुक्केबाजी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते थे। ऐसे में मुझे सिखाने के लिए वह पहले खुद सीखते थे। लेकिन इस खेल का सीखना मेरे लिए अच्छा रहा। उन्होंने बताया कि खेल को सीखने के बाद उन्हें मौके की तलाश थी और हरियाणा से मौका नहीं मिलने पर उन्होंने कही और से खेलने का फैसला किया। (एजेंसी इनपुट के साथ)