महाराष्ट्र के सातारा जिले की सूखा प्रभावित मान तहसील की ललिता बाबर के माता-पिता रियो ओलंपिक में स्टीपलपेस फाइनल में बेटी के 10वें स्थान पर रहने से दुखी हैं लेकिन उन्हें उस पर गर्व भी है। ललिता के पिता शिवाजी बाबर ने कहा ,‘‘हमें गर्व है क्योंकि उसने ओलंपिक में भारत के लिये खेला और फाइनल तक पहुंची। उसके लिये दुखी हैं क्योंकि वह विषम परिस्थितियों का सामना करके वहां तक पहुंची और उसे जीत का भरोसा था।’’ उन्होंने कहा ,‘‘वह पदक नहीं जीत सकी लेकिन आगे भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करती रहेगी। हम उसकी हौसला अफजाई करते रहेंगे।’’
मान देशी एक्सप्रेस’ के नाम से मशहूर ललिता के पिता ट्रक ड्राइवर है और आर्थिक रूप से वह काफी कमजोर परिवार से है। बाबर ने कहा ,‘‘ यहां अभ्यास सुविधाओं के अभाव और पर्वतीय इलाके के कारण उसने काफी कठिनाइयां झेली हैं। वह हमारे गांव में स्कूल के आसपास अभ्यास करती थी।’’ गांव के स्कूल के शारीरिक शिक्षा के टीचर मुगुट पटोले ने कहा कि ललिता को खो-खो का शौक था लेकिन बाद में वह लंबी दूरी की धाविका बनी। उन्होंने कहा ,‘‘ वह खेत में अपने मां बाप के साथ काम करती थी और स्कूल जाने में देरी ना हो, इसलिये दौड़कर आती थी। इसी ने उसे मजबूत बनाया।’’
ललिता बाबर क्वालीफिकेशन दौर का अपना शानदार प्रदर्शन बरकरार नहीं रख सकी और महिलाओं की 3000 मीटर स्टीपलचेस में 10वें स्थान पर रही। बाबर ने नौ मिनट 22.74 सेकंड का समय निकाला जो उसके राष्ट्रीय रिकॉर्ड (नौ मिनट 19.76 सेकंड) से तीन सेकंड कम है। दसवें स्थान पर रहने के बावजूद बाबर का प्रदर्शन ट्रैक और फील्ड में 1984 लास एंजीलिस ओलंपिक में 400 मीटर बाधा दौड़ में चौथे स्थान पर रहने वाली पीटी उषा के बाद भारत की ओर से सर्वश्रेष्ठ रहा।