एक्सप्रेस न्यूज सर्विस। भारत में क्रिकेटर्स के अलावा बाकी खिलाड़ियों की लोकप्रियता बहुत सीमित है। भारतीय लोग ओलंपिक मेडलिस्ट से ज्यादा इंफ्लूएंर्स को पहचानते हैं। यह हमारा कहना नहीं है। यह भारतीय हॉकी के उप-कप्तान हार्दिक सिंह का दर्द है। हार्दिक सिंह का मानना है कि उनके पास भले ही लग्जरी गाड़ियां न हो लेकिन उन्होंने काफी कुछ ऐसा हासिल किया है जिसके कारण लोग उन्हें पहचान सकते हैं।

हार्दिक सिंह को लोगों ने नहीं पहचाना

एक्सप्रेस अड्डा में हार्दिक सिंह ने बताया कि हाल ही में एयरपोर्ट पर वह जब पहुंचें तो लोग उन्हें छोड़कर डॉली चायवाला इंफ्लूएंसर के साथ तस्वीरें ले रहे थे। हार्दिक को यह देखकर दुख हुआ कि दो ओलंपिक मेडल जीतने के बावजूद लोग उन्हें नहीं पहचानते हैं।

सफल होने से पहले खिलाड़ियों को पहचाने लोग

उन्होंने कहा, ‘मैं डॉली के खिलाफ कुछ नहीं कहूंगा। वह अपना काम कर रहा है। लोग उसे देखना चाहते हैं इसलिए उसकी रील वायरल है। उसे मिल रही लोकप्रियता में कुछ गलत है। लेकिन लोगों को यह भी तय करना चाहिए कि लोग अपने बच्चों को बताए कि हॉकी में कौन देश का प्रतिनिधित्व करता है। आप पैरालंपियंस को देखिए। जब तक वह मेडल नहीं जीत जाते हैं कोई नहीं जानता है कि वह कौन है।

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर आप खिलाड़ियों को तब पहचाने और उनकी सराहना करे तो खिलाड़ियों के अंदर अलग जोश आ जाता है। मैं 12 साल की उम्र से खेल रहा हूं। घर से दूर होस्टल में रह रहा हूं। परिवार के कई अहम समारोह में नहीं जा पाता हूं। नया साल कैंप में मनता है। बहुत कुछ त्यागना पड़ता है। जब लोग पहचानते हैं तो यह अलग फीलिंग होती है।’

हार्दिक ने कहा- हमारे पास नहीं है रेंज रोवर्स

हार्दिक ने यहां यह भी कहा कि बच्चों को खेल में इसलिए नहीं भेजा जाना चाहिए कि वहां उसे पैसा मिलेगा। हार्दिक ने कहा, ‘अगर आप अपने बच्चे को इसलिए भेज रहे हैं कि उसे पैसा मिलेगा तो यह गलत है। हम बाकी हॉकी देशों के मुकाबले अच्छी स्थिति में है। हमें नौकरी भी मिल रही है। हम चाहते हैं कि आप बच्चों को खेल की विरासत के कारण भेजे। हमारे पास रेस रोवर्स नहीं है लेकिन हमने देश को गौरव करने का मौका दिया है। 41 साल बाद देश के लिए मेडल जीता और फिर 52 साल बाद बैक टू बैक मेडल जीते।’