भारतीय हॉकी टीम के दिग्गज गोलकीपर पीआर श्रीजेश एशियन गेम्स के लिए कमर कस चुके हैं। एशियाड के लिए चीन रवाना होने से पहले उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत की। इस बातचीत में उन्होंने अपने जीवन और अपने करियर से जुड़ी कई समस्याओं पर बात की है। वर्ल्ड हॉकी में पीआर श्रीजेश को उनकी सहज प्रवृत्ति के लिए जाना जाता है। उन्होंने एक्सप्रेस के साथ बातचीत में बताया है कि आखिर कैसे उन्हें इंडियन टीम में एडजस्ट करने में दिक्कत हुई थी? जहां नॉर्थ इंडिया के अधिक खिलाड़ियों का दबदबा रहता है।

श्रीजेश ने दिया इस सवाल का जवाब

पीआर श्रीजेश से इस बातचीत के दौरान सवाल किया गया कि आपको राष्ट्रीय टीम में एडजस्ट करना कितना कठिन था? क्योंकि हॉकी टीम में नॉर्थ इंडिया के खिलाड़ियों का दबदबा है और आपको हिंदी भी नहीं आती थी। ऐसे में अपनी जगह बनाने में आपको कितनी कठिनाई हुई? श्रीजेश ने इसका जवाब देते हुए कहा कि वाकई मुझे शुरुआत में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। मुझे खाना, मौसम और भाषा की काफी दिक्कत आई थी।

सांबर खाने वाले श्रीजेश को मिलती थी दाल-रोटी

श्रीजेश ने आगे कहा कि जब मैं पहली बार हॉकी टीम के कैंप में पहुंचा तो सच में पागल हो गया था, क्योंकि मुझे वहां ज्यादातर दाल-रोटी और चावल मिलते थे और मुझे सांबर पसंद था, लेकिन हमें कभी सांबर नहीं मिलता था। यहां तक कि चिकन को भी पकाने का तरीका अलग था। श्रीजेश ने बताया कि शुरुआत में मुझे लैंग्वेंज की भी काफी दिक्कत आई थी। टीम के साथी खिलाड़ियों के साथ तालमेल बिठाने में बहुत दिक्कत होती थी। इसके अलावा मुझे नॉर्थ इंडिया के मौसम की भी आदत नहीं थी। कई बार तो मैंने सबकुछ छोड़कर भागने का भी सोचा था।

टीम में उस वक्त कई चीजें खराब थीं- पीआर श्रीजेश

श्रीजेश ने आगे बताया कि लैंग्वेंज की समस्या होने के कारण मुझे बात करने वाला कोई नहीं मिलता था। सिर्फ एक चीज ही मुझे मदद कर रही थी कि गोलकीपर होने के नाते मुझे मैदान पर सभी खिलाड़ियों के साथ तालमेल बिठाना होता था। इसके अलावा टीम में भी कई समस्याएं थी, उदाहरण के तौर पर अगर आप किसी के दोस्त नहीं हैं तो आपको गेंद मिलने की संभावना बहुत कम थी। हालांकि मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था, मैं बस अपने गेम पर फोकस कर रहा था।