इसकी वजह उन्हें साल 2021-22 के लिए एफआइएच के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के पुरस्कार से नवाजा जाना है। यह सम्मान पाकर वह उन विशिष्ट खिलाड़ियों की जमात में शामिल हो गए हैं, जिन्होंने लगातार दो बार इस सम्मान को प्राप्त किया है। लगातार दो बार सम्मान पाने वाले खिलाड़ी नीदरलैंड के तेउन डि नूइर, आस्ट्रेलिया के जेमी ड्वेयर और बेल्जियम के आर्थर वान डोरेन हैं।

हरमनप्रीत को साल 2021-22 की एफआइएच प्रो लीग में शानदार प्रदर्शन ने उन्हें लगातार दूसरी बार इस सम्मान तक पहुंचाया। उन्होंने इस लीग में 16 मैचों में 18 गोल जमाकर भारत को एक समय पहली बार चैंपियन बनाने की तरफ बढ़ा दिया था। भारत को चैंपियन बनने के लिए नीदरलैंड के खिलाफ आखिरी दो मैच जीतने थे। भारत पहले मैच को टाईब्रेकर में खींचने में सफल हो गया था। लेकिन वह जीत पाने में कामयाब नहीं हो सका और उसे तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा। वहीं नीदरलैंड चैंपियन और बेल्जियम दूसरे स्थान पर रही थी।

हरमनप्रीत ने इसके बाद एशिया कप में भारत के हर मैच में गोल जमाकर भारत को पोडियम पर चढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने इसमें छह मैचों में आठ गोल जमाए। हरमनप्रीत इन प्रदर्शनों से ही सबसे ज्यादा 29.4 अंक पाने में सफल रहे। थिएरी ब्रिंकमैन 23.6 अंकों के साथ दूसरे और टाम बून 23.4 अंकों से तीसरे स्थान पर रहे।

हरमनप्रीत वास्तव में भारतीय हाकी में भरोसे का नाम बन गया है। डिफेंस में उनकी मौजूदगी टीम में भरोसा बनाती है। इसकी वजह वह डिफेंस में तेज तर्रार अंदाज में बचाव करते हैं, साथ ही पेनल्टी कार्नरों को गोल में बदलने की क्षमता से भारत की किस्मत बदलने में अहम भूमिका निभाई है। चाहे टोक्यो ओलंपिक में चार दशक बाद कांस्य के रूप में पदक जीतना हो या फिर बर्मिंघम कामनवेल्थ गेम्स में रजत पदक जीतना, सभी में हरमनप्रीत ने अहम भूमिका निभाई है।

पहले पेनल्टी कार्नरों को गोल में नहीं बदल पाना भारत की प्रमुख कमजोरी माना जाता था। लेकिन हरमनप्रीत की मेहनत ने अब इसे टीम की ताकत बना दिया है। हरमनप्रीत सिंह ने यह सम्मान पाने के बाद कहा कि मेरे लिए एफआइएच का यह सम्मान पाना बहुत मायने रखता है। मैंने हमेशा अपना बेस्ट देकर टीम की सफलता में योगदान करने का प्रयास किया है। उस समय बहुत अच्छा लगता है, जब आपकी कड़ी मेहनत को एफआइएच इस पुरस्कार के माध्यम से मान्यता देता है।

हरमनप्रीत इस मुकाम तक कड़ी मेहनत करने के बाद पहुंचे हैं। उन्होंने 2014 में न्यूजीलैंड के खिलाफ भारतीय जूनियर टीम में स्थान बनाया और जौहर कप में वह नौ गोल जमाकर शानदार प्रदर्शन से अपनी छाप भी छोड़ी। इस प्रदर्शन की वजह से ही वह अगले साल जापान के खिलाफ तीन मैचों की द्विपक्षीय सीरीज के लिए पहली बार सीनियर टीम में चुने गए। शुरुआती दौर में वह टीम से अंदर-बाहर होते रहे।

लेकिन 2016 के रियो ओलंपिक में खराब प्रदर्शन की वजह से टीम से बाहर हुए तो एक बार तो लगा कि अब उनकी टीम में वापसी आसान नहीं होगी। वह रियो में एक भी गोल जमाने में कामयाब नहीं हो सके थे। लेकिन इसी साल हुए जूनियर विश्व कप में शानदार प्रदर्शन करके वह सीनियर टीम में फिर से वापसी करने में सफल हो गए।

हरमनप्रीत सिंह ने ड्रेग फ्लिकर की भूमिका के लिए जमकर मेहनत की और वह पिछले तीन-चार सालों में अपने को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शेप में ढालने में सफल रहे हैं। इस दौरान उन्होंने अपनी ऐसी छवि बना ली है कि उनकी अनुपस्थिति को अब महसूस किया जाने लगा है। वह मौजूदा समय में भारतीय टीम के उपकप्तान भी हैं। पिछले कुछ सालों में भारत की सभी प्रमुख सफलताओं में उनकी भूमिका अहम रही है। हरमनप्रीत के साथ भारतीय पुरुष और महिला टीमों के गोलकीपरों पीआर श्रीजेश और सविता पूनिया को एफआइएच द्वारा साल के सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर चुने जाने की खुशखबरी भी आई है। यही नहीं मुमताज खान को सर्वश्रेष्ठ उभरती खिलाड़ी चुना जाना भी देश में हाकी की प्रगति की कहानी को बतलाती है।

भारतीय गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने अपने शानदार बचाव से भारतीय हाकी को एक नई पहचान दी है। वह कई बार भारतीय डिफेंस की रीढ़ साबित हुए हैं।टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने अपने शानदार प्रदर्शन से टीम को पोडियम पर चढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई।

इस कारण वह भारतीय हाकी के सबसे चहेते खिलाड़ी बन गए। उनके इस प्रदर्शन की वजह से ही हाकीप्रेमियों ने अपने वोट देकर साल का सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर चुना है। उन्होंने कहा, …..इस अवार्ड के हमारे लिए बहुत मायने हैं, क्योंकि यह हाकीप्रेमियों के वोटों के आधार पर मिलता है।……

श्रीजेश की तरह ही भारतीय महिला हाकी टीम की गोलकीपर सविता पूनिया को भी एफआइएच ने साल की सर्वश्रेष्ठ महिला गोलकीपर के सम्मान से नवाजा है। सविता को भी श्रीजेश की तरह ही बेहतरीन गोलकीपर माना जाता है। टोक्यो ओलंपिक में किए शानदार प्रदर्शन को कौन भुला सकता है। बर्मिंघम राष्टमंडल में तो उन्होंने रानी रामपाल की अनुपस्थिति में भारतीय टीम की अगुआई करके उसे 16 साल बाद पदक दिलाया था।