भारत में जितनी प्रमुखता क्रिकेट को दी जाती है उतनी किसी और खेल को नहीं। भले ही अन्य खेलों में खिलाड़ी देश के नाम रोशन कर लें लेकिन उन्हें उतना सम्मान, शोहरत और पैसा नहीं मिल पाता जितना क्रिकेटर्स को। कई बार ऐसा भी देखा गया कि दूसरे स्पोर्ट्स में देश का परचम लहरा चुके खिलाड़ी आज दाने-दाने को मोहताज हैं।
कुछ इसी तरह की कहानी जे. मोहन कुमार की भी है। भारतीय टीम के लिए फुटबॉल में बतौर डिफेंडर खेल चुके मोहन आज अपने परिवार का पेट पालने के लिए सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने को मजबूर हैं। बैंगलोर के माउंट कार्मेल कॉलेज के गेट पर बैठा ये शख्स जब बीते दिनों को याद करता है तो बेहद भावुक हो जाता है। बतौर कोच और खिलाड़ी अपने 30 साल के करियर में मोहन 1977 में फेडरेशन कप जीतने वाली टीम के अहम सदस्य रह चुके हैं। साथ ही गार्डन सिटी कॉलेज फुटबॉल टीम के कोच भी। लेकिन विपरीत हालात के चलते उन्होंने खेल को छोड़ दूसरी नौकरी तलाश करनी शुरू कर दी।
तमिलनाडु में जन्मे मोहन 16 साल की उम्र में बैंगलोर शिफ्ट हो गए थे। उन्होंने 515 आर्मी बेस वर्कशॉप के लिए खेलना शुरू किया और जल्द ही राष्ट्रीय टीम में भी जगह बना ली। मोहन के बेहतरीन खेल की बदौलत उनकी टीम स्टैफोर्ड चैलेंज कप-1980 के फाइनल में जगह बनाने में कामयाब रही। मगर बेहद दुख की बात है कि आज ये पूर्व खिलाड़ी इन खराब परिस्थितियों से गुजर रहा है।
मोहन का कहना है कि ‘मैं काफी वक्त तक बेरोजगार रहा। मैं बिना पैसा कमाए घर पर नहीं बैठ सकता था। इसके चलते मैंने बेहिचक इस नौकरी को अपना लिया। आज इसी की बदौलत मैं अपने परिवार को पाल रहा हूं।’
