दीपा कर्माकर ने रियो ओलंपिक के लिए क्‍वालिफाई कर लिया है। ऐसा करने वालीं वे पहली भारतीय महिला है। ओलंपिक के लिए क्‍वालिफाई करने के कुछ ही घंटों बाद दीपा ने रियो ओलंपिक खेलों की परीक्षण प्रतियोगिता में वाल्टस फाइनल में गोल्ड मेडल जीता। 22 साल की दीपा 14.833 प्वॉइंट के अपने बेस्ट प्रदर्शन के साथ महिला वाल्टस फाइनल में टॉप पर रहीं। दीपा ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की।

दीपा के पिता दुलाल कर्माकर इस बात को लेकर परेशान थे कि दीपा को बंगाली मीडियम स्‍कूल में पढ़ाएं या फिर अंग्रेजी स्‍कूली में। उनकी इस दुविधा को भी दीपा ने ही दूर किया था। दीपा ने पिता से कहा था कि अंग्रेजी स्‍कूल में जाऊंगी तो जिम्‍नास्टिक की प्रेक्टिस नहीं कर पाऊंगी। उस समय दीपा की उम्र महज सात साल की थी। इस वजह यह थी कि बांग्‍ला स्‍कूल जिम्‍नास्टिक्‍स हॉल का उपयोग करने की इजाजत देती थी। दुलाल कर्माकर बताते हैं कि,’हम परेशान थे कि हम उसे अंग्रेजी से दूर रखकर सही कर रहें है या नहीं। लेकिन वह जिद पर अड़ी रही।’ उनके पिता के अनुसार अंग्रेजी सीखने का मोह छोड़कर दीपा ने सबसे बड़ा त्‍याग किया।

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दीपा के पिता ने बताया,’ वह अभी राजनीतिक विज्ञान में मास्‍टर्स कर रही है।’ दीपा मूलत: त्रिपुरा की रहने वाली है। शुरुआत के दिनों में दीपा जिम्‍नास्‍ट को लेकर अनमनी थी। वह एक ही स्‍टेप बार-बार करके खुश नहीं थी लेकिन उसने खेल को नहीं छोड़ा। दीपा के पिता भारतीय खेल प्राधिकरण में वेटलिफ्टिंग के कोच हैं। वे कहते हैं’वह जिद्दी थी। अगर उसने ठान लिया कि कुछ पाना है तो उसे पाए बगैर वह बैठेगी नहीं। पहले नेशनल चैंपियनशिप, फिर इंडिया टीम, फिर कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स और अब ओल‍ंपिक।’

ओलंपिक के लिए क्‍वालिफाई करने के बाद दीपा ने घर पर मैसेज भेजा,’ हम क्‍वालिफाई हो गया।’ ओलंपिक क्‍वालिफिकेशन के लिए दीपा ने अक्‍टूबर और अप्रैल में हुए नेशनल चैंपियनशिप्‍स को भी छोड़ दिया। 2010 दिल्‍ली कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स में पदक न जीत पाने के बाद दीपा कई दिनों तक रोती रही थी। 2014 में पदक जीतकर उसने पिछली बार की गलती की भरपाई की।