चार अप्रैल को क्रिकेट इतिहास के सबसे कंजूस बॉलर की ख्याती पा चुके भारत के पूर्व स्पिनर बापू नाडकर्णी का 85वां जन्मदिन है। नापडकर्णी का जन्म 4 अप्रैल, 1933 को महाराष्ट्र के नासिक जिले में हुआ था। बापू नाडकर्णी ने 1950-51 में पहली बार रोहिंटन बारिया ट्रॉफी में पुणे यूनिवर्सिटी की तरफ से क्रिकेट मैदान पर पदार्पण किया था। उसके अगले ही साल उन्होंने महाराष्ट्रा के लिए फर्स्ट क्लास क्रिकेट में डेब्यू किया था। इसके दो साल बाद ब्रबोर्न स्टेडियम में मुंबई के खिलाफ उन्होंने अपना पहला शतक लगाया। नाडकर्णी ने तीन घंटे की बल्लेबाजी में ही नाबाद 103 रन की पारी खेली थी और आखिरी विकेट के लिए सदाशिव पाटिल के साथ 103 रन की साझेदारी की। साल 1955-56 में न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज के दौरान वीनू मांकड़ किसी वजह से नहीं खेल पाए। फिरोजशाह कोटला के मैदान पर मैच खेला जा रहा था और इसी मैच में बापू नाडकर्णी को पहली बार भारतीय टीम की अंतिम एकादश में शामिल किया गया था।
इस मैच में बापू नाडकर्णी ने बल्ले से नाबाद 68 रन की पारी खेली, लेकिन 57 ओवर की गेंदबाजी करने के बावजूद उन्हें कोई विकेट नहीं मिल सका। वीनू मांकड़ जब टीम में लौटे तो नाडकर्णी को फिर बाहर बैठना पड़ा। उसी साल बापू नाडकर्णी को महाराष्ट्र टीम का कप्तान बनाया गया। बापू नाडकर्णी को उनकी लाइन लेंथ के लिए याद किया जाता है, उनकी गेंदों पर बल्लेबाज के लिए रन स्कोर करना बेहद मुश्किल होता था। कहा जाता है कि जब वो नेट पर गेंदबाजी अभ्यास करते थे तो स्टंप पर सिक्का रखते थे और अपनी गेंदों से उसे हिट करके गिराने का प्रयास करते थे, कई बार वो सफल भी रहते थे। बापू नाडकर्णी का पूरे करियर में औसत 2 रन प्रति ओवर से भी कम का है। बापू नाडकर्णी को 1963-64 इंग्लैंड के खिलाफ मद्रास टेस्ट मैच में की गई उनकी गेंदबाजी के लिए याद किया जाता है। मैच के तीसरे दिन बापू नाडकर्णी का गेंदबाजी विश्लेषण था, 29 ओवर, 26 मेडन और बिना विकेट हासिल किए तीन रन।
जब यह मैच खत्म हुआ उस समय बापू नाडकर्णी का गेंदबाजी विश्लेषण था 32-27-5-0, नाडकर्णी ने इस मैच में 114 मिनट गेंदबाजी करते हुए लगातार 21 मेडन ओवर फेंकने का विश्व रिकॉर्ड बनाया जिसे आज तक तोड़ा नहीं जा सका है। इस टेस्ट सीरीज के आखिरी मैच में नाडकर्णी ने बल्ले से नाबाद 52 और नाबाद 122 रनों की पारी खेली थी, जो टेस्ट क्रिकेट में उनका एक मात्र शतक है। बापू नाडकर्णी ने 1964-65 में आॅस्ट्रेलिया के खिलाफ मद्रास में खेले गए टेस्ट मैच में पहली पारी में 31 रन देकर पांच और दूसरी पारी में भी 91 रन देकर 6 विकेट चटकाए थे। लेकिन, बिशन सिंह बेदी के टीम में आने के बाद बापू नाडकर्णी को मौका मिलना कम हो गया। उन्हें 1967 में इंग्लैंड दौरे के लिए टेस्ट टीम में स्थान नहीं मिला। उसी साल न्यूजीलैंड दौरे पर वेलिंगटन टेस्ट मैच में उन्होंने अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी करते हुए 43 रन देकर 6 विकेट चटकाए और भारत को जीत दिला दी।
टेस्ट क्रिकेट में भारत के सबसे किफायती गेंदबाज हैं, जबकि दुनिया के किफायती गेंदबाजों की लिस्ट में वो चौथे नंबर पर आते हैं। इंग्लैंड के विलियम एटवेल (10 टेस्ट मैच, इकॉनमी रेट 1.31), इंग्लैंड के ही क्लिफ ग्लैडविन (8 टेस्ट मैच, इकॉनमी रेट 1.60) और दक्षिण अफ्रीका के ट्रेवर गॉडर्ड (41 टेस्ट मैच, इकॉनमी रेट 1.64) ही इस लिस्ट में नंदकर्णी से ऊपर हैं। बापू नाडकर्णी ने 41 टेस्ट मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व किया, जिसमें उन्होंने 29.07 की औसत से 88 विकट चटकाए। इस दौरान उनका इकॉनमी रेट 1.67 का रहा। उन्होंने अपने अंतरराष्ट्रीय टेस्ट करियर में 4 बार टेस्ट मैच की एक पारी में पांच या अधिक विकेट और दो बार 4 विकेट लिया। वहीं, बापू नाडकर्णी के नाम 191 प्रथम श्रेणी मैचों में 21.37 की औसत और 1.64 की इकॉनमी रेट से 500 विकेट दर्ज है।

