भारतीय पुरुष हॉकी टीम जैसे ही 41 साल बाद ओलंपिक खेलों में ब्रॉन्ज मेडल जीती, लोगों के जहन में एक बार फिर हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की यादें ताज़ा हो गई। लोग ध्यानचंद को सम्मान देने की बातें करने लगे। जिसके बाद सरकार ने राजीव गांधी खेल रत्ना अवार्ड का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न कर दिया।
ध्यानचंद ने अपनी हॉकी स्टिक से दुनिया भर में डंका बजाया था। जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर भी उनके फैन थे। ध्यानचंद हॉकी के पहले सुपेरस्टर थे। उन्होंने भारत को लगातार तीन ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल जिताया था। भारत ने एम्स्टर्डम 1928, लॉस एंजिल्स 1932 और बर्लिन 1936 में पदक अपने नाम किए थे। उन टूर्नामेंटों के दौरान, भारत बहुत मजबूत टीम थी। दुनिया की कोई भी टीम भारत को टक्कर नहीं दे पाती थी। अधिकांश मैचों में भारत भारी अंतर से जीत दर्ज़ करता था।
भारत ने 1928 के फाइनल में मेजबान नीदरलैंड को 3-0 से हराया, 1932 के स्वर्ण पदक मैच में संयुक्त राज्य अमेरिका को 24-1 के बड़े अंतर से हराया, जबकि जर्मनी 1936 के निर्णायक मुकाबले में 8-1 से हराया था। इस दौरान ध्यानचंद ने कुल मिलाकर 12 ओलंपिक मैच खेले, जिसमें 33 गोल किए।
भारत को स्वतंत्रता मिलने से 11 साल पहले यानी 1936, 15 अगस्त के दिन ध्यानचंद की अगुआई में भारतीय हॉकी टीम ने करिश्माई प्रदर्शन करते हुए बर्लिन ओलिंपिक फाइनल में जर्मनी को हराकर पीला तमगा अपने नाम किया था। उस मैच में हिटलर की मौजूदगी भी थी। हिटलर ध्यानचंद के खेल से इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने ध्यानचंद को जर्मन कि नागरिकता ऑफर की थी और अपनी आर्मी में कर्नल के पद की पेशकश की थी। हालांकि उनके इस ऑफर को भारतीय दिग्गज ने ठुकरा दिया था।