Chandrababu Naidu More Children Remark: देशभर में पिछले दिनों दक्षिण भारत के दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बयान जबरदस्त चर्चा में रहे। बयानों को लेकर चर्चा होने की वजह यह थी कि दोनों ही मुख्यमंत्रियों ने ज्यादा बच्चे पैदा करने की बात कही। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि दक्षिण में विशेषकर आंध्र प्रदेश में लोगों को कम से कम दो या उससे ज्यादा बच्चे पैदा करने चाहिए जबकि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने तो 16 बच्चे पैदा करने तक की बात कही है।
इसके बाद से ही सोशल मीडिया से लेकर आम लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि आखिर सियासत का अच्छा-खासा अनुभव रखने वाले इन दोनों नेताओं ने ज्यादा बच्चे पैदा करने पर जोर क्यों दिया है? वह भी ऐसे वक्त में जब यह कहा जा रहा है कि भारत की आबादी तेजी से बढ़ रही है और हमें जनसंख्या नियंत्रण पर काम करना चाहिए।
याद दिलाना होगा कि पिछले कई वर्षों से भारत सरकार ‘हम दो हमारे दो’ की बात कहती रही है और इसके बीच ही दक्षिण भारत के दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों के ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले बयान को लेकर निश्चित रूप से लोगों को हैरानी होनी ही थी।
दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बयानों को समझने के लिए हमें फर्टिलिटी रेट सहित कई और अहम बातों को समझना होगा। भारत में फर्टिलिटी रेट यानी प्रजनन दर लगातार गिरती जा रही है और इस वजह से देश में वृद्धावस्था यानी बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है। ऐसा अनुमान है कि 2050 तक हर पांच में से एक शख्स 60 साल या इससे अधिक की उम्र का होगा और दक्षिण के राज्यों में इसका असर कहीं ज्यादा होगा और इससे नायडू और स्टालिन की चिंता को समझा जा सकता है।
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क्या कहती है India Ageing Report 2023?
यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड और और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (IIPS) की ओर से तैयार की गई India Ageing Report 2023 के मुताबिक आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में बुजुर्गों की आबादी न केवल उत्तर भारत के राज्यों जैसे- बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, राजस्थान और मध्य प्रदेश की तुलना में पहले से ही ज्यादा है बल्कि 2021 और 2036 के बीच यह और अधिक दर से बढ़ेगी।
इसे दक्षिण भारत के राज्यों के लिए थोड़ा और ढंग से समझते हैं।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, केरल की आबादी में बुज़ुर्गों की हिस्सेदारी 2021 में 16.5% से बढ़कर 2036 में 22.8% हो जाएगी, यानी यह 6% से थोड़ा ज्यादा बढ़ जाएगी। इसी तरह तमिलनाडु में 13.7% से 20.8%, आंध्र में 12.3% से 19% तक की बढ़ोतरी होगी, कर्नाटक में बुज़ुर्गों की आबादी 11.5% से बढ़कर 17.2% हो जाएगी और तेलंगाना में यह 11% से 17.1% हो जाएगी।
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उत्तर भारत में कम है बुजुर्गों की आबादी बढ़ने की रफ्तार
दूसरी ओर, उत्तर भारत में बुजुर्गों की आबादी बढ़ने की रफ्तार दक्षिण भारत के मुकाबले काफी कम है। जैसे- बिहार में बुज़ुर्गों की आबादी 7.7% से बढ़कर 11% हो जाएगी (3.3% की बढ़ोतरी)। उत्तर प्रदेश में भी लगभग इतनी ही बढ़ोतरी होगी और यहां बुजुर्गों की आबादी 8.1% से बढ़कर 11.9% हो जाएगी। झारखंड में यह 8.4% से बढ़कर 12.2%, राजस्थान में 8.5% से बढ़कर 12.8% और मध्य प्रदेश में 8.5% से बढ़कर 12.8% हो जाएगी।
इसे अगर आप आसान भाषा में समझें तो 15 साल के अंतराल में दक्षिण भारत में बुजुर्गों की आबादी 6 से 7% बढ़ जाएगी जबकि उत्तर भारत में यह तीन से चार प्रतिशत होगी।
India Ageing Report 2023 के मुताबिक प्रति 100 बच्चों (15 वर्ष से कम) पर बुजुर्गों (60 वर्ष से अधिक) की संख्या मध्य और पूर्वोत्तर क्षेत्रों की तुलना में दक्षिण और पश्चिम में अधिक होगी। दक्षिणी राज्यों में 2036 तक प्रति 100 बच्चों पर 61.7 बुजुर्ग होंगे, वहीं जम्मू -कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान में कुल मिलाकर यह संख्या प्रति 100 बच्चों पर 38.9 बुजुर्ग होगी।
उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में यह आंकड़ा और भी कम मतलब 100 बच्चों पर 27.8 बुजुर्ग होगा। आप समझ सकते हैं कि यह अंतर कितना ज्यादा है।
दक्षिण में काफी कम है प्रजनन दर
IIPS, मुंबई में डेमोग्राफिक्स विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर श्रीनिवास गोली ने बताया कि जनगणना के एक हिस्से के रूप में लिए गए सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के मुताबिक, आंध्र प्रदेश में प्रजनन दर 1.5 है, कर्नाटक में 1.6, केरल में 1.5, तमिलनाडु में 1.5 और तेलंगाना में 1.5 है जबकि प्रजनन दर के लिए भारत का राष्ट्रीय औसत 2 है।
गोली कहते हैं कि भारत में प्रजनन दर बहुत तेजी से कम होती जा रही है। आंकड़ों के मुताबिक, किसी भी वयस्क महिला के छह बच्चों से घटकर 2.1 बच्चे पर आने में फ्रांस को 285 साल लगे, इंग्लैंड को 225 साल लगे जबकि भारत को इसमें सिर्फ 45 साल लगे। इससे प्रजनन क्षमता में बदलाव को समझा जा सकता है। गोली कहते हैं कि इस वजह से दक्षिण भारतीय राज्य अमीर होने से पहले बूढ़े हो रहे हैं।

लोकसभा सीटों के परिसीमन में घटेगी दक्षिण की ताकत
आबादी को लेकर एक सवाल भारत में लोकसभा सीटों के परिसीमन से भी जोड़ा जाता है। साल 2026 में देश भर में लोकसभा सीटों का परिसीमन होना है और दक्षिण भारत के राज्यों को ऐसा डर है कि परिसीमन में उत्तर भारत में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ सकती है जबकि दक्षिण की हिस्सेदारी कम हो सकती है। भारत में लोकसभा सीटों की सीमाएं और उनकी संख्या आबादी के हिसाब से तय की जाती हैं।
अगर यही जन्म दर रही तो आंध्र प्रदेश में लोकसभा सीटों की संख्या 25 से घटकर 20, कर्नाटक में 28 से घटकर 26, केरल में 20 से घटकर 14, तमिलनाडु में 39 से घटकर 30 और तेलंगाना में 17 से घटकर 15 हो सकती है। दूसरी ओर उत्तर भारत के राज्यों में इसका उलट होगा।
उत्तर भारत में चूंकि राज्य ज्यादा हैं और आबादी भी ज्यादा है इसलिए यहां लोकसभा की सीटें बढ़ेंगी और निश्चित रूप से इससे संसद में उनकी आवाज दक्षिण के मुकाबले कहीं ज्यादा मजबूत होगी।