मुगल बादशाहों (Mughal Emperors) के शौक निराले थे। किसी को शेर और चीता जैसे जंगली जानवरों को पालने का शौक था तो कोई हाथियों की लड़ाई में दिलचस्पी रखता था। तमाम मुगल बादशाह शतरंज में बहुत दिलचस्पी रखते थे और चाव से खेला करते थे। मुगल बादशाह अकबर (Akbar) का तो पसंदीदा शगल ही शतरंज था। फतेहपुर सीकरी (Fatehpur Sikri) के किले में अक्सर शतरंज (Chess) खेला करते थे। कई बार अंतरराष्ट्रीय मैच भी आयोजित किये जाते थे।

जब जहांगीर के दरबार में लग गई शर्त

मुगल बादशाह जहांगीर (Jahangir) के शासनकाल में ऐसा ही एक अंतरराष्ट्रीय मैच आयोजित किया गया। इस मुकाबले में एक तरफ थे जहांगीर के खास दरबारी और दूसरी तरफ फारस के राजदूत। Indian Express की सीरीज Make History Fun Again में अर्चना गारोड़िया गुप्ता और श्रुति गारोड़िया लिखती हैं कि दोनों के बीच शतरंज का यह मुकाबला 3 दिनों तक लगातार चलता रहा। एक से बढ़कर एक चालें चली गईं और अंत में फारस के राजदूत को हार का सामना करना पड़ा।

चूंकि इस बाजी में शर्त लगी थी कि जो भी हारेगा उसे भरे दरबार में गधे की तरह चलना पड़ेगा। शर्त के मुताबिक हार के बाद फारस के राजदूत को ‘गधा’ बना दिया और भरे दरबार में रेंगना पड़ा था।

‘इश्कबाजी’ था पसंदीदा खेल

मुगल सल्तनत में ‘इश्कबाजी’ मशहूर खेल था। इश्कबाजी यानी कबूतरों की लड़ाई। उन दिनों भारत ही नहीं बल्कि एशिया के तमाम मुल्कों में कबूतरों की लड़ाई के मुकाबले होते थे। मुगल बादशाहों के पास करीब 20,000 ट्रेंड कबूतर हुआ करते थे जो तकरीबन हर तरह के काम कर लेते थे। सबसे हाई क्वालिटी के कबूतरों को ‘खास’ कहा जाता था जो एक बार में 15 चरखा और 75 बाजियों की कलाबाजी दिखा सकते थे। ये चिट्ठियां लाने-ले जाने का काम भी किया करते थे।

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गोवर्धन की मशहूर पेंटिंग में शेर और बछड़े के साथ अकबर.  (Source: Wikimedia Commons)

हाथी की लड़ाई में बाल-बाल बच गए थे अकबर

मुगल सल्तनत में तमाम जानवरों की लड़ाई के मैच आयोजित किये जाते थे। जंगली भैंसों से लेकर बकरियों, मुर्गियों, तीतर, बटेर की लड़ाई होती थी। हाथियों की लड़ाई सिर्फ बादशाह आयोजित करते थे। कई बार हाथियों की लड़ाई में महावत की जान चली जाती थी।

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हाथी की सवारी करते बागदशाह अकबर (Akbar). फोटो-  (Source: Wikimedia Commons)

इसी तरह की एक लड़ाई में बादशाह अकबर (Akbar) को हाथी के ऊपर महावत के तौर पर बैठा दिया गया था। उस समय उनकी उम्र बहुत कम थी। अकबर जिस हाथी पर बैठे थे, लड़ते-लड़ते वह आपे से बाहर हो गया और यमुना पर बने नाव के पुल की तरफ भागा। बमुश्किल अकबर की जान बची थी।