16 मई को भारत सिक्किम दिवस मनाता है। 16 मई को ही साल 1975 में सिक्किम का भारत में विलय हुआ था। इस तरह सिक्किम भारत का 22वां राज्य बना था। सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में रियासतों के भारत में एकीकरण के कार्य के लगभग दो दशक बाद यह राज्य भारत में कैसे शामिल हुआ? आइए समझते हैं:

आजादी के वक्त सिक्किम एक रियासत था। वहां चोग्याल वंश का शासन था। इस वंश का सिक्किम पर 333 वर्ष तक शासन रहा। सिक्किम की स्थापना 1642 में हुई थी। तीन तिब्बती लामाओं ने फुंटसोंग नामग्याल को सिक्किम का पहला शासक बनाया था। सिक्किम का चोग्याल राजवंश तिब्बती मूल का था। 1861 में तुम्लोंग की संधि के माध्यम से अंग्रेजों ने आधिकारिक तौर पर सिक्किम पर नियंत्रण पा लिया। हालांकि सत्ता में चोग्याल वंश के राजा ही रहे।

आजादी के बाद सिक्किम

रियासतों को भारत मिलाने का काम देख रहे, वल्लभ भाई पटेल और संविधान सभा के सलाहकार बी एन राव सिक्किम का विलय भारत में कराना चाहते थे। लेकिन नेहरू इसके खिलाफ थे। दरअसल, नेहरू को ऐसा लग रहा था कि अगर भारत सिक्किम पर विलय का दबाव नहीं बनाएगा तो चीन तिब्बत पर हमला नहीं करेगा। नेहरू ने 1947 में सिक्किम को विशेष दर्जा दे दिया।

नेहरू की मौत और समझौते में बदलाव की मांग

1950 में भारत और सिक्किम के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत यह तय हुआ कि वहां शासन तो राजा का होगा लेकिन विदेश और रक्षा से जुड़े मामले भारत सरकार देखेगी। साल 1964 तक तो सिक्किम में इसी समझौते के तहत शासन चलता रहा। नेहरू की मौत के बाद चीजें बदलने लगीं। क्योंकि इसी दौरान सिक्किम के राजा चोग्याल ताशी नामग्याल की भी मौत हो गई थी और नए राजा कुमार थोंडुप के पास नई योजना थी।

उसी योजना के तहत सिक्किम के लिए भुटान जैसा स्टेटस मांगा जाने लगा यानी एक स्वतंत्र देश की मांग उठने लगी। इसके बाद सिक्किम के राजा और इंदिरा गांधी के बीच मुलाकात भी हुई। भारत ने अपनी तरफ से सिक्किम को परमानेंट एसोसिएशन का स्टेटस ऑफर किया। लेकिन चोग्याल सिक्किम की स्वतंत्रता पर और स्पष्टता चाहते थे।

सिक्किम और इंदिरा गांधी

इंदिरा गांधी अपने पहले कार्यकाल में सिक्किम पर बहुत ध्यान नहीं दे पायीं। लेकिन 1971 में बांग्लादेश बनाने के बाद इंदिरा ने सिक्किम का रुख किया। उन्होंने रॉ के संस्थापक आर एन काव से सिक्किम मामले को सुलझाने के लिए कहा। आर एन काव पर लिखी अपनी किताब में नितिन गोखले ने बताया है कि इंदिरा गांधी के आदेश के बाद चार दिन के भीतर एक योजना बनाई गई।

रॉ का प्लान

इंदिरा गांधी को प्लान पसंद आया। प्लान के मुताबिक, सिक्किम के राजा को धीरे-धीरे कमजोर करना था। जनता राजशाही के खिलाफ और लोकतंत्र के समर्थन में एकजुट हो ऐसा माहौल बनाया जाए। इसके लिए स्थानीय राजनीतिक दलों से मदद भी लेनी थी। सिक्किम नेशनल कांग्रेस के नेतृत्व में यह काम वहां पहले से चल रहा था। भारत सरकार वहां किसी तरह एक चुनाव करवा सिक्किम नेशनल कांग्रेस को सत्ता में लाना चाहती थी।

जनता ने घेरा शाही महल

1973 में सिक्किम की राजशाही के खिलाफ जनता सड़कों पर उतर गई। हजारों प्रदर्शनकारियों ने शाही महल को घेर लिया। सम्राट के पास नई दिल्ली से सहायता मांगने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। भारतीय सैनिक पहुंचे। अंत में, उसी वर्ष चोग्याल, भारत सरकार और तीन प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, ताकि प्रमुख राजनीतिक सुधार पेश किए जा सकें।

एक साल बाद, 1974 में चुनाव हुए, जिसमें काज़ी दोरजी के नेतृत्व वाली सिक्किम नेशनल कांग्रेस ने जीत हासिल की। उस वर्ष, एक नया संविधान अपनाया गया, जिसने सम्राट की भूमिका को एक नाममात्र के पद तक सीमित कर दिया। 1975 में सिक्किम में एक जनमत संग्रह हुआ, जिसमें दो-तिहाई पात्र मतदाताओं ने भाग लिया। यहां राजशाही को खत्म कर भारत में शामिल होने के पक्ष में 59,637 वोट पड़े, जबकि इसके खिलाफ 1,496 वोट पड़े।

एक सप्ताह के भीतर, भारत के विदेश मंत्रालय ने सिक्किम को भारत संघ में एक राज्य के रूप में मान्यता देने के लिए लोकसभा में संविधान (छत्तीसवां संशोधन) विधेयक पेश किया। इसे संसद में पारित किया और राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने द्वारा हस्ताक्षर के बाद 16 मई, 1975 को प्रभाव में आया।