Balfour Declaration on Palestine: इजरायल और फिलिस्तीन के बीच लंबे वक्त से लड़ाई चल रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इजरायल-फिलिस्तीन का यह संघर्ष कैसे शुरू हुआ था और इस संघर्ष की वजह क्या है? फिलिस्तीनियों का कहना है कि इजरायल को जबरदस्ती उनके घर में बसाया गया जबकि इजरायल का दावा है कि उसे अपनी मातृभूमि पर रहने का पूरा अधिकार है। सवाल यह है कि फिलिस्तीन को हमेशा के लिए बदल देने वाला बालफोर घोषणापत्र (Balfour Declaration) क्या है? मई 1948 में इजरायल के बनने का आधिकारिक ऐलान होने से पहले क्या-क्या हुआ? यहूदियों का इजरायल की ओर पलायन कैसे शुरू हुआ? ब्रिटिश शासन ने इजरायल के बनने में क्या भूमिका निभाई थी?
पश्चिम एशिया को बदलने वाली सबसे महत्वपूर्ण घटना बालफोर घोषणापत्र ही थी। उस समय ब्रिटिश शासन को प्रथम विश्व युद्ध में यहूदियों का समर्थन चाहिए था और इसे हासिल करने के लिए ही विदेश सचिव आर्थर जेम्स बालफोर ने यहूदी राष्ट्रवाद (जायनिज़्म) का समर्थन किया था।
कौन थे आर्थर जेम्स बालफोर?
आर्थर जेम्स बालफोर ने ब्रिटिश सरकार में कई बड़े और ताकतवर पदों पर काम किया था। उन्हें आयरलैंड में हुए विद्रोह को बेहद बेदर्दी से कुचलने के लिए ‘ब्लडी बालफोर’ नाम दिया गया था। बालफोर घोषणापत्र 2 नवंबर, 1917 को सामने आया था लेकिन 100 साल से ज्यादा समय के बाद भी इसकी तपिश पश्चिम एशिया में क्यों महसूस की जा रही है? आखिर बालफोर घोषणापत्र क्या था?
बालफोर घोषणापत्र मूल रूप से एक दस्तावेज था जिसे उस समय के ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बालफोर ने एंग्लो-यहूदी समुदाय के प्रमुख सदस्य लॉयनेल वाल्टर रोथ्सचाइल्ड (ट्रिंग के दूसरे बैरन) को लिखा था। इसमें लिखा था- “मुझे आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि महामहिम की सरकार यहूदी जियोनिस्ट आकांक्षाओं के प्रति सहानुभूति व्यक्त करती है।”
इसमें आगे लिखा था, “महामहिम की सरकार फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक होमलैंड की स्थापना का समर्थन करती है और इसे प्राप्त करने के लिए पूरी कोशिश करेगी लेकिन शर्त यह है कि इससे फिलिस्तीन में पहले से रह रहे गैर-यहूदी समुदायों के लोगों और उनके धार्मिक अधिकारों या किसी अन्य देश में यहूदियों के हक और उनकी राजनीतिक स्थिति को नुकसान नहीं पहुंचेगा।”
प्रथम विश्व युद्ध लड़ रहा था ब्रिटेन
यह घोषणा ऐसे समय में की गई थी जब ब्रिटेन अपने मित्र देशों के साथ प्रथम विश्व युद्ध (28 जुलाई 1914 से 11 नवम्बर 1918) लड़ रहा था और जायनिस्ट आंदोलन जोर पकड़ रहा था। जायनिस्टों का यह मानना था कि यूरोप में उत्पीड़न का सामना कर रहा यहूदी समुदाय तब तक सुरक्षित नहीं रहेगा जब तक उनके पास अपना देश, अपनी मातृभूमि नहीं होगी।
अलग देश की स्थापना के लिए जायनिस्ट आंदोलन से जुड़े लोग दुनिया के नेताओं से संपर्क करने लगे। बालफोर घोषणापत्र यहूदियों के लिए उनकी मातृभूमि हासिल करने में ब्रिटिश साम्राज्य का समर्थन करने की कोशिशों का नतीजा था।
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ब्रिटिश शासन ने इजरायल का समर्थन क्यों किया?
अब सवाल यह खड़ा होता है कि ब्रिटिश शासन ने यहूदियों के लिए अलग देश के मामले में इजरायल का समर्थन क्यों किया? इसके पीछे कुछ वजह हैं जैसे- यहूदियों के लिए सहानुभूति से लेकर अपने हितों की रक्षा करना, यहूदी समुदायों का समर्थन इसलिए हासिल करना जिससे वे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन का साथ दें, इसके अलावा रूस और अमेरिका के यहूदी समुदायों से ब्रिटेन को उम्मीद थी कि वे अपने देशों को विश्व युद्ध में बने रहने के लिए मना लेंगे जिससे उसके मित्र देश विश्व युद्ध में जीत सकें।
लेकिन सवाल यह है कि फिर इसे लेकर इतना विवाद क्यों हो गया?
फिलिस्तीन उस समय ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था और ब्रिटेन उसे किसी को नहीं दे सकता था। बालफोर घोषणापत्र में “गैर-यहूदी समुदायों” के “नागरिक और धार्मिक अधिकारों” का उल्लेख किया गया है लेकिन फिलिस्तीन में पहले से रह रहे अरबों के राजनीतिक हक को इसमें कोई जगह नहीं दी गई।
बालफोर घोषणापत्र एक दस्तावेज ही था और जिन हालात में इजरायल बना, इसका दोष या फिर क्रेडिट सिर्फ इसे ही नहीं दिया जा सकता। हालांकि यह बात सही है कि इसकी वजह से ही जायनिस्ट आंदोलन को ब्रिटिश साम्राज्य का समर्थन मिला और एक तरह से राजनीतिक वैधता भी मिली।
इजरायल आर्थर जेम्स बालफोर को विशेष सम्मान देता है। जैसे- इजरायल के प्रधानमंत्री का आधिकारिक निवास बीत आघिओन बालफोर स्ट्रीट के कोने पर स्थित है।
संयुक्त राष्ट्र पहुंचा फिलिस्तीन का सवाल
प्रथम विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य की हार के बाद फिलिस्तीन ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आ गया। ब्रिटिश शासन के तीन दशकों में कई आयोग, श्वेत पत्र और संकल्प सामने आए, हिंसा भड़की जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई और 1947 में फिलिस्तीन का सवाल संयुक्त राष्ट्र में जाकर समाप्त हुआ। 29 नवंबर, 1947 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन को यहूदी और अरब राज्यों में बांटने के लिए मतदान किया और यरुशलम को संयुक्त राष्ट्र के नियंत्रण में रखा गया।
ब्रिटिश पत्रकार इयान ब्लैक ने अपनी कितान ‘एनिमीज़ एंड नेबर्स’ में लिखा है कि प्रस्तावित यहूदी राज्य में देश का 55 प्रतिशत हिस्सा और अरब के पास 44 प्रतिशत जमीन होनी थी। अरब क्षेत्र में वेस्ट बैंक और गाजा के शामिल होने का प्रस्ताव था। लेकिन फिलिस्तीनी पक्ष ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। दूसरी ओर इजरायल ने 14 मई, 1948 को आजादी की घोषणा कर दी।
इजरायली सेना ने फिलिस्तीनियों को बाहर निकाल दिया। इजरायल के गठन को फिलिस्तीनी नक़बा या तबाही कहते हैं और मानते हैं कि इस दिन उन्होंने अपनी जमीन खो दी थी।
इजरायल के द्वारा आजादी की घोषणा के तुरंत बाद, मिस्र, जॉर्डन, इराक, सीरिया और लेबनान ने उस पर हमला किया लेकिन इजरायल ने अमेरिका से मिले हथियारों और पैसे की मदद से उन्हें हरा दिया। इसके बाद अरब देशों और इजरायल के बीच कई लड़ाईयां हुई और इसमें इजरायल ने कई इलाकों पर कब्जा कर लिया।