कोलकाता के उत्तरी उपनगर बैरकपुर में आपको बड़े-बड़े बैनर और पोस्टर लगे दिखते हैं जिनमें सांसद अर्जुन सिंह का कैरिकेचर बना है और उन्हें ‘पलटूराम’ लिखा गया है। अर्जुन सिंह के बगल में एक और कैरिकेचर है जिसमें बंगाल में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को अर्जुन सिंह को ‘बीजेपी का लॉलीपॉप’ देते हुए दिखाया गया है।
अर्जुन सिंह के बगल में पार्थ भौमिक का कैरिकेचर है, उन्हें एमपी की कुर्सी पर बैठा हुआ और हंसते हुए दिखाया गया है। पार्थ भौमिक बैरकपुर से टीएमसी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
ये पोस्टर टीएमसी की ओर से बांग्ला भाषी राज्य में हिंदी में लिखे गए हैं। बैरकपुर में बिहार और उत्तर प्रदेश के हिंदी भाषी मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या है।
35% मतदाता हिंदीभाषी
बैरकपुर शहर हुगली के पूर्वी तट पर बसा हुआ है और यह एक बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। एक वक्त में यह अपनी जूट फैक्ट्री के लिए प्रसिद्ध हुआ करता था और यहां हिंदी भाषी इलाकों से हजारों की संख्या में लोग काम करने के लिए आए। इस लोकसभा क्षेत्र से लगने वाले कस्बों में लगभग आधे से ज्यादा शहरी मतदाता हैं। यहां पर लगभग 35% मतदाता हिंदी को अपनी मातृभाषा बताते हैं।

Barrackpore Lok Sabha Seat: बैरकपुर में राजनीतिक हिंसा का था बोलबाला
बैरकपुर में 20 मई को वोटिंग होनी है। बैरकपुर एक वक्त में पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का भी केंद्र रहा है। 2019 से 2021 के बीच यहां राजनीतिक हिंसा चरम पर थी और इसके पीछे वजह अर्जुन सिंह का लगातार पाला बदलना थी। यह लोकसभा चुनाव बैरकपुर के मतदाताओं के लिए एक उम्मीदवार के चयन से कहीं ज्यादा है।
मोहम्मद फिरोज का 10 साल का बेटा बीते साल एक हादसे का शिकार हो गया था। उनके बेटे ने एक बम को बॉल समझ लिया था। फिरोज बताते हैं, “मेरे बेटे की दोनों आंखों का ऑपरेशन हुआ लेकिन अभी भी उसे दाईं आंख से साफ नहीं दिखाई देता। बेटे को बाएं हाथ का एक हिस्सा भी गंवाना पड़ा। हमारे पास विकलांग होने का प्रमाण पत्र भी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अस्पताल में हमसे मिलने आई थीं लेकिन हमें किसी से कोई सहायता नहीं मिली। मैं नहीं चाहता कि ऐसा किसी और के साथ हो इसलिए मैं शांति के मुद्दे पर वोट करूंगा।”

अर्जुन सिंह के पिता भी रहे विधायक
अर्जुन सिंह के पिता बैरकपुर लोकसभा क्षेत्र की भाटपाड़ा विधानसभा सीट से तीन बार कांग्रेस के विधायक रहे थे। अर्जुन सिंह ने 1995 में भाटपाड़ा निगम पार्षद के चुनाव के जरिए राजनीति में कदम रखा था। उस वक्त वह कांग्रेस में थे। लेकिन ममता बनर्जी ने जब टीएमसी का गठन किया तो वह उनके साथ आ गए।
इसके बाद उन्होंने भाटपाड़ा विधानसभा सीट से चार बार चुनाव जीता। 2019 के लोकसभा चुनाव में जब टीएमसी ने अर्जुन सिंह को टिकट नहीं दिया तो वह बीजेपी में चले गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने टीएमसी के उम्मीदवार दिनेश त्रिवेदी को बैरकपुर सीट से 14,000 वोटों से हराया था।
2021 के पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने बैरकपुर में खुद को फिर से मजबूत किया। बैरकपुर लोकसभा सीट के अंदर आने वाली सात विधानसभा सीटों में से बीजेपी को सिर्फ एक सीट- भाटपाड़ा पर जीत मिली थी और यह अर्जुन सिंह का गृह क्षेत्र है।

Arjun Singh BJP: दल बदलते रहे अर्जुन सिंह
2022 में अर्जुन सिंह वापस टीएमसी में लौट आए। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने उनके द्वारा की गई जूट मिलों को फिर से खोले जाने की मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया। लेकिन 20 महीने बाद (इस साल मार्च में) अर्जुन सिंह फिर से बीजेपी में शामिल हो गए क्योंकि टीएमसी ने उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया।
बातचीत के दौरान अर्जुन सिंह कहते हैं, “मैं ऐसा छात्र नहीं हूं जो अपनी परीक्षा के लिए एक रात पहले तैयारी करता है। मैं पूरे साल पढ़ाई करता हूं। मैं अपने मतदाताओं के बीच में 24×7 और 365 दिन रहता हूं। लोग अपनी समस्याएं लेकर आते हैं और मैं उन्हें हल करता हूं।”
अर्जुन सिंह बातचीत के दौरान इस बात को भी गलत बताते हैं कि वह हिंदी मतदाताओं के भरोसे हैं। वह कहते हैं कि उनका परिवार यहां 140 सालों से रह रहा है और वह खुद को बंगाली मानते हैं।

TMC Partha Bhowmik: टीएमसी उम्मीदवार बोले- गड़बड़ी फैलाती है बीजेपी
बैरकपुर से टीएमसी के उम्मीदवार पार्थ भौमिक खुद को टीएमसी का निष्ठावान सिपाही बताते हैं। वह कहते हैं, “लोग यहां दीदी के काम से प्यार करते हैं। बीजेपी केवल धर्म की राजनीति करती है और गड़बड़ी फैलाती है।”
श्यामनगर के घोषपारा रोड में रहने वाली यंग वोटर प्राप्ति सिंह कहती हैं, “बैरकपुर को विकास चाहिए। कानून और व्यवस्था अपने आप सुधर जाएगी। अगर उत्तर प्रदेश की कानून और व्यवस्था सुधर सकती है तो बैरकपुर की क्यों नहीं।” नैहाटी में स्थित एक जूट मिल में काम करने वाले राम धारी प्रसाद कहते हैं, “हमने कांग्रेस और टीएमसी को देखा है और अब बीजेपी को वोट देने का वक्त है। अर्जुन सिंह बीजेपी के उम्मीदवार हैं जबकि टीएमसी भ्रष्टाचार में डूबी हुई है।”
हालांकि बैरकपुर में फिर से जीत हासिल करना अर्जुन सिंह के लिए आसान नहीं है। यहां कई लोग अर्जुन सिंह के बार-बार एक दल से दूसरे दल में जाने की वजह से नाराज भी दिखाई देते हैं। टीटागढ़ में रहने वाले वसीम पूछते हैं, “इस बात की क्या गारंटी है कि अर्जुन सिंह किसी पार्टी में बने रहेंगे।”
भाटपाड़ा जूट मिल के क्वार्टर में रहने वालीं आरती सिंह झाड़ू बनाते वक्त कहती हैं, “मुझे राज्य सरकार से सीधी आर्थिक मदद मिली है। मैं उन्हें (ममता बनर्जी को) धोखा नहीं दे सकती। वह महिला हैं, वह महिलाओं के बारे में सोचती हैं।”

Bengal Jute Belt: खत्म हो चुका है जूट उद्योग
टीटागढ़ के रहने वाले 60 साल के खुर्शीद आलम बताते हैं, “जूट उद्योग खत्म हो चुका है। हालांकि मुझे लगता है कि राज्य सरकार महिलाओं और बच्चियों के लिए काम कर रही है। हमारे जैसे लोगों के बारे में सोचना बेहद जरूरी है।”
टीटागढ़ में रहने वाली जरीना बेगम पूछती हैं, सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वह बिना हालत खराब हुए वोट दे पाएंगी। वह कहती हैं जान है तो जहान है। नोआपाड़ा में रहने वाले प्रताप सिंह शांति कायम करने की उम्मीद जाहिर करते हैं। वंदे मातरम लिखने वाले बंकिम चंद्र चटर्जी नैहाटी में ही पैदा हुए थे। प्रताप सिंह कहते हैं कि आज का दौर हिंसा और बम का है, जिसे भी जीत मिले उसे अपराध को रोकने के लिए काम करना चाहिए।