अंग्रेजों की पैदा की कुछ समस्याओं से भारत आज भी जूझ रहा है। ऐसी ही एक समस्या है- जलकुंभी (Water Hyacinth)। जलकुंभी, पानी में उगने वाला एक ऐसा पौधा है जिसे नदियों, तालाबों, बांधों, झीलों आदि के लिए खतरनाक माना जाता है। यह साधारण जलीय पौधा मीठे पानी के स्रोतों में ऑक्सीजन कम कर, उन्हें बर्बाद कर देता है।
जिस भी नदी या तालाब में जलकुंभी उग आए, उसमें मछलियों का जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है। यह जलीय खरपतवार नदियों में परिवहन को भी कठिन बना देता है। जलाशयों को जलकुंभी मुक्त बनाना भी अपने आप में महंगी और श्रमसाध्य प्रक्रिया है। कुल मिलाकर जलकुंभी हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिये एक गंभीर समस्या है। भारत में यह खतरा एक अंग्रेज अफसर की प्रेम कहानी की देन है।
एक समुद्री यात्रा के दौरान शुरू हुई प्रेम कहानी
साल 1769 की बात है। समुद्र में यात्रा करती एक जहाज भारत की तरफ बढ़ रही थी। शांत स्वभाव के 37 वर्षीय अंग्रेज अफसर वॉरेन हेस्टिंग्स भारत की अपनी दूसरी यात्रा पर थे। कुछ साल पहले ही हेस्टिंग्स ने अपनी पत्नी मैरी को खो दिया था। जिंदगी के खालीपन के साथ यात्रा कर रहे हेस्टिंग्स जल्द ही जहाज पर मौजूद एक सुंदर युवा महिला पर मोहित हो गए।

महिला का नाम मैरिएन इम्हॉफ था, जो एक मिनिएचर पेंटर कार्ल इम्हॉफ की पत्नी थीं। समुद्री यात्रा के बीच दोनों का प्रेम परवान चढ़ा और यह प्रेम कहानी एक खतरनाक प्रजाति के जलीय पौधे को भारत ले आई, जिसे ‘बंगाल का आतंक’ नाम से जाना गया। दरअसल इस यात्रा के कुछ वर्षों बाद ही वॉरेन हेस्टिंग्स बंगाल के पहले गवर्नर जनरल बनने वाले थे।
यात्रा के दौरान मैरिएन केवल 22 वर्ष की थी। वह तीन बच्चों की मां थी। जर्मनी में एक कुलीन परिवार से आने के बावजूद, उनके पति कार्ल इम्हॉफ अमीर नहीं थे। वह एक मिनिएचर पेंटर बनना चाहते थे।
पति ने नहीं किया विरोध
जहाज पर मैरिएन इम्हॉफ और वॉरेन हेस्टिंग्स करीब आने लगे। हाल ही में अपनी पत्नी को खोने वाले वॉरेन हेस्टिंग्स को सुंदर मैरियन से प्यार हो गया। K.L. Murray ने अपनी किताब Beloved Marian में इस प्रेम कहानी का विस्तार से वर्णन किया है।

इतिहासकार मानते हैं कि मैरिएन इम्हॉफ के पति कार्ल ने बढ़ते रिश्ते का विरोध नहीं किया। छह महीने बाद, जहाज अंततः मद्रास पहुंच गया। यहां कॉर्ल ने अपनी पत्नी के साथ घरेलू जीवन शुरू किया। लेकिन एक साल के भीतर ही मैरिएन परेशान रहने लगीं।
एक चित्रकार के रूप में कार्ल अच्छा नहीं कर रहे थे। हेस्टिंग्स ने बेहतर संभावनाओं के लिए बंगाल जाने में कार्ल की सहायता की। इसके कुछ ही समय बाद हेस्टिंग्स बंगाल के गवर्नर बना दिए गए। इसके बाद मैरियन और हेस्टिंग्स में प्रेम और बढ़ा। ऐसा कहा जाता है कि यह रिश्ता उसके पति की मौन सहमति से गहरा हो गया।
कार्ल अंततः यूरोप वापस चले गए। मैरिएन ने अपने पहले जीवनसाथी को छोड़ने का निर्णय लिया। हो सकता है कि वह उससे सच्चा प्यार न करती हो, लेकिन उसे उसकी परवाह थी। लंबे अलगाव के बाद अंततः उन्होंने तलाक के लिए अर्जी दी और बाद में काफी विवाद के बाद मैरियन और हेस्टिंग्स ने आधिकारिक तौर पर शादी की।
जलकुंभी की एंट्री
ऐसा कहा जाता है कि एक बार मैरियन को एक सुंदर बैंगनी फूल बहुत पसंद आया। वह फूल दक्षिण अमेरिका के अमेजन घाटी में एक जलीय पौधे पर खिलता था। ऐसा माना जाता है कि वॉरेन हेस्टिंग्स 18वीं शताब्दी के अंत में अपनी पत्नी को उपहार देने के लिए इस दक्षिण अमेरिकी जलीय पौधे को भारत लाए थे। उसे ही आज हम जलकुंभी के नाम से जानते हैं।

हालांकि, उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि जलकुंभी सबसे तेजी से बढ़ने वाले पौधों में से एक है, जो हर दो सप्ताह में आकार में दोगुना होने में सक्षम है। वे जलमार्गों को अवरुद्ध कर देते हैं और अपने आसपास की मूल वनस्पति को खत्म कर देता है। बंगाल में यह इतना फैला कि इसे बंगाल आतंक कहा जाने लगा।
एक अन्य कहानी भी
जलकुंभी के भारत में आने कहानी अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग है। एक अन्य कहानी में इसे जर्मन आंतक भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जलकुंभी को प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत में जर्मन पनडुब्बियों द्वारा बांग्लादेश में लाया गया था।
हालांकि अगर हम लेडी वॉरेन हेस्टिंग्स से संबंधित किंवदंती पर विश्वास करते हैं, तो यह निष्कर्ष निकलेगा कि देश में पारिस्थितिक संकट पैदा करने वाले जलकुंभी का आगमन एक प्रेम कहानी से हुआ था।