जून 1911 में विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) को ‘काला पानी’ (Kala Pani) की सजा हुई थी। सावरकर को एसएस महाराजा जहाज में मद्रास से  अंडमान ले जाया गया था। वहीं सेल्युलर जेल में एक अंडाकार कोठरी में उन्‍हें अकेले रखा गया था। लेखक विक्रम संपत (Vikram Sampath) ने ‘सावरकर’ नाम से ल‍िखी उनकी जीवनी में इस बारे में व‍िस्‍तार से बताया है। 

संपत बताते हैं कि जिस जहाज से सावरकर को अंडमान ले जाया गया था, उसकी हालत बेहद खराब थी। वह लिखते हैं, “जहाज के सबसे निचले केबिन में कदम रखते ही विनायक को अहसास हुआ कि उन्हें वहां पचास अन्य कैदियों के साथ रहना होगा। वे सभी कैदी बहुत ही खराब अवस्था में थे। सभी बेतरतीबी से केबिन की फर्स पर पसरे हुए थे। उनके सामने पीपा जैसा कुछ रखा था जिससे भयंकर दुर्गंध फैल रही थी। बाद में, जब उन्होंने एक व्यक्ति को उसे इस्तेमाल करते देखा तो उन्हें अहसास हुआ कि किस्मत के मारे वे यात्री उसका कमोड की तरह इस्तेमाल करते थे।”

सावरकर की वजह से मिला अच्छा खाना

संपत ने क‍िताब में बताया है क‍ि जहाज पर मौजूद कुछ यूरोपीय यात्रियों ने विनायक दामोदर सावरकर के बारे में सुन रखा था। उनके मन में सावरकर के प्रति बहुत आदर का भाव था। इसलिए उनमें से कुछ ने कप्तान की अनुमति से, विनायक के सम्मान में बेसमेंट के सभी कैदियों के लिए भोजन का इंतजाम किया। भोजन में चावल, मछली और अचार था। कैद‍ियों को खाने को केवल उबले मटर एवं सूखा चना द‍िया जाता था। वे दो द‍िन से भूखे थे। ऐसे में अच्‍छा खाना पाकर कैद‍ियों की खुशी का ठ‍िकाना न था। उन्होंने सावरकर को धन्यवाद दिया।

जहाज पर बीते 10 दिन

केबिन में भेड़-बकरियों की तरह ठूंसे गए यात्रियों के कारण आराम से उठने-बैठने लायक जगह भी नहीं थी। जहाज पर कैदियों के साथ जो व्यवहार किया जा रहा था वह अमानवीयता की हद पार करने वाला था। संपत लिखते हैं- ऐसे वक्त में फौलादी संकल्प की जरूरत थी। सावरकर ने इस परिस्थिति से निपटने के लिए अनेक दार्शनिक कथाओं को याद करना शुरू किया। गंदगी और अमानवीयता को झेलते हुए दस द‍िन के सफर के बाद सावरकर और अन्‍य कैदी  ‘एसएस महाराजा’ में अंडमान के पोर्ट ब्लेयर पहुंचे।

जेल पहुंचने पर क्या हुआ?

सावरकर को अंडमान की सेल्युलर जेल में रखा गया था। जेल में सावरकर के पास सिर्फ एक कुर्ता, पतलून और सफेद टोपी थी। उन्हें अन्य कैदियों से अलग एक अंडाकार कोठरी में रखा गया था। उस कोठरी के एक कोने में फांसी देने की भी व्यवस्था थी। सेल्युलर जेल में सावरकर का बिल्ला नंबर मिला 32778 था।  

सावरकर जब सेल्युलर जेल (Cellular Jail) पहुंचे, तब वहां करीब 100 राजनीतिक कैदी बंद थे। जेल का बैरी सावरकर को ‘बम गोला नंबर 7 वाला’ नाम से बुलाता था। विक्रम संपत ने पेंग्विन पब्लिकेशन्स से प्रकाशित इस क‍िताब में यह भी ल‍िखा है क‍ि जेल में सावरकर की वर्दी पर ‘D’ लिखा था, जो ‘डेंजरस’ का संकेत करता था। इस उपनाम के बावजूद सावरकर कैदियों के बीच ‘बड़ा बाबू नंबर 7’ के नाम से मशहूर हो गए थे। 

संपत लिखते हैं कि अफसरों की बात छोड़ दी जाए तो जेल के अन्य कैदी सावरकर को ‘बाबू’ कहकर बुलाते थे। सावरकर को मिलने वाले इस आदर और सम्मान से जेल को अफसरों को बहुत परेशानी होती थी।