हिंदुत्ववादी विचारक विनायक दामोदर सावरकर का निधन 26 फरवरी, 1966 को 82 वर्ष की उम्र में हुआ था। सत्ताधारी भाजपा ने सावरकर को ‘मां भारती का वीर सपूत’ बताते हुए याद किया है। वहीं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सावरकर को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा कि उनका योगदान उन्हें देश के विकास और समृद्धि के लिए काम करने को प्रेरित करता है।

अभी कुछ दिन पहले शिवाजी की जयंती (19 फरवरी) पर उन्हें याद करते हुए पीएम मोदी ने लिखा था कि मराठा योद्धा से उन्हें प्रेरणा मिलती है दिलचस्प यह है कि सावरकर, शिवाजी महाराज की ‘महिला सम्मान’ की नीति के आलोचक थे।

सावरकर ने खुद अपनी किताब “Six Glorious Epochs of Indian History” में इस बात को लिखा है कि शिवाजी को मुस्लिम महिलाओं के साथ, वही करना चाहिए था, जो सुलूक मुस्लिम शासक युद्ध जीतने के बाद हिंदू महिलाओं के साथ करते थे। शिवाजी ने ऐसा न कर गलती की। साफ शब्दों में कहें तो सावरकर अपनी किताब में बलात्कार के बदले बलात्कार की नीति अपनाने की जोरदार वकालत करते हैं। आइए सावरकर की किताब के हवाले से ही जानते हैं कि उन्होंने इस विषय पर क्या-क्या लिखा है:

मुस्लिम महिलाओं को नहीं रहा कभी डर- सावरकर

बाल सावरकर (सावरकर सदन, बॉम्बे-28) से प्रकाशित “Six Glorious Epochs of Indian History” के पेज नंबर 178 पर ‘THE HINDU CHIVALRY TOWARDS ENEMY WOMEN’ नाम से एक हेडलाइन मिलती है। आसान भाषा में इस हेडलाइन का अर्थ हुआ कि हिंदू अपने दुश्मनों की महिलाओं के प्रति भी शिष्टता दिखाते हैं।

इस शीर्षक के नीचे सावरकर जो लिखते हैं, उसे यहां आसान भाषा में पेश किया जा रहा है, “मुस्लिम महिलाओं को कभी भी अपने जघन्य अपराध के लिए किसी हिंदू के हाथों सजा मिलने का डर नहीं था। यदि किसी युद्ध में मुसलमान जीत जाते थे तो हिंदू महिलाओं का धर्म बदल दिया जाता था। लेकिन अगर युद्ध हिंदू जीत जाए (उस समय कोई दुर्लभ बात नहीं थी) तो सिर्फ मुस्लिम पुरुषों को ही अपमान झेलना पड़ता था, उन्हें ही सजा मिलती थी, महिलाओं को नहीं। केवल मुस्लिम पुरुषों को ही बंदी बनाया जाता था, महिलाओं को नहीं।”

वह आगे लिखते हैं, “मुस्लिम महिलाओं को यकीन था कि भारी से भारी युद्ध में हार के बाद भी कोई विजेता हिंदू सरदार, उनका कोई सामान्य सैनिक, या कोई नागरिक, कभी उनके बालों को नहीं छूएगा। जब मुस्लिम महिलाओं, शाही महिलाओं और सबसे सामान्य दासियों को लड़ाई में बंदी बना लिया गया, तब भी उन्हें हमेशा अपने-अपने परिवारों में सुरक्षित और स्वस्थ वापस भेज दिया गया! उस दौर में ऐसी घटनाएं काफी आम थीं। ऐसे कामों को हिंदुओं ने शत्रु महिलाओं के प्रति अपनी वीरता और अपने धर्म की उदारता के रूप में महिमामंडित किया!”

सावरकर उदाहरण देकर समझाते हैं

अगले पेज पर सावरकर उदाहरण के साथ बताते हैं कि किन हिंदू शासकों ने ऐसी ‘गलती’ की। सावरकर छत्रपति शिवाजी महाराज और चिमाजी अप्पा का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि दोनों हिंदू शासकों ने क्रमश: कल्याण के मुस्लिम गवर्नर की बहू और बेसिन के पुर्तगाली गवर्नर की पत्नी को सम्मानपूर्वक वापस भेज दिया था।

शिवाजी और अप्पा के इस निर्णय को सावरकर सवालिया लहजे में ‘अजीब’ कहते हैं। वह लिखते हैं कि जब शिवाजी महाराज और चिमाजी अप्पा ने ऐसा किया तो उन्हें उन हजारों हिंदू महिलाओं और लड़कियों को याद करना चाहिए था, जिन पर महमूद गजनवी, मुहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी और अन्य ने अत्याचार किया, बलात्कार किया और छेड़छाड़ किया।

सावरकर ने पीड़िता के रूप में दाहिर की राजकुमारियों, कर्णावती के कर्णराज की पत्नी कमल देवी और उनकी बेहद खूबसूरत बेटी देवल देवी को याद किया है।

शिवाजी और अप्पा से सावरकर का सवाल?

आगे लिखते हुए सावरकर सवाल उठाते हैं कि “क्या पूरे देश में गूंज रही लाखों प्रताड़ित हिंदू महिलाओं की करुण पुकार और करुण विलाप शिवाजी महाराज और चिमाजी अप्पा के कानों तक नहीं पहुंची?”

सावरकर अपनी किताब में अनुमान लगाते हैं कि पीड़ित महिलाओं की आत्माओं ने क्या कहा होगा। वह लिखते हैं, “उन लाखों पीड़ित महिलाओं की आत्माओं ने शायद कहा होगा- हे महामहिम छत्रपति शिवाजी महाराज और महामहिम चिमाजी अप्पा! आप मत भूलो सुल्तानों और प्रतिष्ठित मुस्लिमों द्वारा हम पर किए गए उन अत्याचारों को जिसका हम वर्णन भी नहीं कर सकते। उन सुल्तानों और उनके साथियों को यह डर सताने दें कि हिंदुओं की जीत के बाद हमारे उत्पीड़न और घृणित कृत्य का बदला मुस्लिम महिलाओं से लिया जाएगा। एक बार जब वे इस भयानक आशंका से ग्रस्त हो जाते हैं कि हिंदुओं की जीत की स्थिति में मुस्लिम महिलाएं भी उसी संकट में खड़ी होंगी, तो भविष्य के मुस्लिम विजेता कभी भी हिंदू महिलाओं के साथ इस तरह की छेड़छाड़ के बारे में सोचने की हिम्मत नहीं करेंगे।”

शिवाजी और अप्पा की नीति को खराब मानते हैं सावरकर

पीड़ित हिंदू महिलाओं की आत्मा की पुकार का अनुमान लगाने के ठीक बाद सावरकर लिखते हैं, “महिलाओं के प्रति शिष्टाचार के बारे में तत्कालीन प्रचलित विकृत धार्मिक विचारों के कारण, न तो शिवाजी महाराज और न ही चिमाजी अप्पा मुस्लिम महिलाओं के साथ ऐसा गलत कर सकते थे।” सावरकर मानते हैं कि इस तरह का विचार हिंदू समुदाय के लिए बहुत ही हानिकारक साबित हुआ।

सावरकर लिखते हैं, “यह महिलाओं के प्रति शिष्टाचार का आत्मघाती हिंदू विचार था जिसने मुस्लिम महिलाओं को (सिर्फ इसलिए कि वे महिलाएं थीं) हिंदू महिलाओं के खिलाफ अवर्णनीय पाप और अपराध करने की भारी सजा से बचाया।”