गणित के प्रकाण्ड विद्वान रामानुजन का नाम कौन नहीं जानता है! उनका जीवन मात्र 33 साल का रहा और पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवा दिया। लेकिन एक वक्त ऐसा था, जब गणित के प्रति उनकी सनक देखकर टीचर भी परेशान हो गए थे। यहां तक कि रामानुजन से किताबें भी वापस ले ली थीं।
रामानुजन ने साल 1903 में 10वीं की परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिए कुंभकोणम के गवर्नमेंट कॉलेज में दाखिला लिया। इस कॉलेज को दक्षिण भारत का कैम्ब्रिज भी कहा जाता था। रामनुजन पहली बार अपना घर छोड़ बाहर पढ़ने आए थे। उन्होंने जिस बस्ती में किराए का मकान लिया, वहां से उनका कॉलेज 20 मिनट की दूरी पर था।
अध्यापक ने वापस ले ली किताब
रामानुजन पैदल कॉलेज जाया करते थे, लेकिन रास्ते में भी स्लेट निकालकर गणित के सवाल हल करते हुए जाते थे। हाल ही में पेंगुइन से प्रकाशित रामानुजन की जीवनी ‘विनम्र विद्रोही’ में भारती राठौड़ और डॉ. मेहेर वान लिखते हैं कि कॉलेज में जल्द ही गणित के अध्यापक पीवी शेषु अय्यर ने रामानुजन की प्रतिभा पहचान ली और उनको निखारने में लग गए।
रामानुजन लंदन के प्रसिद्ध मैथमेटिकल गजट जरनल में छपे सूत्र चुटकियों में हल कर देते थे। उन्होंने कई ऐसे सूत्र हल किए जिसे हल करने में अध्यापक पीवी शेषु अय्यर के भी पसीने छूट गए थे। कॉलेज में गणित ने रामानुजन के दिमाग में ऐसी गहरी पैठ बना ली की दूसरे विषय पीछे छूट गए। वह हमेशा गणित में ही डूबे रहते थे।
रामानुजन की गणित के प्रति सनक की बात धीरे-धीरे पूरे कॉलेज में फैल गई। उन्हें समझाने के तमाम प्रयास हुए। लेकिन किसी की एक न सुनी। अध्यापक शेषु को रामानुजन की चिंता सताने लगी। एक दिन उन्होंने रामानुजन को अपने पास बुलाया और गणित की सारी किताबें वापस ले ली ताकि दूसरे विषयों में रुचि पैदा हो सके। लेकिन यह तरकीब काम न आयी।
गणित में पास, बाकि सब में फेल
रामानुजन को गणित के आगे सब तुच्छ दिखाई पड़ता था। कक्षा में दूसरे विषय में न तो मन लगता, और न ही वह सीख पाते। इसका परिणाम यह हुआ कि जब 11वीं का रिजल्ट आया तो रामानुजन गणित छोड़ सारे विषय में फेल हो गए। और 12वीं में नहीं पहुंच पाए। इससे उनका वजीफा भी बंद हो गया।
रामानुजन की कॉलेज की एक सत्र की फीस 32 रुपये थे और उनके पिता श्रीनिवास अयंगर का वेतन 20 रुपये प्रतिमाह था। वजीफा बंद होने से परिवार पर आर्थिक संकट के बादल छा गए। रामानुजन अवसाद में चले गए और दिन भर कमरे में बंद रहने लगे। लेकिन बाद में उन्होंने दुनिया भर को अपना लोहा मनवाया।
दुनिया पर छोड़ी छाप
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़ाई की। रॉयल सोसाइटी के सबसे कम उम्र के फैलो बने। गणित में थीटा फंक्शन और मॉक थीटा फंक्शन उन्हीं की देन है। उन्होंने अपने जीवन में करीब 3900 प्रमेय दिया। भारत सरकार ने साल 1962 में रामानुजन की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया था।