Sikh Community in Canadian Politics: भारत और कनाडा के रिश्तों के बीच तनाव की खबर इन दोनों देशों की मीडिया में इन दिनों सबसे हॉट टॉपिक है। भारत से बड़ी संख्या में सिख और पंजाबी समुदाय के लोग कनाडा में बसे हुए हैं। इसलिए भी यह मुद्दा सोशल मीडिया, टीवी-अखबारों में जोर पकड़ रहा है। पंजाब में एक कहावत आम है कि एक पंजाब कनाडा में भी बसा हुआ है क्योंकि पंजाब से हर साल बड़ी संख्या में लोग कनाडा जाते हैं और इसमें बड़ा हिस्सा सिख समुदाय के लोगों का होता है।
कनाडा जाने वाले लोगों का पहला मकसद होता है- कनाडा की सिटीजनशिप हासिल करना हालांकि पंजाब से बड़ी संख्या में लोग अमेरिका, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन में भी जाते हैं लेकिन कनाडा उनकी पहली पसंद माना जाता है।
बताना होगा कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की सरकार के द्वारा खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय अफसर के शामिल होने के आरोपों को लेकर दोनों देशों के बीच तनातनी चल रही है। हालांकि भारत सरकार ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया है और इसे राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बताया है और वह वोट बैंक की राजनीति की वजह से ऐसा कर रही है।
भारत की ओर से कहा गया है कि ट्रूडो की सरकार एक राजनीतिक दल के सहारे पर निर्भर है और इस दल के नेता ने खुलकर अलगाववादी विचारधारा की हिमायत की है। भारत का कहना है कि यही शख्स इन दोनों देशों के रिश्तों के बीच तनाव के बढ़ने के लिए भी जिम्मेदार है।
कनाडा में 2 प्रतिशत है सिख समुदाय
19वीं सदी के अंत में सिख समुदाय के लोगों ने भारत से कनाडा जाना शुरू किया और आज वहां सिख समुदाय कुल आबादी का लगभग दो प्रतिशत हिस्सा बन चुका है। सवाल यह है कि कनाडा में सिख समुदाय पिछले कुछ सालों में इतना अहम कैसे हो गया है कि वहां की राजनीति को भी इस समुदाय ने प्रभावित किया है।
भारत में पिछले कुछ सालों में कनाडा में सिख समुदाय के तरक्की करने, राजनीति में उनकी हिस्सेदारी बढ़ने, खालिस्तानियों द्वारा हिंदू मंदिरों पर हमले करने, भारत के खिलाफ नारेबाजी करने, अलगाववाद और खालिस्तान की भावना को बढ़ावा देने के आरोपों के बारे में सुना है लेकिन यह जानना जरूरी है कि क्या कनाडा में सिख आबादी कितनी अहम है और क्यों वहां की सरकार निज्जर की हत्या मामले को लेकर इतनी गंभीरता दिखा रही है?
1980 में जब भारत की तत्कालीन सरकार ने यहां सिर उठा रहे खालिस्तान समर्थकों पर नकेल कसी तो बड़ी संख्या में लोग कनाडा चले गए। लेकिन वहां जब अलगाववादी और खालिस्तान समर्थकों की आबादी बढ़ने लगी तो उन्होंने कनाडा में सिखों के लिए अलग देश यानी खालिस्तान की मांग को लेकर हो-हल्ला शुरू कर दिया।
कनाडा सरकार की एजेंसी स्टैटिस्टिक्स कनाडा के मुताबिक, 2001 से 2021 के बीच कनाडा में सिख आबादी 0.9% से बढ़कर 2.1% हो गयी। 2021 में कनाडा में सबसे बड़ी सिख आबादी ओंटोरियो (300,435) में और इसके बाद ब्रिटिश कोलंबिया (290,870) में थी। 2021 में कनाडा में रहने वाले सिखों में से लगभग एक-तिहाई टोरंटो में रहते थे, जबकि एक-चौथाई से ज्यादा लोग वैंकूवर में रहते थे।
18 सिख सांसद पहुंचे कनाडा की संसद में
कनाडाई संसद के लिए चुने जाने वाले पहले सिख गुरबख्श सिंह मल्ही थे, जिन्होंने 1993 में लिबरल पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की थी। मल्ही का जन्म पंजाब में हुआ था। कुछ ही सालों में कनाडा की राजनीति में सिख समुदाय का उभार तेजी से हुआ और 2021 के आम चुनावों में18 सिख सांसद कनाडाई संसद में चुने गए थे।
भारत सरकार ने अपने बयान में न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) का जिक्र किया है, इस दल ने इस साल की शुरुआत तक ट्रूडो की अल्पमत सरकार का समर्थन किया था। इसके नेता जगमीत सिंह 2017 में पहले सिख नेता थे जिन्होंने कनाडा की किसी पार्टी का नेतृत्व किया था। जगमीत सिंह को खालिस्तान समर्थक रैलियों में देखा गया था।
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2004 में कनाडाई मीडिया संगठन The Globe and Mail ने एक रिपोर्ट में कहा था कि राजनीतिक रैलियों के दौरान सिख समुदाय की भागीदारी बढ़ रही है। सिख सांसदों ने अपने समुदाय से जुड़े मुद्दों को भी संसद में उठाया है, इन मुद्दों में सिख समुदाय पर नस्ली टिप्पणियां करना और पगड़ी पर प्रतिबंध लगाना शामिल था। कनाडा में सिखों की बढ़ती राजनीतिक भागीदारी को लेकर कहा गया था कि उन्हें स्थानीय समुदाय का समर्थन हासिल है और गुरुद्वारे और अन्य सिख संगठन भी अपने नेताओं के पीछे अपने एकजुट होते हैं।
कट्टरपंथियों के आगे झुकी थी कनाडा सरकार
सिख समुदाय की आलोचना से बचने के लिए कनाडा ने पिछले कुछ सालों में भारत के साथ अपने रिश्तों को लेकर कड़ा रुख अपनाया है हालांकि 2018 में कनाडा सरकार ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘Public Report on the Terrorist Threat to Canada’ में पहली बार “सिख कट्टरपंथ” और “खालिस्तान” जैसे शब्दों का जिक्र किया। लेकिन एक साल बाद कनाडा ने वैशाखी से ठीक एक दिन पहले इस रिपोर्ट में संशोधन कर दिया और खालिस्तान और सिख कट्टरपंथ से जुड़ी सभी बातों को हटा दिया गया। इसकी आलोचना पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने की थी और उन्होंने ट्रूडो को कनाडा में कट्टरपंथियों की एक सूची सौंपी थी, इसमें हरदीप सिंह निज्जर का भी नाम था।
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इस साल अप्रैल में भारत सरकार ने कनाडाई उप-उच्चायुक्त को तलब किया और टोरंटो में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में खालिस्तान समर्थक नारे लगाए जाने पर विरोध दर्ज किया। इस कार्यक्रम में ट्रूडो भी शामिल हुए थे। इसके अलावा खालसा दिवस कार्यक्रम में विपक्ष के नेता पियरे पोइलीवरे और एनडीपी के नेता जगमीत सिंह भी शामिल हुए थे। इससे पता चलता है कि कनाडा के राजनीतिक दल सिख मतदाताओं को कितनी अहमियत देते हैं।
जस्टिन ट्रूडो की सरकार 2015 से सत्ता में है और वहां 2025 में अगले आम चुनाव होने हैं। जनमत सर्वेक्षणों से पता चलता है ट्रूडो की लिबरल पार्टी का समर्थन गिर रहा है। इस साल मई में एंगस रीड इंस्टीट्यूट के एक सर्वेक्षण से पता चला था कि उनकी पार्टी को अन्य धार्मिक समूहों की तुलना में सिखों के बीच सबसे कम समर्थन मिला।
सवाल यह है कि क्या सिख समुदाय के वोट हासिल करने के लिए ट्रूडो की सरकार निज्जर की हत्या के मामले को बड़े पैमाने पर उठा रही है और क्या वह इसके लिए भारत के साथ रिश्तों को भी खराब करने के लिए तैयार है?