रक्षाबंधन का त्योहार आज भले ही सिर्फ भाई-बहनों के प्रेम का प्रतीक बन कर रहा गया हो। लेकिन गुलाम भारत में रक्षाबंधन का इस्तेमाल सामाजिक समरसता और साम्प्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने के लिए भी किया गया था। अंग्रेज़ों की ‘फूट डालो राज करो’ की रणनीति को नाकाम करने के लिए यह तरकीब निकाली थी नोबेल विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने।

बंगाल विभाजन

साल 1905 में ब्रिटिश भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन ने बंगाल के विभाजन का ऐलान किया था। अंग्रेजी हुकूमत का मानना था कि संपूर्ण बंगाल क्षेत्रफल और जनसंख्या के दृष्टिकोण बहुत बड़ा है। अगर बंगाल को दो भागों में बांट दिया जाए तो संचालन करना आसान होगा। तब बंगाल लगभग 8 करोड़ की जनसंख्या के साथ भारत का सबसे अधिक आबादी वाला प्रांत था। उसका क्षेत्रफल फ्रांस के बराबर था जिसमें उसमें पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम और बांग्लादेश भी शामिल था।

शासन चलाने में परेशानी आने वाली बात पर लोगों को संदेह हुआ। अंग्रेज बंगाल को पूर्वी और पश्चिमी दो भागों में बांटना चाहते थे। बंगाल का पूर्वी हिस्सा मुस्लिम बहुल था जबकि पश्चिमी हिस्से में हिंदू समुदाय की आबादी ज्यादा थी। लोगों में यह बात फैल गई कि अंग्रेज बांटो और राज करो वाली पुरानी चाल चल रहे हैं।

विभाजन के खिलाफ रक्षासूत्र का बंधन

बंगाल के विभाजन का आदेश अगस्त 1905 में पास हो गया, जिसे लागू किया गया 16 अक्टूबर 1905 को। विभाजन तो नहीं रुका लेकिन रवींद्रनाथ टैगोर हिंदू-मुस्लिम एकता का बंटवारा नहीं होने देना चाहते थे। उन्होंने 16 अक्टूबर को राष्ट्रीय शोक दिवस मनाने का ऐलान किया।

टैगोर ने कहा- बंटवारे के दिन बंगालियों के घर में उस दिन खाना नहीं बनेगा। 1905 में राखी पूर्णिमा भी 16 अक्टूबर को पड़ा था। टैगोर ने इस त्योहार का इस्तेमाल बंगाल के हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भाईचारा कायम रखने के लिए किया। उन्होंने कहा, ”हिंदू और मुसलमान एक दूसरे को राखी बांधें और शपथ लें कि वे जीवन भर एक-दूसरे से सुरक्षा का एक ऐसा रिश्ता बनाए रखेंगे जिसे कोई तोड़ न सके।”

16 अक्टूबर को कोलकाता की सड़कों पर टैगोर अगुवाई में बड़ा जुलूस निकाला। राखियों का बंडल लेकर निकले टैगोर रास्ते भर लोगों को बांधते जा रहे थे। छत से महिलाएं जुलूस पर चावल फेंक रही थी, लोग शंख बजा रहा था। यह हिंदू-मुस्लिम एकता का अनोखा दृश्य था।