IACCS command system: पाकिस्तान ने इस बार जब भारत पर हमला करने की कोशिश की, उसे उम्मीद से भी ज्यादा मुंहतोड़ जवाब मिला। एक तरफ उसके तुर्की वाले ड्रोन भारत के S-400 ने तबाह कर दिए तो वहीं दूसरी तरफ भारत की मिसाइलों ने पाक एयरबेसों को जबरदस्त नुकसान दिया। इस बीच सबसे ज्यादा चर्चा भारत के एयर डिफेंस सिस्टम की हुई, बड़ी बात यह रही कि इसकी तुलना कई मौकों पर इजरायल और अमेरिका से भी हुई। ऐसे में जानने की कोशिश करते हैं कि भारत का एयर डिफेंस सिस्टम कैसे काम करता है।

IACCS का मतलब क्या होता है?

IACCS का मतलब होता है- Integrated Air Command and Control System। इसका निर्माण भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड ने किया है। इसे एक ऑटोमैटिक कमांड सिस्टम कहा जा सकता है जो सभी एयर डिफेंस एसेट्स, रडार, सेंसर, और वायुसेना के दूसरे कंट्रोल सेंटर्स से डेटा इकट्ठा करता है। अब क्योंकि इतने सारे कंट्रोल सिस्टम एक दूसरे से कनेक्टेड रहते हैं, ऐसे में अगर हवाई क्षेत्र में भारत को कोई भी खतरा दिखता है, समय रहते उसका जवाब दिया जा सकता है।

अकाशतीर सिस्टम के बारे में जानते हैं?

समझने वाली बात यह है कि जब सारी इंफॉर्मेशन एक ही जगह मिलती है, उससे मिलिट्री को भी बहुत फायदा है, जो भी फैसला लेना हो, वो जल्दी लिया जा सकता है। भारत के एयर डिफेंस सिस्टम में एक अहम भूमिका आकाशतीर की भी है। इसे इंडियन आर्मी का एयर डिफेंस सिस्टम माना जाता है। इसकी खास बात यह है कि यह पूरी तरह स्वदेशी है यानी कि मेड इन इंडिया। इसका एक भी पुर्जा बाहर से नहीं आया है, ऐसे में किसी विदेशी उपकरण पर कोई निर्भरता नहीं।

अब अकाशतीर सिर्फ मिसाइलों, ड्रोनों या फिर लड़ाकू विमानों को पहचानता नहीं है बल्कि उन्हें नष्ट भी कर देता है। इस सिस्टम की एक एआई तकनीक है जो फुल स्पीड में सारा डेटा इकट्ठा करती रहती है, उसी वजह से दुश्मन का कोई भी प्रहार समय रहते ध्वस्त हो जाता है। अकाशतीर की अहमियत को इसी बात से समझा जा सकता है कि इसका निर्माण संयुक्त रूप से रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा किया गया है। 1982 करोड़ रुपये खर इस टेक्नोलॉजी को 2023 में डेवलप कर लिया गया था।

हवा में भी अलग-अलग परत करती हैं सुरक्षा

वैसे इंडियन एयर डिफेंस को चुनौती देना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि इसकी सुरक्षा अलग-अलग लेयर्स की वजह से हो रही है। दुश्मन अगर पहली परत को पार भी कर जाए तो दूसरी परत आते-आते उसकी हवा निकल जाएगी। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि पहली परत में दुश्मन का सामना काउंटर ड्रोन सिस्टम और MANPADS (Man-Portable Air Defence Systems) से होता है। दूसरी और तीसरी परत में सामना प्वाइंट एयर डिफेंस, शॉर्ट और मीडियम सर्फेस टू एयर मिसाइलों से होता है। चौथी परत में लॉन्ग रेंज वाली सर्फेस टू एयर मिसाइलें आ जाती हैं।

पहली परत में कौन से हथियार?

इस बात को अगर और आसान तरीके से समझना है तो यहां समझें। किसी भी देश के एयर डिफेंस सिस्टम की जो बाहरी परत होती है, उसकी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा रहती है। भारत का जो एस-400 सिस्टम है, उसे इसी बाहरी परत में तैनात किया जाता है, इसके जरिए 300 किलोमीटर दूर तक हमले किए जा सकते हैं। लड़ाकू विमान भी यहां तैनात दिख जाएंगे क्योंकि कोशिश होगी कि दुश्मन को पहले ही रोक दिया जाए।

Kirana Hills क्या है

दूसरी परत में कौन से हथियार?

अब अगर कभी दुश्मन पहली परत से पार पाले तो उसका सामना अंदरूनी परत से होगा, यहां पर कम ऊंचाई तक मार करने वाली तोपें, बंदूकें, जेडएसयू-23 शिल्का, मैनपैड्स (MANPADS), ड्रोन्स तैनात दिख जाएंगे। एल-70 गन्स जिनकी इतनी बार चर्चा हुई है, वो भी यहां तैनात हो जाएंगी। ऐसे में दुश्मन देश के लिए भारत के अंदर तक घुसना नामुमकिन जैसा है।

हवाई रक्षा प्रणाली का भविष्य

वैसे भारत की वायु सुरक्षा का भविष्य भी काफी उम्मीदों से भरा दिखता है। इसका बड़ा कारण यह है कि इस समय पूरी कोशिश की जा रही है कि तीनों ही सेनाओं के जो हवाई रक्षा वाले हथियार हैं, उन्हें भी सीधे-सीधे IACCS के अंतर्गत लाने की तैयारी है। इसका मतलब है कि भविष्य में और ज्यादा मजबूत एकीकृत कमांड बन जाए जिससे फैसले लेने में और ज्यादा तेजी आए और अप्रत्याशित तालमेल देखने को मिले।

ये भी पढ़ें- पुणे से लेकर गाजियाबाद तक तुर्की के प्रोडक्ट्स के बहिष्कार