पटियाला रियासत (Patiala) के आठवें महाराजा यादवेन्द्र सिंह (Maharaja of Patiala Yadavendra Singh) की कहानी बहुत अनोखी है। आजादी के वक्त कई अन्य रियासतों की तरह ही यादवेंद्र सिंह भी पटियाला को स्वतंत्र रखने के इच्छुक थे। इसके लिए यादवेन्द्र सिंह समेत कई प्रिंसली स्टेट के प्रमुखों ने वायसराय की मंजूरी के बिना उनके राजनीतिक सचिव को लंदन में पैरवी के लिए भेजा था।

वायसराय माउंटबेटन के उस राजनीतिक सचिव का नाम कॉरफील्ड था। कॉरफील्ड ने लंदन में लॉर्ड लिस्टोवेल के सामने रजवाड़ों के पक्ष में दलील देते हुए कहा था कि, “भारतीय रजवाड़ों ने अपने अधिकार ब्रिटिश सम्राट को सौंपे थे, किसी और को नहीं। जिस क्षण भारत स्वतंत्र हो उस क्षण ये अधिकार उनको वापस कर दिए जाने चाहिए। उसके बाद उन्हें इस बात की पूरी छूट होनी चाहिए कि वे भारत या पाकिस्तान के साथ जैसा चाहे वैसा संबंध स्थापित करें या अगर वे चाहें और मुमकिन हो तो स्वतंत्र भी हो जाएं।

हालांकि यह संभव नहीं था और आजादी के बाद पटियाला रियासत का भारत में विलय हो गया। लेकिन उससे पहले पटियाला रियासत के महाराजा की जिंदगी ऐशो आराम से भरी थी।

लंदन से आता था बिस्कुट

पटियाला रियासत के आठवें महाराजा यादवेन्द्र सिंह सुबह चाय के साथ जो बिस्कुट खाते थे, वह लंदन से आता था। लंदन की मशहूर कंपनी फोर्टनम एन्ड मेसन यादवेंद्र सिंह के लिए महीने में दो बार हवाई जहाज से बिस्कुट भेजा करती थी।

यादवेंद्र सिंह सोने की परत चढ़ी कप में चाय पिया करते थे। चाय की कप जिस ट्रे में रखकर उनके सामने पेश की जाती थी, वह चांदी की होती थी। वह ट्रे 1921 में ब्रिटिश सिंहासन के उत्तराधिकारी प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन पर खास तौर पर ऑर्डर देकर लंदन से मंगायी गयी थी।

दूसरे विश्व युद्ध में शामिल हुए थे यादवेन्द्र सिंह

यादवेंद्र सिंह का जन्म 7 जनवरी, 1913 को हुआ था। उनकी पढ़ाई लिखाई लाहौर में हुई थी। उन्होंने अंग्रेजों के अधीन एक पुलिस अधिकारी बनने के लिए प्रशिक्षण लिया था। बाद में वह पुलिस अधीक्षक और महानिरीक्षक भी नियुक्त हुए।

इसके बाद उन्होंने सेना में भी सेवा दी। वह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सिख रेजिमेंट में एक कर्नल के रूप में शामिल थे। उन्होंने मलाया, बर्मा और इटली में लड़ाई लड़ी थी।

यादवेन्द्र सिंह अपने पिता महाराजा भूपिंदर सिंह के बाद पटियाला के शासक बने। तब पटियाला रियासत  3,700 वर्ग मील में फैला था और वहां लोगों की संख्या 10 लाख से ज्यादा थी।

आजादी के बाद बने गवर्नर

आजादी के सरकार का सहयोग करते हुए यादवेन्द्र सिंह ने पटियाला समेत पांच अन्य पड़ोसी सिख राज्यों का भारत में विलय कराया था। इसके बाद उन्हें नए क्षेत्र का राजप्रमुख या राज्यपाल नियुक्त किया गया था।

1965 में उन्हें इटली का राजदूत बनाकर भेज दिया गया। लेकिन दो साल बाद पंजाब राज्य विधानसभा का सदस्य बनने के लिए उन्होंने उस पद को छोड़ दिया। 1971 में उन्हें नीदरलैंड (Netherlands) का राजदूत नामित किया गया। नीदरलैंड के हेग में ही एक राजनयिक के रूप में सेवा देते हुए साल 2013 में यादवेन्द्र सिंह की 61 वर्ष में मौत हो गयी थी।

भारतीय क्रिकेट टीम के रहे थे कप्तान

यादवेन्द्र सिंह को शानदार क्रिकेट प्लेयर बताया जाता है। वह अंतरराष्ट्रीय मैचों में भारतीय क्रिकेट टीमों के कप्तान हुआ करते थे। उन्होंने 1937 से 1960 तक भारतीय ओलंपिक संघ का नेतृत्व भी किया था।