सुहागरात की अगली सुबह 10 वर्षीय फूलमणि की लाश फर्श पर खून से लथपथ मिली थी। 30 वर्षीय पति हरि मोहन बस चुपचाप खड़ा था। यह सन् 1800 के आखिरी दशक की घटना है, जब कानून 10 साल की लड़की को विवाह योग्य मानता था। धर्म शास्त्र के आधार पर ‘मासिक धर्म’ से पहले विवाह की वकालत की जाती थी। फूलमणि की हत्या के लिए कोर्ट ने पति को जिम्मेदार नहीं माना। मोहन को मात्र एक साल की सजा हुई, क्योंकि जूरी ने उसे सिर्फ गंभीर चोट पहुंचाने का दोषी माना।
बाल विवाह के खिलाफ बिगुल : इस घटना के बाद भारत में बाल विवाह के खिलाफ महिलाओं का एक समूह सक्रिय हुआ। 40 नर्सों ने साक्ष्य सहित सरकार को ज्ञापन देकर यह बताया कि कैसे बाल विवाह लड़कियों की जान ले रहा है। सरकार ने शादी की उम्र तय करने के लिए एक आयोग का गठन किया, जिसकी रिपोर्ट 1891 में आई। रिपोर्ट के आधार पर ब्रिटिश सरकार ने लड़कियों की शादी उम्र 10 साल से बढ़ाकर 12 साल कर दी।
समाज सुधारक ने सुधार का किया विरोध : सरकार के इस फैसले का तमाम हिन्दुवादी नेताओं ने विरोध किया था। समाज सुधारक माने जाने वाले बाल गंगाधर तिलक ने भी सुधारक का विरोध करते हुए, उसे हिन्दू परंपरा के खिलाफ बताया। बाल विवाह के पक्ष में उनका तर्क था कि धर्म शास्त्र के अनुसार लड़कियों का विवाह माहवारी से पहले होनी चाहिए। अंग्रेजी सरकार उम्र में बदलाव कर हिन्दू संस्कृति में हस्तक्षेप कर रही है। बाल गंगाधर तिलक न सिर्फ बाल विवाह को बनाए रखना चाहते थे, बल्कि लड़कियों की शादी 10 साल में हो यह भी सुनिश्चित करना चाहते थे। बाल विवाह के कारण होने वाली मौतों को ऐसे समाज सुधारक धर्म शास्त्र से ढक देना चाहते थे।
बाल विवाह के हिमायती महामना : पं. मदन मोहन मालवीय का परिचय स्वतंत्रता सेनानी व समाज सुधारक के अलावा पत्रकार, वकील और शिक्षाविद के रूप में भी दिया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मालवीय बाल विवाह के समर्थक थे। साल 1927 में कानून के प्रकांड विद्वान हरविलास शारदा ने बाल विवाह को रोकने के लिए सेंट्रल असेंबली में एक प्रस्ताव पेश किया था। यह प्रस्ताव बहुत मुश्किल से 18 दिसंबर 1929 को पास हो पाया था, क्योंकि बेहद प्रभावशाली पं मालवीय इस प्रस्ताव को रोकने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा चुके थे।
उन्होंने इस प्रस्ताव के खिलाफ और बाल विवाह के समर्थन में सदन के भीतर करीब दो घंटे लम्बा भाषण दिया था। उन्होंने प्रस्ताव को गलत साबित करने के लिए हिन्दू धर्म की तमाम परंपराओं और रीति रिवाजों आदि का हवाला दिया था। हालांकि सदन के सदस्य उनकी बातों से सहमत न हुए और अंतत: प्रस्ताव भारी मतों से पास हो गया। शारदा एक्ट के नाम से मशहूर हुआ यह कानून 1 अप्रैल 1930 से लागू हुआ था, इसके साथ ही लड़कियों की शादी उम्र 12 से बढ़ाकर 14 कर दी गई थी।