पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का ठिकाना कभी मुंबई हुआ करता था। मुंबई में ही उनके एक दोस्त और मुवक्किल थे सर दिनशॉ। जिन्ना के यह दोस्त पारसी समुदाय के प्रसिद्ध धनवान व्यक्ति थे। साल 1916 की बात है, जिन्ना को सर दिनशॉ की 16 साल की बेटी रूटी से पहली ही नजर में प्यार हो गया था।
रूटी का परिवार इसके खिलाफ था। लेकिन दोनों ने भागकर चुपके से शादी कर ली। हालांकि निकाह के लिए जिन्ना ने रूटी के 18 वर्ष के होने का इंतजार किया। वह 20 फरवरी, 1918 को 18 वर्ष की हुई थीं।
18 अप्रैल को वह घरवालों की नजर से बचकर जिन्ना के साथ जामा मस्जिद गईं और इस्लाम धर्म अपनाया। 19 अप्रैल को माउंट प्लीजेंट रोड स्थित जिन्ना के बंगले पर एक मौलवी और एक दर्ज पुरुष गवाहों के सामने दोनों का निकाह हुआ।
दिलचस्प यह है कि जब रूटी पहली बार अपना साधन संपन्न और साफ-सुथरा घर छोड़कर जिन्ना के घर पहुंची थी, तो गंदगी देखकर परेशान हो गई थीं। शीला रेड्डी ने मंजुल से प्रकाशित अपनी किताब ‘मिस्टर और मिसेज़ जिन्ना’ में इस घटना को लिखा है।
जिन्ना का बंगला
जिन्ना का बंगला मालाबार हिल के बीच रास्ते पर पेटिट हॉल (रूटी का बंगला) से मजह 100 गज की ऊंचाई पर था। 19 अप्रैल को रूटी अपने घरवालों के बताए बिना, घर से निकलीं और जिन्ना के बंगले (साउथ कोर्ट) पर पहुंच गईं।
वह जिन्ना के घर पहले कभी नहीं गई थीं। वह उनसे हमेशा किसी क्लब, रेसकोर्स या अपने घर में या दूसरों के घरों में ही मिलती रही थीं। लेकिन अब उनके जिस घर में वह क़दम रही थीं, उसका कोई सम्बन्ध स्वयं उनके जैसे लोगों से नहीं था। घर करीब पचास साल पुराना था और मालाबार हिल की आधुनिकता से बिलकुल मेल नहीं खा रहा था।
शीला रेड्डी लिखती हैं, “निश्चय ही इससे ज़्यादा नीरस घर में रूटी कभी नहीं आई थीं। वैसे जिस चीज़ ने रूटी को सबसे ज़्यादा परेशान किया, वह आस-पास के विलासितापूर्ण मानकों पर जिन्ना के मकान का खरा ना उतरना नहीं था, बल्कि वह उदासी से भर देने वाली उसकी निर्जन मलिनता (गंदगी) थी, जो उस मकान के मालिक (जिन्ना) से बिलकुल मेल नहीं खाती थी। मकान का मालिक ऊर्जा से भरा, मोटरकारों, घुड़सवारी और सुन्दर वेशभूषा में रुचि रखता था। लेकिन घर की हालत खराब थी।”
क्या जिन्ना ने पुराने घर की बात छिपाई थी?
शीला रेड्डी के मुताबिक ऐसा नहीं था। जिन्ना ने रूटी से कभी कोई बात छिपाई। लेकिन रूटी भी यह अंदाजा कैसे लगातीं कि विलासिता के प्रति जिन्ना की रुचि केवल मोटरकारों, कपड़ों और सिगारों तक ही सीमित थी। बहुत कम ही लोग उनके घर आते थे। वह बम्बई के टॉप-10 बैरिस्टरों में से एक थे, इसके बावजूद वह दूसरे कामयाब वकीलों की तरह अपने घर पर पार्टी वगैरा नहीं देते थे। बहुत से बहुत अगर चाय के समय कोई मेहमान आ गया, तो एक कप चाय पिला देते थे।
जिन्ना पुराने मकान में क्यों रहते थे?
साउथ कोर्ट को जिन्ना ने अक्लमन्दी से भरे निवेश और एक कामयाब बैरिस्टर के लिए अच्छे पते की नीयत से छह साल पहले एक स्कॉटिश व्यक्ति से खरीदा था, जो हिंदुस्तान छोड़कर जा रहा था। लेकिन उस घर में रहने का उनका कोई इरादा नहीं था। जब तक वह कुँवारे रहे, वह उस मकान के बजाय अपने किराये के मकान में ही रहते थे। किराये का उनका मकान हाईकोर्ट के पास भी था।
घर पर उनकी ज़रूरतें बहुत सीमित थीं और उनकी गृहस्थी बहुत छोटी। कुछ नौकर-चाकर, उनकी ड्रेसिंग में मदद के लिए एक निजी सेवक, एक या दो रसोइये और ड्राइवर। जो थोड़ी-बहुत खातिरदारी वह करते थे, वह उनके उन करीबी दोस्तों को दी जाने वाली पार्टियों तक सीमित थी, जो पीने और राजनीति पर बातचीत करने के लिए रात भर रुका करते थे।
तो शादी के बाद रूटी को भी किराए के मकान में क्यों नहीं रखा?
जिन्ना भी शायद चाहते थे कि वह रूटी को पुराने मकान में न रखें। लेकिन कुछ व्यावहारिक दिक्कते थीं, जिनका ख़याल रखना ज़रूरी था। उन्हें एक ऐसे स्थान की ज़रूरत थी, जहां वह अपना वैवाहिक कार्यक्रम आयोजित करें और कार्यक्रम सम्पन्न होने से पहले सर दिनशों को उस स्थान की भनक तक ना लगे। यह स्थान मालाबार हिल के उनके अपने मकान (साउथ कोर्ट) से बेहतर कोई दूसरा नहीं हो सकता था, जिसमें अक्सर ताला पड़ा रहता था।
जिन्ना का पूरा ध्यान अपनी गुप्त शादी से पहले ऐसी व्यवस्थाएं करने में लगा रहा। इस वजह से उन्हें रूटी से सलाह-मशविरा करने का कोई मौका नहीं मिल सका। वह पिछले दस सालों की अपनी एकमात्र स्त्री-साथी, अपनी छोटी बहन फ़ातिमा को जैसे-तैसे वहां ला पाए थे। इस तरह जिन्ना साउथ कोर्ट आने के फैसले के मामले में पूरी तरह से अपने पुराने वफ़ादार सेवकों पर निर्भर रहे थे।