प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘परिवारवाद’ पर लगातार हमलावर रहे हैं। भाजपा के स्टार प्रचारक के तौर पर नरेंद्र मोदी अक्सर क्षेत्रीय दलों पर ‘परिवारवादी राजनीति’ करने का आरोप लगाते है। लोकसभा चुनाव की घोषणा होने से ठीक पहले मोदी ने परिवारवाद को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया था।
लेकिन विडंबना यह है कि जिस ‘परिवारवाद’ पर भाजपा नियमित रूप से हमला करती है, उसने कई राज्यों में अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा ही को लाभ पहुंचाया है। पिछले कुछ महीनों में “परिवार-संचालित” पार्टियों में विभाजन का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को ही मिला है।
क्षेत्रीय दलों में हालिया विभाजन से भाजपा को उन राज्यों में फायदा हुआ है जहां वह बहुत मजबूत खिलाड़ी नहीं रही है। 2019 के बाद से बिहार में पासवान, हरियाणा में चौटाला और महाराष्ट्र में पवार और ठाकरे द्वारा संचालित पार्टियों को विभाजन का सामना करना पड़ा है।
अलग हुए समूहों ने भाजपा से हाथ मिला लिया है, जिससे संबंधित राज्यों में भाजपा मजबूत हो रही है और यहां तक कि उसे सरकार बनाने में भी मदद मिल रही है, जैसा कि हरियाणा और महाराष्ट्र में देखा गया था।
बिहार और परिवारवाद
सोमवार (15 अप्रैल) को बिहार में एक जनसभा को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘गुंडाराज’ और ‘परिवारवाद की राजनीति’ को खत्म करने के लिए एनडीए को वोट करने की अपील की।

दिलचस्प है कि योगी आदित्यनाथ खुद भी एक तरह से ‘परिवारवादी राजनीति’ का परिणाम हैं। अजय सिंह बिष्ट को योगी आदित्यनाथ, उनके चाचा महंत अवैद्यनाथ ने बनाया था। अवैद्यनाथ गोरखनाथ पीठ के महंत थे। पीठ में हजारों सन्यासी थे, लेकिन जब उत्तराधिकारी चुनने का समय आया तो अवैद्यनाथ ने अपने भतीजे आदित्यनाथ को चुना। इसके चार साल बाद जब सांसद अवैद्यनाथ ने अपना पारंपरिक लोकसभा सीट छोड़ने का मन बनाया, तो उसे भी आदित्यनाथ को ही सौंपा। योगी आदित्यनाथ के पिता आनंद सिंह बिष्ट, अवैद्यनाथ के मामा के लड़के थे।
अब लौटते हैं बिहार में परिवारवाद की राजनीति पर। अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी परिवारवाद की राजनीति होती है। लेकिन भाजपा, जिस नैतिक साहस के साथ बिहार में परिवारवाद की राजनीति का मुद्दा उठा रही है, वह हैरान करने वाला है क्योंकि एनडीए के 40 में से 14 प्रत्याशी ऐसी ही राजनीति के नतीजे हैं।
आलम यह है कि खुद तेजस्वी यादव, जिने परिवार पर भाजपा अक्सर परिवारवादी राजनीति करने का आरोप लगती है, वो भाजपा ‘आईना’ दिखा रहे हैं। यादव ने बकायदा एनडीए के उम्मीदवारों की पारिवारिक पृष्ठभूमि का विश्लेषण कर सोशल मीडिया पर डाला है।
बिहार में भाजपा का परिवारवाद
| लोकसभा क्षेत्र | प्रत्याशी | पारिवारिक पृष्ठभूमि |
| औरंगाबाद | सुशील सिंह | पिता, राम नरेश सिंह, पूर्व सांसद |
| नवादा | विवेक ठाकुर | पिता, सीपी ठाकुर, पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व सांसद |
| सासाराम | शिवेश राम | पिता, मुन्नी लाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व सांसद |
| पश्चिमी चंपारण | संजय जायसवाल | पिता, मदनलाल जायसवाल, पूर्व सांसद |
| पटना साहिब | रविशंकर प्रसाद | पिता, ठाकुर प्रसाद, पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक |
| मधुबनी | अशोक यादव | पिता, हुकुमदेव यादव, पूर्व मंत्री और पूर्व सांसद |
भाजपा की सहयोगी एलजेपी (आर) का परिवारवाद
| लोकसभा क्षेत्र | प्रत्याशी | पारिवारिक पृष्ठभूमि |
| जमुई | अरुण भारती | ससुर, दिवंगत रामविलास पासवान, पूर्व केंद्रीय मंत्री |
| समस्तीपुर | शांभवी | पिता, अशोक चौधरी, पूर्व मंत्री और एमएलसी |
| हाजीपुर | चिराग पासवान | पिता, दिवंगत रामविलास पासवान, पूर्व केंद्रीय मंत्री |
| वैशाली | वीणा देवी | पति, दिनेश सिंह, एमएलसी |
भाजपा की सहयोगी जद(यू) का परिवारवाद
नीतीश कुमार भी परिवारवाद के खिलाफ मुखर रहे हैं। इस वर्ष की शुरुआत में नीतीश कुमार ने जननायक कर्पूरी ठाकुर की जन्म शताब्दी पर परिवारवाद को लेकर हमला किया था, जिसके बाद बिहार की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिला था। नीतीश ने अब तक खुद के परिवार के लोगों को तो टिकट नहीं दिया। लेकिन उनकी पार्टी जदयू से कई ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है, जिनके पहले से राजनीतिक ताल्लुक हैं।
| लोकसभा क्षेत्र | प्रत्याशी | पारिवारिक पृष्ठभूमि |
| शिवहर | लवली आनंद | पत्नी आनंद मोहन, पूर्व सांसद |
| वाल्मीकिनगर | सुनील कुमार | पिता वैद्यनाथ महतो, पूर्व मंत्री और पूर्व सांसद |
| सीवान | विजय लक्ष्मी | पति, रमेश कुशवाहा, पूर्व विधायक |
राजद का परिवारवाद
| लोकसभा क्षेत्र | प्रत्याशी | पारिवारिक पृष्ठभूमि |
| सारण | रोहिणी आचार्य | पिता लालू यादव, मां राबड़ी देवी (दोनों बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री) |
| पाटलिपुत्र | मीसा भारती | पिता लालू यादव, मां राबड़ी देवी (दोनों बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री) |
| बक्सर | सुधाकर सिंह | पिता, जगदानंद सिंह, पूर्व मंत्री |
| गया | कुमार सर्वजीत | पिता, दिवंगत राजेश कुमार, पूर्व सांसद |
| मधेपुरा | कुमार चंद्रदीप | पिता, आरके यादव, पूर्व राज्यसभा और पूर्व लोकसभा सांसद |
झारखंड के राजनीतिक परिवार की बहू को भाजपा ने अपनाया
झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के संस्थापक शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन भाजपा में शामिल हो गईं हैं। सीता सोरेन ने कहा था कि उपेक्षा के कारण उन्हें झामुमो छोड़ने के लिए “मजबूर” किया गया। सोरेन को भाजपा में शामिल करने से पार्टी को आदिवासियों के बीच झामुमो के प्रभाव का मुकाबला करने में मदद मिल सकती है, जो राज्य की आबादी का 26% हिस्सा हैं। बता दें कि लोकसभा चुनाव से बाद इस साल के अंत में झारखंड में विधानसभा चुनाव भी हैं।
महाराष्ट्र में भी भाजपा को परिवारवाद का फायदा
एनसीपी के विभाजन और अजीत गुट के एनडीए में शामिल होने के बाद महाराष्ट्र, विशेष रूप से बारामती में भी एक और चाचा-भतीजे की जोड़ी – शरद पवार और अजीत पवार के बीच इसी तरह की लड़ाई देखी जा रही है। एनसीपी में विभाजन से राज्य में भाजपा को फायदा होता, नजर आ रहा है। महाराष्ट्र में भाजपा अब तक क्षेत्रीय दलों पर निर्भर है।
2019 में, भाजपा ने अविभाजित शिवसेना के साथ मिलकर महाराष्ट्र की सभी 48 सीटें जीतीं। हालांकि, शिवसेना के चले जाने के बाद वह बिना किसी सहयोगी दल के रह गई।
अब, अजित पवार की एनसीपी, जिसका पश्चिमी महाराष्ट्र में प्रभाव है, और एकनाथ शिंदे की सेना, जिसका मराठवाड़ा क्षेत्र पर नियंत्रण है, के साथ एनडीए 2019 के अपने प्रदर्शन को लगभग दोहराने की उम्मीद कर रही है।
इसके अलावा, भाजपा को अजित पवार के सहारे शरद पवार का गढ़ बारामती सीट हासिल करने की उम्मीद होगी। भाजपा ने प्रतिष्ठित बारामती सीट कभी नहीं जीती है, 1984 के बाद से पवार इस सीट पर जीत हासिल कर रहे हैं।
इस बार इस सीट पर पवार बनाम पवार की लड़ाई है, जिसमें अजित पवार अपनी पत्नी सुनेत्रा को मौजूदा सांसद और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ मैदान में उतारा है।
हरियाणा में इनेलो विभाजन से बीजेपी को कैसे फायदा हुआ?
2019 में परिवार-आधारित पार्टी में एक और विभाजन ने भाजपा को लोकसभा चुनावों के साथ-साथ हरियाणा में सत्ता में आने में मदद की, क्योंकि वह अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा पार करने में विफल रही थी।
पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के उत्तराधिकारियों के बीच मतभेदों से इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) में विभाजन और एक अलग समूह, जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के गठन के कारण जाट वोटों में विभाजन हुआ था, जिससे भाजपा को जीत हासिल करने में मदद मिली।
जब भाजपा हरियाणा विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने से चूक गई थी, तो राज्य में लगातार दूसरी सरकार बनाने के लिए जेजेपी से मदद मिली थी। इस चुनाव में जेजेपी भाजपा से अलग हो गई है।
वंशवादी राजनीति और कलह
भारत का राजनीतिक इतिहास इस बात का गवाह है कि वंशवादी पार्टियों में आंतरिक कलह की संभावना अधिक होती है। नेहरू-गांधी परिवार में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनकी बहू मेनका गांधी, तमिलनाडु में करुणानिधि परिवार में भाई एमके स्टालिन और एमके अझागिरी, मध्य प्रदेश में सिंधिया या महाराष्ट्र में ठाकरे के बीच दरार कुछ उदाहरण हैं।
जब राजनीतिक राजवंश विभाजित होते हैं, तो इसका प्रभाव केवल परिवार तक ही सीमित नहीं होता है और इसकी लहरें राष्ट्रीय स्तर पर भी महसूस की जाती हैं। यह देखना बाकी है कि परिवार संचालित पार्टियों में हालिया फूट से भाजपा को लोकसभा चुनाव में क्या फायदा होता है।
