कांवड़ यात्रा के रूट पर पड़ने वाले दुकानदारों को अपनी नेमप्लेट लगाने के यूपी और उत्तराखंड सरकार के आदेशों के बीच एक वायरल वीडियो को जरूर देखा जाना चाहिए। यह वीडियो हरिद्वार से आया है, जहां एक कांवड़िये को बचाने के लिए जल गोताखोर अपनी जान की बाजी लगाकर गंगा में कूद पड़े और कांवड़िये को बचाने में कामयाब रहे।
22 जुलाई को हरिद्वार के कांगड़ा घाट पर एक कांवड़िया नहाने के दौरान डूबने लगा। इस कांवड़िये का नाम पवन कुमार है और उसकी उम्र 29 साल है। वह हरियाणा के रोहतक का रहने वाला है। जब पवन कुमार डूबने लगा तो वहां पर जल पुलिस के गोताखोरों ने तुरंत सक्रियता दिखाई और नदी में छलांग लगाकर बहते जा रहे पवन कुमार को बचा लिया।
अब आप पवन कुमार को बचाने वाले जल पुलिस के गोताखोरों के नाम पढ़िए। इनके नाम विक्रांत, सनी कुमार और एसडीआरएफ की ओर से शुभम और आसिफ अली हैं।
अपनी ड्यूटी को अंजाम देते हुए आसिफ अली ने यह बिल्कुल नहीं सोचा कि वह जिस शख्स को बचाने के लिए गंगा में कूदा है, उसका मत, मजहब, क्षेत्र क्या है।
यह घटना कांवड़ यात्रा के पहले ही दिन की है। और, यात्रा शुरू होने से पहले किस बात को लेकर विवाद छाया रहा, यह आप सबको पता ही होगा।
हिंदुस्तान के टीवी चैनलों से लेकर अखबारों और सोशल मीडिया में बीते दिनों कांवड़ रूट पर दुकानदारों द्वारा नेमप्लेट लगाए जाने के सरकारी आदेश का मुद्दा बड़े पैमाने पर छाया रहा था।
क्या कहा गया था आदेश में?
योगी आदित्यनाथ सरकार का आदेश था कि उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा मार्ग पर अपना व्यवसाय कर रहे दुकानदारों को अपने व्यवसाय के बाहर नेम प्लेट लगानी होगी।
विशेषकर होटल, ढाबा संचालकों को यह बताना होगा कि उनका नाम क्या है, उनके वहां काम कर रहे कारीगरों का क्या नाम है और वे शाकाहारी भोजन बनाते हैं या मांसाहारी।
बाद में हरिद्वार में भी ऐसा ही आदेश जारी हुआ था।

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
योगी आदित्यनाथ सरकार के नक्शे कदम पर आगे बढ़ते हुए पड़ोसी राज्य उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने भी कुछ ऐसा ही फरमान जारी कर दिया और इसे लेकर सोशल मीडिया पर बहस का दौर शुरू हो गया। इस दौरान सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों पर मुस्लिम ढाबा संचालकों और फल विक्रेताओं की कई तस्वीरें भी वायरल हुई।
भाजपा सरकारों के इस फरमान ने आम लोगों को दो धड़ों में बांट दिया। कुछ लोगों ने इस फैसले को सही बताया तो कुछ लोगों ने कहा कि यह फैसला लोगों के बीच दूरियां बढ़ने वाला है। इससे समाज में एक-दूसरे के प्रति नफरत बढ़ेगी और भाईचारा खत्म होगा।
योगी आदित्यनाथ और उत्तराखंड सरकार के फरमान को लेकर सैकड़ों लोगों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी प्रतिक्रिया दी और यह मामला इतना बढ़ गया कि सुप्रीम कोर्ट की दहलीज तक पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता से सुनवाई करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि कांवड़ यात्रा रूट पर पड़ने वाले ढाबा संचालक और फल बेचने वाले आदि अपना नाम दुकान के बाहर लिखने के मामले में स्वतंत्र हैं। यानी अगर वे चाहें तो अपना नाम लिख सकते हैं वरना नहीं। अदालत ने कहा कि पुलिस को उन्हें अपना नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए।

लाखों की संख्या में हरिद्वार आते हैं कांवड़िए
सावन का महीना शुरू होते ही हजारों-लाखों की संख्या में कांवड़िए देश में अलग-अलग जगहों से हरिद्वार आते हैं और यहां से जल भरकर अपने शहर में या गांव में किसी मंदिर में शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। बारिश के मौसम की वजह से हरिद्वार में गंगा का जलस्तर इन दिनों बहुत ज्यादा रहता है और इसलिए जल गोताखोर किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहते हैं। बिना किसी भेदभाव के।
एसडीआरएफ का मतलब स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स है। एसडीआरएफ राज्यों में आपदा प्रबंधन के दौरान काम करता है। किसी भी जगह कोई आपदा, चक्रवात, दुर्घटना की स्थिति में राज्य सरकार द्वारा एसडीआरएफ के जवानों को तैनात किया जाता है। एसडीआरएफ के लिए केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को धन दिया जाता है। केंद्र सरकार सामान्य श्रेणी के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 75% और विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए 90% का योगदान देती है। विशेष श्रेणी के राज्यों में पूर्वोत्तर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर शामिल हैं।
यह जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है कि वे एसडीआरएफ को पैसा और दूसरी जरूरी चीजें उपलब्ध कराएं जिससे एसडीआरएफ के जवान किसी भी आपदा के समय तुरंत मौके पर पहुंचकर राहत और बचाव कार्य शुरू कर सकें।