भारत कई धार्मिक समुदायों का ठिकाना रहा है। यहूदी भी उनमें से एक हैं। भारत में बसने वाले कई यहूदी दावा करते रहे कि उनके पूर्वज यहां 2000 वर्ष पहले आए थे। वह भारत की आधुनिक क्षेत्रीय सीमाओं के बाहर से आए थे और इसे अपना घर बनाया था। वह सदियों तक भारत में रहे। विद्वानों ने अक्सर इस बात पर ध्यान दिलाया है कि भारत दुनिया की एकमात्र ऐसी जगह है जहां यहूदियों को कभी भी यहूदी विरोधी भावना का सामना नहीं करना पड़ा।
हालांकि, 1947 में भारत की स्वतंत्रता और 1948 में इजरायल की स्थापना के बाद बहुत कुछ बदल गया। यहूदी इजरायल को अपनी पवित्र भूमि मानते हैं। नए देश की स्थापना के बाद इजरायल ने यहूदियों को पवित्र भूमि पर आकर बसने के संकेत दिए। इसके बाद भारतीय यहूदियों की एक बड़ी संख्या ने इजरायल जाने का फैसला किया।
यहूदियों के भारत से पलायन के कई कारण थे। कुछ बेहतर आर्थिक संभावनाओं की तलाश में गए, कुछ अंग्रेजों के भारत छोड़ने की निराशा में गए, जबकि कुछ को इजरायल के धार्मिक आह्वान ने आकर्षित किया। 1948 के बाद भारत-इजरायल संबंधों पर न केवल उन यहूदियों का प्रभाव पड़ा जिन्होंने भारत में रहना चुना, बल्कि उनका भी प्रभाव पड़ा जिन्होंने जाने का फैसला किया।
भारत में चार तरह के यहूदी रहते थे
हम भारत से पलायन कर इजरायल जाने वाले यहूदियों की कहानी जाने, इससे पहले कुछ तथ्य जान लेते हैं। भारत में रहने वाले सभी यहूदी एक संप्रदाय के नहीं थे। भारत में यहूदियों के चार मुख्य संप्रदाय थे।
1. कोचीन यहूदी: इनके बारे में कहा जाता है कि ये सबसे पहले 50 ईस्वी में भारत आए थे।
2. बेने इजरायल: संख्या के लिहाज से यहूदियों का यह संप्रदाय सबसे बड़ा था। ये महाराष्ट्र और कोंकण के आसपास बसे थे।
3. बगदादी यहूदी: यह भारत से सबसे आखिर में इजरायल जाने वाला यहूदी संप्रदाय थी। ये ज्यादातर पोर्ट के किनारे वाले शहरों में बसे थे, जैसे कलकत्ता, बॉम्बे और रंगून (अब म्यांमार)।
4. बनी मेनाशे: यहूदियों का यह संप्रदाय उत्तर पूर्व में बसा था।
भारत में यहूदियों के इन चारों संप्रदायों के बीच उत्पत्ति, सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि और सांस्कृतिक परंपराओं में महत्वपूर्ण अंतर थे। कई मुद्दों पर इन संप्रदायों में गहरी असहमती थी। वे एक दूसरे को नीचा भी दिखाते थे। यही यहूदी जब इजरायल पहुंचे तो कई को भेदभाव का सामना करना पड़ा, खासकर शुरुआती दशकों में।
भारतीय यहूदियों का क्या झेलना पड़ा?
इजरायल में बसने वाले ज्यादातर यहूदी यूरोपीय मूल के थे। अधिकांश गोरे थे। भारतीय यहूदियों में सबसे ज्यादा भेदभाव का सामना बेने इजरायल संप्रदाय के यहूदियों को करना पड़ा था। 1948 और 1952 के बीच लगभग 2300 बेने इजरायली के इजरायल पलायन करने का रिकॉर्ड है।
1950 के दशक के अंत तक कई मीडिया रिपोर्ट्स ने इजरायल में बेने इजरायली समुदाय के साथ हो रहे नस्लवाद को दर्ज किया। यहूदियों के बारे में विशेष अध्ययन करने वाले शिफ़्रा स्ट्रिज़ॉवर ने लिखा है कि असल में 1950 के दशक की शुरुआत में कई बेने इजरायली को नए बने देश में तालमेल बिठाने में मुश्किल आ रही थी। उन्हें नौकरी और घर लेने में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा था। वे कहते थे कि उन्हें पलायन से पहले बताया नहीं गया था कि इजरायल में जीवन कैसे होगा।
बेने इजरायल संप्रदाय के यहूदियों के साथ भारत से ही गए कोचीन यहूदियों से विपरीत व्यवहार किया जाता था। कोचीन यहूदियों के बारे में ऐसा माना जाता था कि वे धार्मिक कारणों से इजरायल गए। जबकि बेने इजरायल यहूदियों के बारे में कहा जाता था कि वे अपनी आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए नए देश में गए थे। बेने इजरायल यहूदियों को न तो ज़ायोनीवादी और न ही धार्मिक माना जाता था।
यहूदी लड़की से शादी करने पर लगी रोक
बेने इज़राइल का सबसे बड़ा अपमान तब हुआ जब 1960 में सेफ़र्डिक प्रमुख रब्बी इत्ज़ाक निस इम ने बेने इजरायल को यहूदी मानने से इनकार कर दिया और उन्हें अन्य यहूदियों से शादी करने से मना कर दिया। बाद में एक सिविल राइट्स मूवमेंट के कारण उनके रुख को चुनौती दी गई। इजरायली सरकार और यहूदी समुदाय के दबाव के कारण, सेफ़र्डिक प्रमुख को अपना फैसला बदलना पड़ा।
आने वाले वर्षों में बेने इजरायल की एक बड़ी आबादी इजरायल में तो रही लेकिन वे न तो राजनीतिक रूप से सक्रिय दिखे और न ही आर्थिक रूप से संपन्न।
भारत से जाकर भी…
भारत से पलायन कर इजरायल जाने वाले यहूदियों ने कई कठिनाइयों का सामना किया। इसके बावजूद, एक बड़ी आबादी वहां रुक गई और उन्होंने भारतीय संस्कृति के उन पहलुओं को जीवित रखा जो वे अपने साथ वहां ले गए थे। वर्तमान में इजराइल में लगभग 85,000 भारतीय मूल के यहूदी रहते हैं। इनके एक बड़े वर्ग में भारतीय भाषा, खान-पान और सांस्कृतिक की झलक दिखाती है। इजरायल में भारतीय यहूदी समुदाय के बीच भारतीय सिनेमा, विशेष रूप से बॉलीवुड फिल्मों और गानों का बहुत क्रेज है।