Highest Plastic Pollution: वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण के मामले में भारत का नंबर पांचवां है। इस बात की जानकारी पिछले हफ्ते नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आई है। भारत हर साल लगभग 5.8 मिलियन टन प्लास्टिक जलाता है और 3.5 एमटी प्लास्टिक को मलब के तौर पर पर्यावरण में छोड़ता है। कुल मिलाकर भारत सालाना दुनिया में 9.3 एमटी प्लास्टिक प्रदूषण फैलाता है। यह नाइजीरिया, इंडोनेशिया और चीन के मुकाबले काफी ज्यादा है।

लीड्स यूनिवर्सिटी के रिसर्चर जोशुआ डब्ल्यू कॉटम, एड कुक और कोस्टास ए वेलिस ने अपने इस अध्ययन में यह अनुमान लगाया है कि हर साल लगभग 251 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। यह 200,000 ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल भरने के लिए काफी है। इस कचरे का लगभग पांचवां 52.1 मीट्रिक टन कचरा पर्यावरण में बाहर कर दिया जाता है। इस कचरे को या तो रीसाइकिल किया जाता है या लैंडफिल में भेजा जाता है। ज्यादातर प्लास्टिक के कचरे का यही हाल होता है। अनमेनेज्ड कचरा वह होता है जो पर्यावरण में मलबे के तौर पर खत्म होता है। माउंट एवरेस्ट की ऊंचाइयों से लेकर प्रशांत महासागर में मारियाना ट्रेंच तक धरती पर हर जगह पर्यावरण को यह प्रदूषित करता है।

20 देशों से आता है 69 फीसदी प्रदूषण

इसकी वजह से कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी गहरीली गैसें पैदा होती हैं। इसी वजह से हार्ट संबंधी और सांस संबंधी बीमारी होती है। अनमेनेज्ड कूड़े में से लगभग 43 फीसदी या 22.2 मीट्रिक टन कूड़ा मलबे के तौर पर पड़ा हुआ है और लगभग 29.9 मीट्रिक टन कूड़ा स्थानीय जगहों पर जला दिया जाता है। इस अध्ययन में कहा गया है कि प्लास्टिक का कूड़ा सबसे ज्यादा दक्षिणी एशिया, उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण-पूर्वी एशिया में पैदा होता है। वास्तव में दुनिया के प्लास्टिक प्रदूषण का लगभग 69 फीसदी 20 देशों से आता है।

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ग्लोबल साउथ में प्लास्टिक प्रदूषण का कारण

ग्लोबल साउथ में प्लास्टिक का प्रदूषण होना इसका खुले में जलना है। वहीं ग्लोबल नॉर्थ में प्लास्टिक प्रदूषण में मलबा अहम भूमिका निभाता है। रिसर्च करने वालों का कहना है कि यह पूरी तरह से कूड़े को मैनेज करने के तरीकों में कमी को दिखाता है। कोस्टास वेलिस ने बताया कि हमें ग्लोबल साउथ पर कोई भी दोष नहीं मढ़ना चाहिए। ग्लोबल नॉर्थ में हम जो करते हैं उसके लिए किसी भी तरह से खुद की तारीफ नहीं करनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि लोगों की कचरे के निपटान करने की शक्ति उनकी सरकार के तौर तरीकों पर ही निर्भर करती है।

अंतरराष्ट्रीय संधि पर चल रही बात

यह अध्ययन उस समय आया है जब प्लास्टिक प्रदूषण पर इंटरनेशल ट्रीटी पर बातचीत चल रही है। साल 2022 में यूएन एनवॉयरमेंट असेंबली ने 2024 के आखिर तक ऐसी ट्रीटी विकसित करने पर इच्छा जाहिर की है। इसके बारे में एक्सपर्ट का कहना है कि यह 2025 में जलवायु परिवर्तन पर पेरिस एग्रीमेंट के बाद सबसे जरूरी समझौता हो सकता है। हालांकि, इस बात पर आम सहमति बनने में काफी मुश्किल आ सकती है। एक तरफ इंडस्ट्री ग्रुप है। वह प्लास्टिक प्रदूषण को वेस्ट मेनेजमेंट समस्या के तौर पर देखते हैं। वह इसको कम करने के बजाय उस पर ज्यादा फोकस करवाते हैं। दूसरी तरफ यूरोपीय संघ और अफ्रीका के देश हैं। यह प्लास्टिक को धीरे-धीरे खत्म करना चाहते हैं।

इस हाई एम्बिशन कोएलिशन का कहना है कि प्लास्टिक कचरे को इस कदर मैनेज करना कि वहां पर बिल्कुल भी प्रदूषण ना हो बिल्कुल ही नामुमकिन है। रीसाइकलिंग में बहुत ज्यादा खर्च होता है। साइंस एडवांसेज नाम की पत्रिका में अप्रैल में छपे एक अध्ययन में प्लास्टिक प्रदूषण पैदा होने में बढ़ोतरी और प्लास्टिक प्रदूषण के बीच में सीधा-सीधा संबंध पाया गया है। बता दें कि प्लास्टिक इंडस्ट्री ग्रुप ने इस अध्ययन की तारीफ की है।