स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को युवा राष्ट्र बताया था। उन्होंने भारत के युवाओं के सामने मौजूद अवसरों पर प्रकाश डाला था।
प्रधानमंत्री ने कहा था, “आज पूरे विश्व में जहां देशों की उम्र ढल रही है, ढलाव पर है तो भारत यौवन की तरफ ऊर्जावान हो करके बढ़ रहा है। कितने बड़े गौरव का कालखंड है कि आज 30 साल की कम आयु की जनसंख्या दुनिया में सर्वाधिक कहीं है तो ये मेरे भारत मां की गोद में है। ये मेरे देश में है और 30 साल से कम उम्र के नौजवान हो, मेरे देश के पास हो, कोटि-कोटि भुजाएं हों, कोटि-कोटि मस्तिष्क हों, कोटि-कोटि सपने, कोटि-कोटि संकल्प हों तो भाइयों और बहनों, मेरे प्रिय परिवारजनों, हम इच्छित परिणाम प्राप्त करके रह सकते हैं।”
उन्होंने आगे कहा था, “मैं आज मेरे देश के नौजवानों को, मेरे देश की बेटे-बेटियों को ये जरूर कहना चाहूंगा, जो सौभाग्य आज मेरे युवाओं को मिला है, ऐसा सौभाग्य, शायद ही किसी को नसीब होता है, जो आपको नसीब हुआ है। और इसलिए हमें ये गंवाना नहीं है। युवा शक्ति में मेरा भरोसा है, युवा शक्ति में सामर्थ्य है और हमारी नीतियां और हमारी रीतियां भी उस युवा सामर्थ्य को और बल देने के लिए है।”
हालांकि, CMIE के इकोनॉमिक आउटलुक डेटा से पता चलता है कि भारत सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश हो सकता है, लेकिन इसका वर्कफोर्स तेजी से बूढ़ा हो रहा है। दूसरे शब्दों में युवा तेजी से जॉब मार्केट से बाहर हो रहे हैं।
वर्कफोर्स में बूढ़े लोगों की अधिकता, क्या है इसका मतलब?
वर्कफोर्स में बूढ़े लोगों की संख्या बढ़ने का मतलब यह है कि युवा लोगों की हिस्सेदारी कम हो रही है और 60 वर्ष के करीब की उम्र वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है।
CMIE के आंकड़ों में 15 वर्ष से अधिक और 25 वर्ष से कम आयु के लोगों को युवा के रूप में परिभाषित किया गया है। हालांकि प्रधानमंत्री ने 30 वर्ष से कम उम्र वालों को युवा वर्ग के रूप में बताया, इसलिए हमने वर्कफोर्स को तीन समूहों में विभाजित किया है:
- जिनकी आयु 15 वर्ष या अधिक लेकिन 30 वर्ष से कम है
- जिनकी आयु 30 वर्ष या अधिक लेकिन 45 वर्ष से कम है
- 45 वर्ष और उससे अधिक आयु वाले
टेबल नंबर 1 भारत के टोटल वर्कफोर्स में इन तीन आयु समूहों की हिस्सेदारी दर्शाता है।

टेबल नंबर 1 से पता चलता है कि भारत के युवाओं की हिस्सेदारी (जो मानक पीएम मोदी द्वारा बताया गया।) 2016-17 में 25% थी। जो पिछले वित्तीय वर्ष के मार्च में गिरकर 17% हो गई है। यहां तक कि मिडिल ग्रुप (30 से 45 वर्ष) के लोगों की हिस्सेदारी भी इसी अवधि में 38% से गिरकर 33% हो गई है।
वहीं, सबसे बुजुर्ग आयु वर्ग की हिस्सेदारी 37% से बढ़कर 49% हो गई है। दूसरे शब्दों में कहें तो पिछले सात वर्षों में वर्कफोर्स इतना बूढ़ा हो गया है कि 45 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों की हिस्सेदारी एक तिहाई से बढ़कर लगभग आधी हो गई है।

टेबल नंबर 2, टेबल नंबर 1 के डेटा को ही प्रतिशत में न दर्शा कर, एब्सोल्यूट नंबर में दिखा रहा है। इससे पता चलता है कि 2016-17 में नौकरीपेशा लोगों की कुल संख्या 41.27 करोड़ थी, जो 2022-23 में गिरकर 40.58 करोड़ हो गई है। इस दौरान भारत के युवाओं की भागीदारी में बड़ी गिरावट आई है।
2016-17 में 30 साल से कम उम्र के 10.34 करोड़ लोग नौकरी में थे। 2022-23 के अंत तक यह संख्या 3 करोड़ से अधिक गिरकर सिर्फ 7.1 करोड़ रह गई। दूसरी तरफ ओवरऑल नौकरीपेशा लोगों की संख्या में गिरावट होने के बावजूद वर्कफोर्स में 45 वर्ष और उससे अधिक आयु वालों की संख्या में वृद्धि हुई।