दो साल पुरानी बात है। साल 2021 में अचानक इस बात पर चर्चा होने की लगी ‘आतंकवादी कौन सा स्कार्फ पहनते हैं?’। दरअसल, गूगल ‘What Scarf Do Terrorists Wear? के जवाब में जिस स्कार्फ की तस्वीर दिखा रहा था, वह फिलिस्तीन के लोगों के पारंपरिक लिबास का हिस्सा रहा है। इस स्कार्फ को keffiyeh कहते हैं।
फिलिस्तीन की आम जनता तो इसे पहनती ही रही है। लेकिन अक्सर यह संघर्षरत फिलिस्तीनों के गले या सिर पर लिपटे रहने वजह से चर्चा में आता है। यही वजह है कि काले और सफेद चेकदार कपड़े का यह टुकड़ा अब एक तरह से फिलिस्तीन का अनौपचारिक झंडा बन गया है।
आम तौर पर फिलिस्तीनी केफीयेह की लंबाई 122 सेमी और चौड़ाई 14 सेमी होती है। इसे त्रिकोण की तरह मोड़कर सिर पर रखते हैं या गले में लपेटते हैं। फिलिस्तीनी केफीयेह का दिलचस्प इतिहास है। इसे इस्लाम की उत्पत्ति से बहुत पहले की मेसोपोटामिया सभ्यता से जुड़ा बताया जाता है।
केफीयेह को शेमाघ स्कार्फ, अरब स्कार्फ, फिलिस्तीनी हट्टा, यामेघ और इगल के नाम से भी जाना जाता है। समय, स्थान और संस्कृति के आधार पर शेमाघ पहनने के कई अलग-अलग मतलब होते हैं। केफीयेह का प्रतीकात्मक अर्थ, उसका रंग और उसकी शैली एक देश से दूसरे देश और यहां तक कि एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होती है। उदाहरण के लिए फिलिस्तीनी प्रदर्शनकारी सफेद और काले चेक वाले केफीयेह पहनते हैं। अक्सर फिलिस्तीन के साथ एकजुटता दिखाने के लिए गैर फिलिस्तीनी मानवाधिकार कार्यकर्ता, युद्ध-विरोधी प्रदर्शनकारी और मशहूर हस्ती भी इसे पहनते हैं।
केफीयेह की उत्पत्ति की अलग-अलग कहानी?
ऐसा कहा जाता है कि केफीयेह ‘कूफा’ से बना है। कूफा बगदाद के दक्षिण में स्थित एक इराकी शहर है। यह यूफ्रेट्स नदी के किनारे बसा है। केफीयेह कूफा से ही दुनिया भर में पहुंचा। लेकिन इसे लेकर एक दूसरी भी कहानी है। कहा जाता है कि केफीयेह का मूल इतिहास मेसोपोटामिया सभ्यता से जुड़ा है। तब यामेघ या शेमाघ पुजारी पहना करते थे। यह उच्च पद या सम्मान का प्रतीक हुआ करता था। तब पुजारी ही शासक थे और उन ज़मीनों का प्रबंधन और नियंत्रण करते थे, जहां वे रहते थे।
इतिहास में आगे बढ़ते हुए, सिर ढकने के लिए केफीयेह को किसानों द्वारा अपनाया गया। जमीन पर काम करते समय धूप और रेत से बचाने के लिए किसान केफीयेह इस्तेमाल करने लगे। वह गर्मी में इसी से अपने चेहरे का पसीना पोंछते और सर्दियों में सिर व कान ढकते।
फिलिस्तीनी केफीयेह का आधुनिक इतिहास
ए सोशियो-पॉलिटिकल हिस्ट्री ऑफ द केफीयेह की लेखिका अनु लिंगाला द मिडिल ईस्ट आई को बताती हैं कि केफीयेह पारंपरिक रूप से श्रमिक वर्गों से जुड़ा है। फिलिस्तीन में केफीयेह की आधुनिक जड़ें फेलाह और बेडौइन से जुड़ी हैं। ये दोनों ग्रामीण श्रमिक समूह हैं। दोनों समूह अपनी गर्दन के पिछले हिस्से को ढकने के लिए अपने सिर पर कपड़ा रखते हैं। इससे वे गर्मियों में सूरज की गर्मी और सर्दियों के दौरान ठंड से खुद को बचाते हैं। लिंगाला के अनुसार “फिलिस्तीनी संस्कृति में सिर ढंकना एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है।
इजरायल के खिलाफ ही नहीं, पहले भी कई शासकों के खिलाफ केफीयेह का हुआ है इस्तेमाल
ओटोमन साम्राज्य के समय शिक्षित और शहरी फिलिस्तीनी फेज या तारबोश पहनेंगे लगे। यह एक गहरे लाल रंग की टोपी थी, जिसे ओटोमन शासक महमूद द्वितीय ने लोकप्रिय बनाया था। स्थानीय लोगों ने टोपी को पोशाक के एक मानक रूप के अपनाया लिया। कल्चरल हिस्टोरियन जेन टायनन ने फैशन एंड पॉलिटिक्स नामक किताब में बताया है कि “ओटोमन साम्राज्य के ड्रेस कोड में जातीय-धार्मिक पहचान नहीं झलकती थी।”
लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान केफीयेह लौटा। 1936 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ अरब विद्रोह के बाद, फिलिस्तीनी राष्ट्रवादियों ने पहचान छिपाने और गिरफ्तारी से बचने के लिए केफीयेह का इस्तेमाल किया। वह अपने चेहरे को केफीयेह से ढकते थे। नकबा (फिलिस्तीनियों के लिए साल का सबसे दुख भरा दिन) और इजरायल राज्य की स्थापना के बाद यह फिलिस्तीनी नेशनलिज्म का एक प्रमुख प्रतीक बना गया।
फिलिस्तीनी विद्रोह का प्रतीक बना केफीयेह
बेथलहम में फिलिस्तीनी हेरिटेज सेंटर के प्रमुख ने मिडिल ईस्ट आई को बताया था, “सभी सामाजिक वर्गों के फिलिस्तीनियों ने फेज को त्याग दिया और केफीयेह पहनकर एकजुट हो गए, जिससे क्रांतिकारियों की पहचान करना मुश्किल हो गया।”
व्रीजे यूनिवर्सिटी एम्स्टर्डम में डिजाइन हिस्ट्री और थ्योरी के सहायक प्रोफेसर टायनान का कहना है कि “जिस केफीयेह का इस्तेमाल कभी ब्रिटिश अधिकारियों से अपनी पहचान छिपाने के लिए किया जाता था, वह फिलिस्तीनी संघर्ष के प्रतीक बन गया।”
वर्षों बाद 1960 के दशक में दिवंगत फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात ने इस परिधान को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाया। अराफात को इसके बिना कभी भी किसी कार्यक्रम में नहीं देखा गया। उनका केफीयेह हमेशा उनके सिर पर बहुत करीने से होता था। कपड़े का लंबा सिरा उनके दाहिने कंधे पर लटकता था। कुछ लोग कहते हैं कि उनकी कोशिश होती थी कि वह केफीयेह 1948 से पहले के फिलिस्तीन के नक्शे जैसा दिखाएं।
अर्कांसस विश्वविद्यालय में मानव विज्ञान के प्रोफेसर टेड स्वीडनबर्ग के अनुसार, जब इजरायली कब्जे वाले अधिकारियों ने 1967 से 1993 में ओस्लो समझौते तक फिलिस्तीनी ध्वज पर प्रतिबंध लगा दिया, तो स्कार्फ ने एक पावरफुल सिम्बल का रूप ले लिया। स्वीडनबर्ग बताते हैं प्रतिबंध के दौरान केफीयेह फिलिस्तीनी पहचान की अभिव्यक्ति का प्रमुख हिस्सा बन गया।