चक्षु रॉय

गृह मंत्री अमित शाह ने 11 अगस्त को मानसून सत्र के आखिरी दिन देश के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में सुधार के लिए लोकसभा में तीन विधेयक पेश कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। मंत्री ने सदन को बताया कि न्याय के बजाय सजा देने की औपनिवेशिक मानसिकता हमारे आपराधिक कानूनों की नींव में है।

सरकार के मुताबिक, ये तीनों विधेयक इंडियन पीनल कोड, 1860; क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1973 और इंडियन एविडेंस एक्ट, 1872 की जगह लेकर न्याय प्रक्रिया को सरल बनाएंगे। सरकार का कहना है कि कानूनों को समकालीन स्थिति को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है ताकी लोगों को जल्दी न्याय मिल सके।

कौन थे मैकाले, जिसने IPC बनाया?

हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के केंद्र में 164 साल पुराना आईपीसी है, जो अपराधों को परिभाषित करता है और उनकी सजा निर्धारित करता है। IPC को एक अंग्रेज वकील थॉमस बबिंगटन मैकाले ने तैयार किया थे। मैकाले ने खुद एक बार अपने लीगल एक्सपीरियंस के बारे में कहा था कि मेरे कानून का अनुभव इतना सीमित है कि उससे केवल मुर्गी चोरी के मामले में किसी को दोषी ठहराया जा सकता है।

हालांकि मैकाले को तेज तेज दिमाग वाला व्यक्ति माना जाता है। उन्होंने कैंब्रिज से कानून की पढ़ाई की थी और राजनीति में गहरी रुचि रखते थे। उनके लेखन ने उन्हें लोगों के ध्यान में ला दिया और एक वरिष्ठ राजनेता ने उन्हें पॉकेट बोरो सीट की पेशकश की। परिणामस्वरूप, 1830 में 30 वर्ष की आयु में मैकाले हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य बन गए।

ब्रिटिश संसद में मैकाले की भावुक अपील

1833 में यूके संसद में चार्टर अधिनियम पर बहस हुई थी। यह अधिनियम एक ऐसा कानून को लेकर था, जो ईस्ट इंडिया कंपनी के कामकाज को मौलिक रूप से बदल दे। बहस में भाग लेते हुए, मैकाले ने भारत के लिए एक समान कानून संहिता बनाने की भावुक वकालत की।

उन्होंने संसद में अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा कि एक ऐसी संहिता होना चाहिए, जिसमें एकरूपता हो। उन्होंने लॉ मेंबर को भी नियुक्त करने की मांग की। मैकाले ने कहा, “अलिखित न्यायशास्त्र की एक विशाल और कृत्रिम प्रणाली को पचाने का काम कई लोगों की तुलना में कुछ दिमागों द्वारा कहीं अधिक आसानी से किया जाता है, और कहीं बेहतर तरीके से किया जाता है।”

अपनी नौकरी का कर लिया इंतजाम

मैकाले जानते थे कि भविष्य में उनके लिए सीमित राजनीतिक संभावनाएं हैं। भारत की स्थिति उनकी वित्तीय स्थिति को मजबूत करने में मदद कर सकती थी। अपने भाषण के एक महीने बाद बहन को लिखे हुए पत्र में वह स्वीकार करते हैं कि उन्हें यकीन है कि लीग मेंबर के तौर उनको ही नियुक्त किया जाएगा, “फायदा बहुत बड़ा है… वेतन प्रति वर्ष दस हजार पाउंड होगा। जो लोग कलकत्ता को करीब से जानते हैं, उन्होंने मुझे आश्वासन दिया है कि मैं वहां पांच हजार पाउंड प्रति वर्ष में तमाम सुख-सुविधाओं का लाभ उठाते हुए रह सकता हूं, और शेष वेतन ब्याज सहित बचा सकता हूं। ऐसे में मैं 39 की उम्र में तीस हजार पाउंड की संपत्ति के साथ इंग्लैंड लौटूंगा।” तब मैकाले को अपनी किस्मत पर नाज हो रहा है।

1934 में मैकाले भारत आये और गवर्नर जनरल की परिषद के विधायी सदस्य के रूप में काम शुरू किया। एक लॉ मेंबर के रूप में, मैकाले ने सीधे सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर ब्रिटिश निवासियों को प्राप्त विशेषाधिकार को हटाने का समर्थन किया। उन्होंने देश के लिए अंग्रेजी में पश्चिमी शिक्षा पर भी जोर दिया। चार्टर एक्ट ने एक लॉ कमीशन की स्थापना की और उन्हें इसका अध्यक्ष नियुक्त किया। इसी पद पर रहते हुए उन्होंने भारत के आपराधिक कानूनों को समेकित और संहिताबद्ध करने का काम शुरू किया।

भारत आपराधिक कानूनों के संहिताकरण के लिए एक आदर्श कैनवास था। पूरे देश में हिंदू, मुस्लिम और ब्रिटिश कानूनों का मिश्रण लागू था। फिर एक ही अपराध के लिए अलग-अलग सजा होने को लेकर भी समस्या थी। मैकाले एक ऐसी संहिता बनाना चाहते थे जो पूरे भारतीय साम्राज्य में लागू हो और सभी समस्याओं को संभाल सके।

भारत ही नहीं पूरे ब्रिटिश साम्राज्य पर मैकाले का असर

विधि आयोग में पांच अन्य सदस्य थे। कुछ के खराब स्वास्थ्य और दूसरों की क्षमता की कमी के कारण ब्रिटिश साम्राज्य में आपराधिक कानून की पहली संहिता लिखने की सारी जिम्मेदारी मैकाले को उठानी पड़ी। उन्होंने जो कोड तैयार किया वह स्पष्ट और संक्षिप्त था। इसका मुख्य आकर्षण यह था कि इसने कानूनी प्रावधानों को उदाहरणों और दृष्टांतों के माध्यम से समझाया, यह प्रथा अभी भी आधुनिक ड्राफ्टर्स द्वारा उपयोग की जाती है।

मैकाले पुस्तक प्रेमी थे और एक समय में उनके पास 4,000 से अधिक पुस्तकें थीं। उनके जीवन और पत्रों पर छपी एक किताब इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे मैकाले ने चोरी के अपराध को समझाने के लिए इलस्ट्रेशन का सहारा लिया था।

मैकाले ने 1837 में आईपीसी का मसौदा पूरा किया और अंततः 1860 में उनकी मृत्यु के एक साल बाद यह कानून बन गया। उनके क्रिमिनल लॉ कॉन्फिकेशन एक्सरसाइज का प्रभाव भारत ही नहीं पूरे ब्रिटिश साम्राज्य पड़ा। उन्होंने आईपीसी में सोडोमी को अपराध माना जो भारत ही नहीं बल्कि लगभग सभी ब्रिटिश क्षेत्रों में अपराध बन गए और स्वतंत्रता के बाद भी बनी रही।