विधात्री राव

पिछले सप्ताह इस साल में चौथी बार गैर-सब्सिडी वाले रसोई गैस की कीमतों में 50 रुपये की बढ़ोतरी हुई। बढ़ती महंगाई का आम लोगों के जीवन पर गहरा कुप्रभाव पड़ा है। घर चलाने के लिए कहीं रसोई में रोटियां कम पकने लगी हैं, तो कहीं बच्चों का दूध छिन गया है। देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा में अपने तीन बच्चों के साथ रहने वाली इंदुलता बिस्वास के जीवन में आए बदलाव से महंगाई की मार को समझा जा सकता है। इंदुलता के पति प्लंबर का काम करते हैं।
 
गैसी की बढ़ती कीमतों को बड़ी समस्या बताते हुए इंदुलता कहती हैं कि ”हमने 10 साल पहले गैस कनेक्शन लिया था। तब हमें कोई सब्सिडी नहीं मिली थी। दो साल पहले तक एक बड़े सिलेंडर (14.2 किलो) की कीमत 400 रुपये से 500 रुपये थी। अब यह 1200 रुपये है। हमारे लिए यह एक बहुत बड़ी समस्या है।” महंगाई और गैस कीमतों में बढ़ोतरी से बिगड़े बजट का हाल बताते हुए इंदुलता कहती हैं, ”गैस की कीमतों का बढ़ना दूसरों को मामूली लग सकता है लेकिन हमारे लिए यह एक दबाव है। सभी जरूरी चीजें महंगी होती जा रही हैं। हमारा विस्तारित परिवार यहीं रहता है, इसलिए हमें सिलेंडर शेयर करना पड़ता है। जब मेरे पति को वेतन मिलता है, तभी मैं सिलेंडर भरवा पाती हूँ।”

प्लंबर का काम करने वाले इंदुलता के पति महीने का दस से पंद्रह हजार रुपया कमा पाते हैं। सबसे बड़ी बेटी कॉलेज जाने के अलावा कॉल सेंटर में काम करती है, जिसके लिए उसे 8000 रुपये वेतन मिलता है। लेकिन यह पैसा घर में टिकता नहीं है। इंदुलता अपने परिवार के साथ जिस घर में रहती हैं, उसके लिए 4000 रुपये किराया देना होता है। 2000 रुपये बच्चों के स्कूल फीस में चला जाता है। खर्च और कमाई के बीच इतना फर्क आ गया है कि बीमारी का इलाज कराने के बजाए, उसे टाला जा रहा है। इंदुलता बताती हैं कि उन्हें सांस लेने में तकलीफ है लेकिन महंगाई ने ऐसा बजट बिगाड़ रखा है कि डॉक्टर को दिखा नहीं पा रही हैं।

खर्च में आए फर्क को बताते हुए इंदुलता कहती हैं, ”पांच साल पहले महीने के राशन पर लगभग तीन से चार हजार रुपया खर्च होता था। लेकिन अब यह 8,000 रुपये प्रति माह हो गया है। यही वजह है कि हमने इस से साल दूध खरीदना बंद कर दिया है। भोजन से रोटी और दही को भी कम दिया है।” यह पूछने पर कि क्या ऐसी स्थिति सिर्फ उनकी है या आस-पास के परिवारों को भी यही सब झेलना पड़ रहा है, तो इंदुलता बताती हैं कि सभी की स्थिति ऐसी ही है। यह साल विशेष रूप से कठिन रहा है। मेरे पड़ोसी का एक छोटा बच्चा है। उसे केवल चावल का दलिया खिलाया जाता है। कोई फल या सब्जी खरीदने का पैसा नहीं हैं। हर कोई मुश्किल से गुजारा कर रहा है और बचत तो शून्य हो गया है।