यशी

गोवा मुक्ति दिवस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को शुभकामनाएं दीं। पुर्तगाल से स्वतंत्रता पाने तमाम राजनयिक प्रयास विफल होने के बाद, 19 दिसंबर, 1961 को भारत ने सैन्य अभियान चलाकर गोवा को आजाद कराया था। गोवा की आजादी को लेकर कई सवाल उठते हैं, जैसे- ऑपरेशन विजय कैसे चलाया गया और ऑपरेशन चटनी क्या था? भारत ने गोवा में सेना भेजने से पहले 14 साल तक इंतजार क्यों किया? पीएम मोदी ने गोवा के सत्याग्रहियों का समर्थन नहीं करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दोषी क्यों ठहराया? आइए समझते हैं:

पुर्तगालियों के चंगुल में गोवा

1510 में गोवा एक पुर्तगाली उपनिवेश बन गया था। यह बिजियापुर के सुल्तान यूसुफ आदिल शाह की हार के बाद हुआ। युद्ध में शाह को गोवा के एडमिरल अफोंसो डी अल्बुकर्क ने हराया था। 1947 में भारत का एक बड़ा हिस्सा तो अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो गया। लेकिन गोवा, दादरा-नगर हवेली और दमन-दीव गुलाम बना रहा। इन जगहों पर अंग्रेजों का कब्जा नहीं था। ये क्षेत्र पुर्तगालियों के अधीन थे।

हालांकि, देश के बाकी हिस्सों में मुक्ति आंदोलन के साथ-साथ, यहां भी एक स्वतंत्रता आंदोलन जोर पकड़ रहा था। गोवा राष्ट्रवाद के जनक के रूप में जाने जाने वाले ट्रिस्टाओ डी ब्रागांका कुन्हा ने 1928 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता सत्र में गोवा राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। 1946 में समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने गोवा में एक ऐतिहासिक रैली का नेतृत्व किया। इनके साथ-साथ आज़ाद गोमांतक दल जैसे समूह भी थे, जिन्होंने सोचा कि सशस्त्र प्रतिरोध ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।

भारत की आज़ादी के बाद

भारत को आज़ादी के साथ विभाजन का सदमा मिला। साथ ही कश्मीर में युद्ध शुरू हो गया था। ये दोनों मुद्दे नए-नए उभरे राष्ट्र के संसाधनों और उसके नेतृत्व के ध्यान में काफी समय तक हावी रहे। ऐसे में नेहरू पश्चिम में एक और टकराव शुरू करने के इच्छुक नहीं थे। उन्होंने इसके लिए दूसरा रास्ता सोचा था। उनका विचार था कि वह पुर्तगालियों के कब्जे वाले क्षेत्र की तरफ इंटरनेशनल कम्युनिटी का ध्यान आकर्षित करेंगे और बातचीत व कूटनीति के रास्ते से स्वतंत्रता हासिल कर लेंगे।

लेकिन पुर्तगाल के तानाशाह एंटोनियो डी ओलिवेरा सालाजार बातचीत की टेबल पर आने को तैयार नहीं था। वह एक कदम आगे बढ़कर भारतीय क्षेत्रों को उपनिवेश ना मानकर, उन्हें पुर्तगाल का अभिन्न अंग घोषित कर दिया। इस समय तक पुर्तगाल उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) में शामिल हो गया था और सालाज़ार ने मांग की कि अगर भारत सैन्य कार्रवाई करता है तो उसे NATO से मदद मिलनी चाहिए। भारत सरकार ने अपने राजनयिक कार्यालय के माध्यम से बातचीत के प्रयास जारी रखे।

मोदी ने गोवा को लेकर नेहरू को क्यों जिम्मेदार ठहराया?

जुलाई-अगस्त 1954 में भारतीय कार्यकर्ताओं ने थोड़े प्रतिरोध के साथ, दादरा और नगर हवेली पर कब्ज़ा कर लिया। इससे गोवा में स्वतंत्रता सेनानियों को प्रोत्साहन मिला। अगस्त 1955 में एक चरम बिंदु आया, जब हजारों सत्याग्रहियों ने गोवा में प्रवेश करने की कोशिश की, लेकिन पुर्तगालियों द्वारा उन पर गोलीबारी की गई। इसमें 25 लोगों की मौत हो गई।

पिछले साल गोवा चुनाव से पहले पीएम मोदी ने इसके लिए नेहरू की आलोचना की थी। 8 फरवरी, 2022 को मोदी ने राज्यसभा में कहा, “पंडित नेहरू को लगा कि अगर उन्होंने गोवा से औपनिवेशिक शासकों को बाहर करने के लिए सैन्य अभियान चलाया, तो शांति के वैश्विक नेता के रूप में उनकी छवि प्रभावित होगी।” उन्होंने नेहरू के 1955 के स्वतंत्रता दिवस के भाषण को भी उद्धृत किया, जिसमें उन पर सत्याग्रहियों का समर्थन न करने का आरोप लगाया गया।

यह सच है कि नेहरू ने अपने भाषण में सत्याग्रहियों को हिंसक कार्रवाई के प्रति आगाह किया था। नेहरू ने कहा था, “गोवा भारत का हिस्सा है और कोई भी इसे अलग नहीं कर सकता… हमने बहुत आत्म-नियंत्रण रखा है क्योंकि हम चाहते हैं कि इस मुद्दे को शांतिपूर्ण ढंग से हल किया जाना चाहिए… किसी को भी इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि हम सैन्य कार्रवाई करने जा रहे हैं…  अगर वे खुद को सत्याग्रही कहते हैं, तो उन्हें सत्याग्रह के सिद्धांतों को याद रखना चाहिए और उसी तरह व्यवहार करना चाहिए। सेनाएं सत्याग्रहियों के पीछे नहीं चलतीं।” हालांकि, सत्याग्रहियों पर गोलीबारी के बाद भारत ने पुर्तगाल के साथ राजनयिक संबंध तोड़ दिए थे।

सैन्य कार्रवाई

यदि नेहरू सेना न भेजने पर इतने दृढ़ थे, तो छह वर्षों में उनका मन कैसे बदल गया? पहला- क्योंकि वर्षों के लगातार भारतीय प्रयासों के बावजूद पुर्तगाल की ओर से कोई प्रगति नहीं हुई थी। दूसरा तथ्य यह था कि पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन के अधीन अफ्रीकी देश भी चाहते थे कि भारत गोवा की मुक्ति में तेजी लाए। आखिरकार, 1961 में गोवा पर सशस्त्र हमले की तैयारी जोर-शोर से शुरू हो गई।

वेंकटराघवन और सुभा श्रीनिवासन ने अपनी पुस्तक ‘द ओरिजिन स्टोरी ऑफ इंडियाज स्टेट्स’ में लिखा है कि सैन्य कार्रवाई के लिए अंतिम ट्रिगर अंजादीप से एक भारतीय स्टीमर पर पुर्तगालियों की गोलीबारी थी।

किताब में बताया गया है, “1 दिसंबर को भारत ने ऑपरेशन चटनी नामक एक निगरानी अभियान शुरू किया। दो फ़्रिगेट ने गोवा के तट पर गश्त करना शुरू कर दिया, और भारतीय नौसेना ने सोलह जहाजों को जुटाया, जिन्हें चार अलग-अलग ग्रुप में बांट दिया गया था। भारतीय वायु सेना ने किसी भी पुर्तगाली लड़ाकू जेट को भ्रमित करने के लिए उड़ानें शुरू कीं। भारतीय सेना ने गोवा, दमन और दीव की सीमाओं के आसपास सेना तैनात कर दी। प्लान यह था कि सेना, गोवा को आज़ाद कराने के लिए ऑपरेशन विजय का नेतृत्व करेगी और नौसेना और वायु सेना इसमें सपोर्ट करेगी।”

17 दिसंबर को सैन्य कार्रवाई शुरू हुई। सेना तेजी से आगे बढ़ी। 19 दिसंबर की शाम को गवर्नर-जनरल वासालो ई सिल्वा ने आत्मसमर्पण कर दिया। गोवा, दमन-दीव को आज़ाद कर दिया गया। इस तरह भारत में 400 वर्षों से अधिक का पुर्तगाली शासन अंततः समाप्त हो गया।