दुनिया जिसे फिराक गोरखपुरी के नाम से जानती हैं उनका शुरुआती नाम रघुपति सहाय था। शायद ही इंसानी जिंदगी का कोई ऐसा पहलू हो जिसका बिम्ब खींचने में फिराक के शब्द लड़खड़ाए हों। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर रहे फिराक को अपने आप में हिंदुस्तानी शायरी का एक युग माना जाता है।

भावनाओं और संवेदनाओं की जो व्याख्या उनकी रचनाओं में मिलती है, उसकी तुलना आलोचक सिर्फ ग़ालिब से करने को तैयार होते हैं। उन्होंने प्रसिद्धि और लोकप्रियता के उन तमाम मानकों को हासिल किया जिसका ख्वाब कोई शायर देखता है। हालांकि सफलता के शीर्ष पर पहुंचने के बावजूद फिराक की निजी जिंदगी में प्रेम का हिसाब अधूरा रहा।

शादी में खाया धोखा

रोली बुक्स से प्रकाशित अजय मानसिंह की किताब ‘फिराक गोरखपुरी: द पोएट ऑफ पेन एंड एक्स्टसी’ से पता चलता है कि फिराक गोरखपुरी को शादी में धोखा मिला था। परिवार के ही करीबी ने धोखे से उनकी शादी की व्यवस्था की थी। एक जमींदार की बेटी किशोरी को फिराक के लिए चुना गया। फिराक के पिता बहू के रूप में एक शिक्षित महिला चाहते थे क्योंकि फिराक को सुंदरता, साहित्य और दर्शन से अंतर्निहित प्रेम था।

लड़की को देखने के लिए फिराक के परिवार की महिलाएं गईं, जहां उन्हें लड़की को कुछ किताबों के साथ दिखाया गया ताकि वह शिक्षित मालूम पड़े। शादी तय हो गई। शादी के कुछ ही दिन बाद पता चल गया कि फिराक के परिवार को दिखाई गई लड़की उनकी पत्नी नहीं है। धोखे से किसी और लड़की से शादी करवा दी गई है।

शादी के बाद फिराक के घर पहुंचने पर ही किशोरी को खुद विश्वासघात का पता चला। तब तक, अपने पति और उसके परिवार के लिए खेद महसूस करने के अलावा कुछ भी करने में बहुत देर हो चुकी थी।

फिराक इस धोखे से बहुत निराश हुए। उनका वैवाहिक जीवन प्रेमहीन रहा। हालांकि दोनों को बच्चे हुए जिसके बारे में फिराक खुद कहते हैं, ”यौन जरूरतों के सामने कोई भी बदसूरत चेहरा या भावनात्मक लगाव नहीं देखता। मैं चाहता था कि मेरे बच्चे हों। लेकिन मेरी शादी ने मुझे अकेलेपन का शिकार बना दिया: ”ग़मे-फिराक तो उस दिन ग़मे-फिराक हुआ, जब उनको प्यार किया मैंने जिनसे प्यार नहीं।”

जब बेहरम हुए फिराक

रमेश चंद्र द्विवेदी की किताब ‘फिराक साहब’ से पता चलता है कि कैसे एक वक्त फिराक अपनी पत्नी को लेकर बेरहम हो गए थे। एक बार तो छोटी सी भूल के लिए फिराक ने किशोरी देवी को उल्टे पांव उनके मायके वापस भेज दिया था।

दरअसल किशोरी अपने मायके से बिना फिराक की पसंद का अचार लिए वापस चली आई थीं। वह जैसे ही सिर पर टोकरी लिए घर में पहुंचीं, फिराक ने अपनी अचार को लेकर सवाल किया। जवाब में पता चला वो अचार नहीं लायी हैं। फिराक ने सिर टोकरी नीचे भी नहीं रखने दिया और अचार लाने वापस भेज दिया।