सोवियत संघ के शासक और इंकलाबी नेता जोसेफ स्टालिन का निधन 5 मार्च, 1953 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था। स्टालिन को सोवियत संघ को आधुनिक बनाने और उसका औद्योगीकरण करने के लिए जाना जाता है।
उनके कार्यकाल में सोवियत संघ ने बड़े पैमाने पर आर्थिक तरक्की की थी। देश में कोयले, तेल और स्टील का उत्पादन कई गुना बढ़ गया था। स्टालिन की पंचवर्षीय योजना से भारत ने भी प्रेरणा ली थी।
इसके अलावा स्टालिन को दूसरा विश्व युद्ध खत्म करने का भी श्रेय दिया जाता है। स्टालिन की सेना ने हिटलर की नाजी सेना को न सिर्फ हराया था, बल्कि जर्मनी की राजधानी बर्लिन तक खदेड़ा था।
हालांकि, इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले स्टालिन का शुरुआती जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था। उनका जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था। स्टालिन के पिता मोची थे। मां दूसरों के कपड़े धोने का काम करती थीं।
काम की तलाश में छूट गया था स्टालिन के पिता का गांव
महान लेखक और विचारक महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने स्टालिन की जीवनी लिखी है। सांकृत्यायन द्वारा लिखी ‘स्टालिन-एक जीवनी’ को अब राहुल फाउण्डेशन नाम की संस्था छापती है। सांकृत्यायन की लिखी जीवनी को प्रमाणिक माना जाता है।
किताब के मुताबिक, स्टालिन के पिता बिसारियोन और उनका परिवार काकेशस पर्वतमाला के पश्चिमी भाग में बसे एक छोटे से गांव दिदिलियों में रहता था। उनके वंश का नाम जुगशविली था। इसलिए स्टालिन के पिता का पूरा नाम बिसारियोन जुगशविली था। बिसारियोन मोची थे। लेकिन जूता बनाने के साथ-साथ थोड़ी-बहुत खेती भी कर लिया करते थे।
हालांकि, दोनों ही कामों से घर चलाना मुश्किल हो रहा था, इसलिए वह काम की तलाश में जार्जिया की तत्कालीन राजधानी तिफलिस पहुंच गए। शहर जाने से पहले उन्होंने एकातेरिना (केथरिन) नाम की महिला से शादी कर ली। दोनों साथ में ही शहर गए।
परिवार को जार्जिया के ही गोरी कस्बे एक छोटे से घर में छोड़कर बिसारियोन तिफलिस के एक बूट-फैक्टरी में काम करने जाते थे। एकातेरिना दूसरों के कपड़े धोने का काम करती थीं। शहर में उनका घर मात्र पांच वर्ग गज का था। फर्श ईटों का था। पूरे घर में सिर्फ एक खिड़की थी। फर्नीचर के नाम पर एक छोटी मेज, एक स्टूल और एक लम्बा सोफा था, जो पुआल भरकर मामूली कपड़े से ढककर बनाया गया था। इसी घर में स्टालिन का जन्म हुआ था।
बचपन में स्टालिन का नाम सोसो था
स्टालिन का जन्म 18 दिसम्बर, 1879 को हुआ था। तब बिसारियोन और एकातेरिना ने अपने लड़के का नाम सोसो रखा था। दस्तावेजों में उनका नाम जोसेफ़ बिसारियोनोविच ज़ुगाशविली था। हालांकि बाद में उन्होंने खुद स्टालिन नाम दिया, जिसका मतलब लौह पुरुष होता है।
बिसारियोन और एकातेरिना दोनों पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने बेटे की पढ़ाई सात वर्ष की उम्र में ही शुरू करवा दी थी। एक वर्ष की पढ़ाई में ही स्टालिन ने गुर्जी (उनकी मातृभाषा) और फिर रूसी पढ़ना सीख लिया। हालांकि पिता बहुत दिनों तक न जी सके, इसलिए स्टालिन का पालन-पोषण उनकी मां ने ही किया।
मां पादरी बनाना चाहती थीं
शुरुआत में स्टालिन की पढाई साधारण स्कूल में हुई। तब देश में पर जार का शासन था। वह धर्म ईसाई था इसलिए ईसाई पादरियों का बहुत सम्मान था। स्टालिन के मां ने सोचा कि वह अपने बेटे को पादरी बनाएंगी, ताकि उनका भविष्य उज्ज्वल हो सके। साल 1888 में नौ साल की उम्र में स्टालिन को गोरी के उस स्कूल में भेज दिया गया, जहां पढ़कर वह पादरी बन सकें। वहां स्टालिन ने 6 वर्षों तक पढ़ाई की। वह मेहनती और बुद्धिमान विद्यार्थी थे। उन्हें सबसे अधिक अंक मिला करते थे। पढ़ाई के अलावा वह खेल-कूद में भी अच्छे थे। उन्हें ड्राइंग बनाना और गीत-संगीत बहुत पसंद था।
पादरी बनाने वाले स्कूल में छह वर्ष पढ़ने के बावजूद धर्म में उनकी दिलचस्पी नहीं जगी। वह अपने दोस्तों से कहते थे कि पादरी हमें बेवकूफ बना रहे हैं, ईश्वर नहीं होता है। स्टालिन अपने दोस्तों को डार्विन की किताब पढ़ने की सलाह देते थे। इस तरह वह मां की इच्छा के बावजूद वह पादरी नहीं बन सके।