भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की मां प्रभा और पिता वाईवी चंद्रचूड़, दोनों ही संगीत की समझ रखते थे। मां तो बकायदा प्रशिक्षित शास्त्रीय संगीतकार थीं। पिता ने भी संगीत सीखा। घर के इस माहौल ने बचपन में ही डीवाई चंद्रचूड़ को भी संगीत के करीब ला दिया।
हाल में The Week की अंजुली मथाई को दिए एक साक्षात्कार में जस्टिस चंद्रचूड़ इस बात को स्वीकार करते हैं कि उन्हें बचपन में संगीत और वाद्य यंत्रों की तालीम मिली थी।
चंद्रचूड़ बताते हैं, “मेरी मां एक प्रशिक्षित संगीतकार थीं। वह हमारे समय की सबसे प्रतिष्ठित शास्त्रीय गायकों में से एक किशोरी अमोनकर की शिष्या थीं, जिनका जयपुर घराने से संबंध था। मेरे पिता ने गंधर्व महाविद्यालय में संगीत सीखा था। मेरी मां और पिता ने मुझे संगीत सीखने के लिए प्रोत्साहित किया। मैंने बचपन में हारमोनियम और तबला बजाना सीखा। मैं तबला बहुत अच्छा बजाता था। एक समय तो मेरे पिता को इस बात से चिंता होने लगी थी। उन्होंने मेरी मां से कहना शुरू कर दिया था कि “खतरा है कहीं यह तबला वादक न बन जाए।” उन दिनों यह माता-पिता के लिए चिंता का विषय था। वे इस मामले में बहुत रूढ़िवादी थे और चाहते थे कि मैं डॉक्टर, वकील या इंजीनियर बनूं। तो इस तरह मेरे तबला वादन का अंत हो गया।”
संगीत सुनकर रोते थे CJI
बचपन में डीवाई चंद्रचूड़ का संगीत से बहुत ही भावुक रिश्ता था। अक्सर संगीत सुनकर उनकी आंखों से झर-झर आंसू बहने लगते थे। उन दिनों को याद करते हुए सीजेआई बताते हैं, “मेरी मां की गुरु किशोरी अमोनकर लगभग हर सप्ताह हमारे घर आती थीं। जब वह रियाज़ कर रही होती थी तो मैं पर्दे के पीछे बैठ जाता था और उनके म्यूजिक प्रैक्टिस को सुनता था। मैं हर शनिवार को अपनी मां के साथ उनके घर जाता था और हम पूरी सुबह वहीं बिताते थे। मैं उनके छोटे बच्चों के साथ खेलता था, लेकिन बगल के कमरे में गाए जा रहे संगीत को सुनने से बचता था। संगीत मुझे इतना प्रभावित कर देता था कि मैं रोने लगता था। मेरी माँ को आश्चर्य होता था कि उनका बच्चा संगीत सुनने के बाद इतना रोता क्यों है। मुझे लगता है कि उन्हें यह बात कभी पता नहीं चली।”
आकाशवाणी में रेडियो जॉकी भी थे डीवाई चंद्रचूड़
सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश कभी आकाशवाणी में डीजे का काम किया करते थे। चंद्रचूड़ खुद बताते हैं, “अपने कॉलेज के दिनों में मैंने ऑल इंडिया रेडियो के लिए डिस्क जॉकी (DJ) का काम किया है। किसी ने मुझे बताया था कि आकाशवाणी अपने एक कार्यक्रम के लिए डीजे की भर्ती कर रहा है। मैं गया और ऑडिशन दिया। चयन हो गया। दिलचस्प बात यह है कि मैं हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कार्यक्रम करता था। हिंदी में अधिक गंभीर शैली का कार्यक्रम और अंग्रेजी में पश्चिमी संगीत कार्यक्रम था। अक्सर मैं अपनी रिकॉर्डिंग करने के लिए सुबह 5 बजे आकाशवाणी जाता था और उसके बाद कॉलेज चला जाता था। कभी-कभी मैं कॉलेज के बाद वापस जाता था और कार्यक्रम खत्म होने तक रात 9 बजे तक वहीं रहता था।”
एक अनपढ़ महिला से मिली सीख को अब तक नहीं भूले हैं CJI
बचपन में गांव की एक अनपढ़ महिला से मिली सीख को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ अब तक याद करते हैं। वह महिला चंद्रचूड़ के जन्म से पहले रत्नागिरी से आई थीं। उन्होंने चंद्रचूड़ को महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों के बारे में बहुत कुछ बताया। उनसे ही उन्हें ग्रामीण भारत की तस्वीर मिली। उस महिला की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी। लेकिन उनके आदर्श आश्चर्यचकित थे। वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक महिला थीं।

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