1857 की क्रांति के बाद जब आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर (Bahadur Shah Zafar) को दोषी ठहराया गया तो एक-एककर शाही खानदान के लड़कों का कत्लेआम शुरू हुआ। बहादुर शाह जफर के ज्यादातर बेटों और पोतों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। किसी को गोली मारी तो गई तो किसी को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया।
मशहूर इतिहासकार विलियम डैलरिंपल (William Dalrymple) अपनी किताब ‘द लास्ट मुगल’ (The Last Mughal) में लिखते हैं कि बहादुर शाह जफर को दोषी ठहराने के बाद शाही खानदान के 29 लड़के पकड़े गए और अंग्रेजों ने उनका कत्ल कर दिया।
कैद से जान बचाकर भाग गए थे दो शहजादे
बहादुर शाह जफर के सिर्फ दो बेटे भागने में कामयाब रहे। जो पकड़े गए उनमें शहजादे मिर्जा अब्दुल्लाह और मिर्जा क्वैश (Mirza Quaish) भी शामिल थे। दोनों को पकड़ने के बाद हुमायूं के मकबरे में ले जाया गया और एक सिख पहरेदार की निगरानी में रखा गया। उस सिख पहरेदार को उन पर तरस आ गया। उसने दोनों की तरफ घूर कर देखा और कहा कि अपनी जान पर रहम खाओ, यहां से भाग जाओ। सांस लेने के लिए भी मत रुकना।
बहनोई ने पनाह देने से कर दिया था इनकार
शहजादे क्वैश सीधे निजामुद्दीन अपने बहनोई के पास गए और उनको बताया कि वह कैद से भाग कर आए हैं। उनके बहनोई ने पनाह देने से इंकार कर दिया और कहा कि यहां से फौरन भाग जाओ। क्वैश ने अपना सिर मुंडवा लिया, लुंगी और फटे-पुराने चीथड़े पहने। भिखारी का वेश बनाकर किसी तरह उदयपुर पहुंच गए। वहां महाराजा उदयपुर का एक वफादार मिला, जो मिर्जा क्वैश को पहचानता था।
उदयपुर के महाराजा ने की मदद
उसे मिर्जा क्वैश की हालत पर तरस आ गया। उसने महाराजा से दरखास्त थी कि एक दरवेश (फकीर) आया है। अगर आप उसकी कोई तनख्वाह बांध देंगे तो यहीं रहेगा और आपकी सेहत के लिए दुआ करेगा। महाराजा उदयपुर ने बात मान ली 2 रुपये प्रतिदिन तनख्वाह बांध दी। ‘गदर’ के बाद मिर्जा क्वैश 32 साल जिंदा रहे और पूरी जिंदगी उदयपुर में गुजार दी। वहां मियां साहब के नाम से जाने जाते थे।
भिखारी की मौत मरे थे शहजादे अब्दुल्लाह
हालांकि अंग्रेज अफसरों ने मिर्जा की तलाश जारी रखी। उनकी गिरफ्तारी के लिए इश्तेहार निकाले और भारी इनाम का ऐलान कर दिया। इनाम के लालच में तमाम लोग उदयपुर तक पहुंच गए और कोतवाल की मदद से घर तक तलाश लिया, लेकिन मिर्जा हाथ नहीं आए।
उधर, मिर्जा क्वैश के साथ भागे मिर्जा अब्दुल्लाह ने टोंक रियासत में पनाह ली, लेकिन उनकी हालत बहुत खराब हो गई। न तो खाने की व्यवस्था थी और न ही रहने की। दर-दर की ठोकरे खाते रहे। पूरी जिंदगी भिखारी की तरह सड़कों पर टहलते रहे और आखिरकार इसी हालत में मर गए।