भारत ने जबसे ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया है और पाकिस्तान को धूल चटाई है, उसके बाद से ब्रह्मोस मिसाइल की चर्चा पूरे दुनिया में हो रही है। ब्रह्मोस मिसाइल दुश्मनों के लिए किसी काल से कम नहीं है और इसे खरीदने के लिए कई देश दिलचस्पी दिखा रहे हैं। फिलिपींस से भी ब्रह्मोस को लेकर डील हुई है। वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार थाईलैंड, सिंगापुर, ब्रुनेई मिस्र , सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, ओमान, ब्राजील, अर्जेंटीना, चिली, वेनेजुएला भी ब्रह्मोस मिसाइल में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन(DRDO) के चेयरमैन समीर वी. कामत ने शनिवार (9 अगस्त) को कहा कि सुखोई-30 MKI से लॉन्च की गई ब्रह्मोस मिसाइल ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इस्तेमाल किया गया आक्रामक हथियार था। उन्होंने कहा कि सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल BRAHMOS NG, के एक छोटे वर्जन का डेवलपमेंट जल्द ही शुरू होगा।

सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है ब्रह्मोस

ब्रह्मोस एक स्टैंड-ऑफ रेंज ‘फायर एंड फॉरगेट’ प्रकार की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है जिसे भूमि-आधारित, जहाज-आधारित, हवा से लॉन्च और पनडुब्बी से भी फायर किया जा चुका है। ये सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें तीनों रक्षा सेवाओं में शामिल हैं। इसका निर्माण ब्रह्मोस एयरोस्पेस द्वारा किया गया है, जो भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और रूस के NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया का एक ज्वाइंट वेंचर है।

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कैसे काम करता है ब्रह्मोस?

ब्रह्मोस एक टू स्टेज मिसाइल है जिसमें एक सॉलिड प्रोपेलेंट बूस्टर इंजन लगा है। इसका पहला स्टेज मिसाइल को ध्वनि की गति से भी तेज़ सुपरसोनिक गति पर पहुंचाता है और फिर अलग हो जाता है। लिक्विड रैमजेट का दूसरा चरण मिसाइल को लॉन्च करता है और उसे उसके क्रूज़ स्टेज में साउंड की स्पीड से तीन गुना तेज़ गति से लॉन्च करता है। लिक्विड रैमजेट एक Air Breathing जेट इंजन है जो लिक्विड फ्यूल का उपयोग करता है, जिसे हाई स्पीड एयरस्ट्रीम में लॉन्च किया जाता है।

राडार भी पकड़ने में नाकाम

इस मिसाइल का रडार सिग्नेचर बेहद कम है, जिससे यह गुप्त रहती है। यानी रडार भी इसे पकड़ नहीं पाती है।इसकी वेबसाइट के अनुसार, क्रूज़िंग ऊँचाई 15 किमी तक और टर्मिनल ऊँचाई 10 मीटर तक हो सकती है। यह मिसाइल 200-300 किलोग्राम वजन का एक पारंपरिक वॉरहेड ले जाती है। ब्रह्मोस जैसी क्रूज़ मिसाइलें स्टैंड-ऑफ रेंज हथियार श्रेणी में आती हैं, जिन्हें इतनी दूरी से दागा जाता है कि हमलावर दुश्मन की रक्षात्मक गोलाबारी से बच सके। ये हथियार दुनिया की अधिकांश प्रमुख सेनाओं के पास मौजूद हैं।

ब्रह्मोस के जिन वर्जन का वर्तमान में परीक्षण किया जा रहा है, वे 350 किलोमीटर तक के लक्ष्यों को भेद सकते हैं। हालांकि इसकी मूल रेंज 290 किलोमीटर है। लेकिन 800 किलोमीटर तक की और भी अधिक रेंज और हाइपरसोनिक गति या साउंड की स्पीड से पांच गुना अधिक तक के परीक्षण की भी संभावना है। सबसोनिक क्रूज़ मिसाइलों की तुलना में ब्रह्मोस की गति तीन गुना, उड़ान रेंज 2.5 गुना और सीकर रेंज ज़्यादा है, जिससे यह ज़्यादा सटीक है। वहीं ऊर्जा भी 9 गुना ज़्यादा होती है।

ब्रह्मोस के अलग-अलग वर्जन

चांदीपुर परीक्षण रेंज में पहले सफल टेस्टिंग के बाद ब्रह्मोस को 2005 में नौसेना में, 2007 में भारतीय सेना में और 2017 में भारतीय वायुसेना के सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान के साथ पहली सफल उड़ान में शामिल किया गया।

शिप बेस्ड वेरिएंट: इसके नौसैनिक वर्जन को वर्टिकली या इंकलाइन और मूविंग या स्थिर दोनों नौसैनिक प्लेटफार्मों से दागा जा सकता है। शिप से ब्रह्मोस को सिंगल यूनिट के रूप में या ढाई सेकंड के अंतराल पर आठ की संख्या में लॉन्च किया जा सकता है। भारतीय नौसेना ने 2005 से अपने अग्रिम पंक्ति के युद्धपोतों पर ब्रह्मोस को शामिल करना शुरू किया, और यह रडार से परे समुद्र-आधारित लक्ष्यों को भेद सकता है।

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लैंड बेस्ड सिस्टम: लैंड बेस्ड ब्रह्मोस कॉम्प्लेक्स में चार से छह मोबाइल ऑटोनॉमस लॉन्चर्स हैं। प्रत्येक लॉन्चर में तीन मिसाइलें लगी होती हैं जिन्हें लगभग एक साथ तीन अलग-अलग लक्ष्यों पर दागा जा सकता है। ब्रह्मोस सिस्टम की कई यूनिट्स भारत की भूमि सीमाओं पर तैनात की गई हैं।

एयर लॉन्च वर्जन: ब्रह्मोस एयर लॉन्च क्रूज़ मिसाइल (ALCM) भारत के फ्रंटलाइनर लड़ाकू विमान सुखोई-30 MKI में लगने वाली सबसे भारी मिसाइल है। नवंबर 2017 में ब्रह्मोस को पहली बार भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया था और तब से इसका कई बार सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है। 2019 में किए गए परीक्षणों में ब्रह्मोस ALCM ने दिन हो या रात, और सभी मौसमों में, लंबी दूरी से जमीन पर हमला करने और एंटी शिप कैपेबिलिटी की पुष्टि की।

सबमरीन लॉन्च वर्जन: इस वर्जन को पानी की सतह से लगभग 50 मीटर नीचे से लॉन्च किया जा सकता है। यह मिसाइल पनडुब्बी से वर्टिकली लॉन्च की जाती है और पानी के नीचे और पानी से बाहर की उड़ानों के लिए अलग-अलग सेटिंग्स का उपयोग करती है। इस वर्जन का पहला सफल परीक्षण मार्च 2013 में विशाखापत्तनम के तट पर एक जलमग्न प्लेटफ़ॉर्म से किया गया था।

फ्यूचरिस्टिक ब्रह्मोस-एनजी: ब्रह्मोस एनजी का डेवलपमेंट जारी है, जिसे ब्रह्मोस-एनजी (अगली पीढ़ी) के रूप में जाना जाता है। इसका उपयोग मुख्य रूप से वायु और नौसैनिक के लिए किया जाएगा। इस वर्जन में वजन, नेक्स्ट जनरेशन की स्टील्थ विशेषताएं, इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-काउंटरमेजर (ECCM) के खिलाफ अधिक प्रभावशीलता, पानी के नीचे लड़ाई के लिए टेस्टेड और टारपीडो ट्यूब से लॉन्च की क्षमता होगी।