BJP victory Jat land Haryana Election: हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों का बारीकी से विश्लेषण करने पर कई अहम बातें निकलकर सामने आती हैं। जैसे- जाट बेल्ट की सीटों पर बीजेपी ने इस बार बड़ी कामयाबी हासिल की है। 2019 के मुकाबले पार्टी ने इस बेल्ट में दोगुनी सीटें जीती हैं। इसी तरह आरक्षित विधानसभा सीटों में से भी बीजेपी ने पिछले चुनाव के मुकाबले सीटों की संख्या में बढ़ोतरी की है।

कौन-कौन से जिले आते हैं जाट बेल्ट में?

हरियाणा की जाट बेल्ट में रोहतक, सोनीपत, झज्जर, जींद, भिवानी, चरखी दादरी जिले आते हैं। इन जिलों में कुल 25 सीटें आती हैं। इसके अलावा पानीपत, सिरसा, हिसार जिलों में भी इस समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है।

हरियाणा में किस जाति की कितनी आबादी

समुदाय का नाम आबादी (प्रतिशत में)
जाट 25  
दलित21
पंजाबी8
ब्राह्मण7.5 
अहीर5.14
वैश्य5
राजपूत 3.4 
सैनी 2.9 
मुस्लिम3.8 

हरियाणा में जाट बेल्ट की 25 सीटों में से बीजेपी ने 14, कांग्रेस ने 10 सीटें जीती हैं जबकि 1 सीटें निर्दलीय के खाते में गई है। जबकि 2019 में यहां कांग्रेस ने 13 और बीजेपी ने 6 सीटें जीती थी। बाकी सीटें अन्य दलों के खाते में गई थीं। इसी तरह आरक्षित सीटों के मामले में 2019 में बीजेपी को 5 सीटें मिली थी जबकि इस बार पार्टी ने यहां 8 सीटें जीती हैं और 9 सीटें कांग्रेस के खाते में गई हैं। हरियाणा विधानसभा में 17 आरक्षित सीटें हैं।

जाट सीएम का मुद्दा था चर्चा में

इस बार के विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान एक बार फिर जाट सीएम का मुद्दा जोर पकड़ रहा था। हरियाणा में जाट बिरादरी से आने वाले देवीलाल, बंसीलाल, ओम प्रकाश चौटाला, भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने लंबे वक्त तक मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली है। पिछले 10 साल से हरियाणा में जाट मुख्यमंत्री न होने की वजह से यह माना जा रहा था कि इस बार जाट मतदाताओं का ध्रुवीकरण होगा और वे कांग्रेस के पक्ष में वोट दे सकते हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह कांग्रेस के पास पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के रूप में एक बड़ा जाट चेहरा होना था जबकि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री जैसे दोनों ही बड़े पदों पर गैर जाट चेहरे थे।

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विधानसभा चुनाव के दौरान यह कहा जा रहा था कि हरियाणा में जाट बेल्ट वाली सीटों पर कांग्रेस एकतरफा प्रदर्शन करेगी और यहां बीजेपी के लिए जीतना बहुत मुश्किल हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ और सारे अनुमान और दावे हवा में उड़ गए।

पिछले कुछ सालों में सबसे बड़े जाट चेहरे के तौर पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही सामने आए हैं। हुड्डा 2005 से 2014 तक कांग्रेस की सरकार में मुख्यमंत्री रहे और पिछली विधानसभा में विपक्ष के नेता के पद पर भी थे। चुनाव नतीजों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि जाट मतदाताओं ने खुलकर बीजेपी के जाट उम्मीदवारों को वोट दिया है और जाट बेल्ट वाली सीटों पर बीजेपी ने कांग्रेस से ज्यादा सीटें जीती हैं। इसके अलावा भी हरियाणा में बीजेपी का प्रदर्शन उत्तर हरियाणा या दक्षिण हरियाणा में भी बेहतर रहा है।

बीजेपी ने गैर जाट नेताओं को बनाया सीएम

हरियाणा की राजनीति में हमेशा से ही जाट बनाम गैर जाट की बहस चलती रही है। बीजेपी पर ऐसा आरोप लगता है कि उसने 2014 में हरियाणा की सत्ता में आने के बाद से ही गैर जाट राजनीति की है। पिछले 10 सालों में पार्टी ने दो नेताओं क्रमशः मनोहर लाल खट्टर और नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया और यह दोनों ही नेता गैर जाट समुदाय से आते हैं। मनोहर लाल खट्टर पंजाबी जबकि नायब सिंह सैनी ओबीसी समुदाय के बड़े चेहरे हैं।

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हालांकि संतुलन साधते हुए पार्टी ने राज्य के दो जाट नेताओं- सुभाष बराला और किरण चौधरी को राज्यसभा भेजा। किरण चौधरी पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की बहू हैं और कई बार विधायक व मंत्री रह चुकी हैं। वह लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी में शामिल हुई थीं। उनकी बेटी श्रुति चौधरी भिवानी जिले की तोशाम सीट से चुनाव जीती हैं। श्रुति चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से कांग्रेस के टिकट पर सांसद भी रह चुकी हैं।

नहीं चला चौधर का नारा

जाट बेल्ट में चौधर लाने का नारा इस बार जोर-शोर से चल रहा था और माना जा रहा था कि जाट मतदाता हुड्डा और कांग्रेस के साथ खड़े होंगे। लेकिन बीजेपी ने यहां कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया और इससे पता चलता है कि हरियाणा में जाट मतदाताओं ने कांग्रेस की ओर से चुनाव में उठाए गए मुद्दों के बजाय बीजेपी के वादों और इरादों को ज्यादा समर्थन दिया है। बीजेपी ने लगातार तीसरी बार सरकार बना कर हरियाणा में इतिहास रचा है। वहीं, जाट बेल्ट में सीटें दोगुनी कर पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के असर को भी काफी हद तक कम किया है और इससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ना तय माना जा रहा है।