देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान (भारत रत्न) के लिए चुने गए बिहार के दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर जननायक कहे जाते हैं। लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता तो निविर्वाद थी ही (वह 1952 से लगातार 1984 को छोड़ कोई चुनाव नहीं हारे थे), उनकी ईमानदारी और विनम्रता के भी सब कायल थे।
उनके निजी सचिव रहे पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने उन्हें याद करते हुए लिखा है कि कर्पूरी ठाकुर देर शाम किसी आईएएस को फोन करने से बचते थे। उनका मानना था कि शाम में वे लोग (आईएएस अफसर) ‘अपनी दुनिया’ में रहते हैं। विनम्रता ऐसी कि वह बेटे और नौकर को छोड़ कर किसी को तुम संबोधन नहीं करते थे।
ताउम्र बड़े पदों पर रहे लेकिन नहीं बनवाया घर
कर्पूरी ठाकुर 1952 से ताउम्र विधायक/सांसद/मुख्यमंत्री/उप मुख्यमंत्री/मंत्री रहे, लेकिन जीवन में कभी अपने लिए मकान नहीं बनवा पाए। जो पुश्तैनी मकान था, वह भी उनकी मौत तक कच्चा ही रह गया था। एक मात्र बेटी की शादी कर्पूरी ठाकुर ने मुख्यमंत्री रहते की थी, लेकिन वह शादी सादगी की मिसाल थी।
उद्योगपति से 500 रुपये मांगा
रघु ठाकुर समाजवादी आंदोलन के दौरान करीब 25 साल कर्पूरी ठाकुर से जुड़े रहे थे। वह हजारीबाग का एक किस्सा याद करते हैं। हजारीबाग में पार्टी की बैठक के दौरान एक बड़े उद्योगपति के यहां उन्हें नाश्ता करने करने जाना था। कोयला मजदूर नेता रमणिका गुप्ता ने उस उद्योगपति से पार्टी के लिए सहयोग के रूप में कुछ राशि मांगी थी।
कर्पूरी ठाकुर ने नाश्ते के दौरान केवल 500 रुपए की मांग की। लौटते हुए रमणिका गुप्ता ने यह जाना तो कर्पूरी ठाकुर से बोलीं- यह क्या कर दिया आपने, वह पांच लाख रुपए देने वाले थे।
जेपी के इंतजार में चार घंटे दिया था भाषण
राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने ‘जननायक कर्पूरी ठाकुर स्मृति-ग्रंथ’ में बिहार के प्रसिद्ध नेता रहे शंकर दयाल सिंह के हवाले से कर्पूरी ठाकुर का एक किस्सा लिखा है। हरिवंशं लिखते हैं, “साल 1952 की बात है। कर्पूरी ठाकुर चुनाव मैदान में उतरे तो एक चुनावी सभा में प्रचार करने जयप्रकाश नारायण को भी पहुंचना पड़ा। जेपी का समय दिन के 11 बजे तय था, लेकिन गाड़ी खराब होने के कारण जेपी तीन बजे पहुंचे। सभा में भारी संख्या में जनता पहुंची थी। जेपी के आने में चार घंटे विलंब की सूचना मिलने पर कर्पूरी लगातार मंच से बोलते रहे। वे बोलते रहे और जनता डटी रही। जेपी आए तो सिर्फ इतना ही कहा कि अब मैं क्या बोलूं। मेरे आने का बस अब मान रखिए। कर्पूरीजी जैसे नेता को जितवाइए भर नहीं, बल्कि जो विरोध में खड़े हैं, उन सबों की जमानत भी जब्त हो, हुआ भी ऐसा ही था।”
